पूँछ….कैसी-कैसी

दोस्तों, आपसे यदि कोई कहे कि कुछ जंतु पूँछ के बल खड़े हो सकते हैं, तो शायद आपको विश्र्वास न हो। लेकिन यह सच है। ऑस्टेलिया में पाया जाने वाला कंगारू कुछ क्षणों के लिए ऐसा कर सकता है। जब दो नर कंगारू आपस में लड़ जाते हैं तो लड़ाई के दौरान वे एक-दूसरे के आमने-सामने होते हैं और दोनों पिछली टांगों के बल पर खड़े होते हैं। ऐसी स्थिति में पूंछ तिपाई का कार्य करती है। तब दोनों पिछली टांगों से एक-दूसरे को लत्ती मारते हैं। इसी समय कंगारू पूंछ पर ही कुछ क्षण खड़ा हो लेता है।

पूँछ भी कई आकार की होती है। समुद्री सॉंप की पूँछ चपटी होकर पतवार का कार्य करती है। यह सॉंप को पानी में तैरने में मदद करती है। दोमुँहे सांप के दो मुँह तो नहीं होते, किन्तु उसकी पूंछ ही मुँह का आभास देती है। पूँछ नुकीली न होकर बुठी होती है। ऐसे में सॉंप अपने दुश्मनों को धोखे में डालकर अपनी रक्षा कर लेता है, क्योंकि दुश्मन इसके मुँह पर वार करता है किंतु पूँछ को मुँह वाला हिस्सा समझकर हमला करता है। तब तक वह अपना बचाव आसपास छिपकर कर लेता है। पानी में तैरते या हवा में उड़ते समय दिशा तय करने का काम भी पूँछ करती है। बिल्ली जब तंग स्थान पर चलती है, तब उसकी पूँछ इधर-उधर हिलती रहती है और उसी से अपने शरीर को संतुलित करती है। पेड़ों पर रहने वाले बंदर की पूँछ भी उसके शरीर को संतुलित करने में मदद करती है। साथ ही बंदरों में पूँछ सहारा देने और पकड़ के लिए भी महत्वपूर्ण होती है। छिपकली वर्ग के गिरगिट की पूँछ भी पकड़ के लिए उपयोगी होती है। ऐसे ही कुत्ता जब बहुत तेजी से दौड़ता है, तब दिशा बदलते समय पूँछ की सहायता लेता है। स्तनधारी प्राणी खासकर भैंस, गाय, घोड़े, हाथी की पूंछ के आखिर में बालों का गुच्छा होता है जो मक्खी-मच्छरों को अपने शरीर से भगाने का कार्य करते हैं। हिरण की पूंछ छोटी होती है और यह प्रजनन काल के दौरान अपने साथी को इशारा करती है जबकि खरगोश अपनी पूंछ से अपने अन्य साथियों को खतरे की सूचना देता है। खतरे के समय खरगोश अपनी पूंछ को जमीन पर तेजी से ठोंकता है। जब कोई घरेलू छिपकली पर हमला करता है तो वह अपनी पूंछ को जानबूझकर तोड़कर गिरा देती है। ऐसे में उसका दुश्मन टूटी पूँछ पर लपकता है तब तक छिपकली गायब हो जाती है। इक्के-दुक्के प्राणी ऐसे भी हैं, जिनकी पूँछ में चर्बी एकत्र हो जाती है और जब तक उन्हें भोजन नहीं मिलता, तब तक उसका उपयोग अपने शरीर के लिए करते हैं। एक छिपकली (फैट टैल्ड जैको) की पूँछ में चर्बी जमा होती रहती है और आवश्यकता के समय यह पूँछ में जमा चर्बी शरीर के लिए उपयोगी होती है। इसी प्रकार पूँछ में चर्बी जमा करने वाले स्तनधारियों में भेड़, रेगिस्तानी चूहा मुख्य है। भेड़ की पूँछ तो 15-20 किलो वजन तक की हो जाती है। अरब के लोग भेड़ों की पूँछ को फ्राई कर चाव से खाते हैं। पूँछ की सुंदरता के लिए मोर जगजाहिर है। अमेरिका में पाए जाने वाले रेटल स्नेक की पूँछ बड़ी विचित्र प्रकार की होती है। इसकी पूँछ के अंतिम सिरे पर बड़े छल्ले होते हैं। जब इस पर कोई प्राणी हमला करने की चेष्टा करता है, तब यह पूँछ झुनझुने जैसी ध्वनि पैदा करती है। पूँछ के इतने सारे उपयोग और मनुष्य इससे अछूता है, यह इसके दुर्भाग्य की बात है। दरअसल मनुष्य के दूर के रिश्तेदारों की पूँछ तो होती थी, किंतु इस विकास यात्रा के दौरान वह अपने दो पैरों पर खड़ा हुआ। उसके हाथ का विकास हुआ… और वह अपनी पूँछ गॅंवा बैठा।

– मंजु जैन

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