शिलाजीत

shilajeetशिलाजीत आयुर्वेदिक औषधियों का एक प्रमुख घटक है। इसे रामबाण औषधि भी कहा जाता है। कुछ लोग इसे सोम भी कहते हैं और मानते हैं कि इसमें पुनर्जीवन की क्षमताएँ हैं, यह शरीर को नवजवान रखती है, हमेशा चुस्त-दुरुस्त बनाए रखती है। इसका उपयोग आयुर्वेदिक, यूनानी एवं तिब्बती सभी चिकित्सा पद्घतियों में होता है।

परन्तु सवाल यह है कि आखिर यह शिलाजीत है क्या? पिछले दिनों मेरा एक दोस्त हिमालय यात्रा पर गया था। वहॉं उसकी मुलाकात शुद्घ शिलाजीत बेचने वालों से हुई। उसने मुझे फोन पर पूछा, “”क्या तुम्हारे लिए शुद्घ शिलाजीत लाऊँ?” इस औषधि का नाम तो मैंने भी कई बार सुना था। विशेषकर इसके कामेच्छा बढ़ाने संबंधी गुणों के बारे में सुना था। परन्तु मुझे यह नहीं मालूम था कि यह होती क्या है?

इस बारे में जब मैंने कुछ लोगों से पूछा तो उन्होंने भी अनभिज्ञता ़जाहिर की। मुझे कुछ जानकारी थी कि ये खनिज-लवण होते हैं। मैंने भूगर्भ विज्ञान से जुड़े व्यक्तियों से जानकारी हासिल की, तो पता चला कि उनकी किताबों में ऐसा कुछ नहीं है। कुछ और जानकारी हासिल करने पर पता चला कि न तो यह पौधा है और न खनिज। कहीं कुछ जंतु विष्ठा की बात भी पढ़ने में आई। जैसे-जैसे पढ़ता गया, वैसे-वैसे इसके बारे में जानने की मेरी जिज्ञासा बढ़ती ही गई।

आयुर्वेद में शिलाजीत

शिलाजीत का संस्कृत अर्थ है – पहाड़ों को जीतने वाला और कम़जोरी को हरने वाला। इसे शिलाजीत, मुमियो, मिनरल, पिच, मिनरल वैक्स और ब्लैक एस्फाल्टम के नाम से भी जाना जाता है। अंग्रेजी में इसे ओ़जोकेराइट के नाम से जानते हैं। इसका वानस्पतिक नाम एस्फाल्टम पंजाबिएनम है। यहॉं यह उल्लेखनीय है कि वानस्पतिक नाम तो वनस्पतियों के होते हैं। इसकी प्रकृति अभी भी विवाद का विषय है – यह पौधा है या खनिज या कुछ और। ऐसे में यह विचारणीय है कि इसे कोई वानस्पतिक नाम देना कहॉं तक ठीक है।

आयुर्वेद में इसे धातुरस, धातुसार, शिलाधातु आदि नामों से भी जाना जाता है। परन्तु इसका शिलाजीत नाम ही ज्यादा प्रचलित है। शिलाजीत का वर्णन सुश्रुत और चरक संहिता में मिलता है।

चरक संहिता में शिलाजीत को चार खनिजों का मिश्रण बताया गया है – सोना, चांदी, तांबा और लोहा। सुश्रुत संहिता में इसमें सीसा और जस्ता होने की बात भी कही गई है। जिन चट्टानों से इसे प्राप्त किया जाता है, उनमें धातु की प्रमुखता के आधार पर इन्हें सुवर्ण, रजत, ताम्र और लौह शिलाजीत का नाम दिया जाता है। लौह शिलाजीत काली-भूरी होती है। इसे सबसे प्रभावी माना जाता है और सामान्य रूप से मिलती भी यही है। सुश्रुत संहिता के अनुसार शिलाजीत, गोमूत्र, त्रिफला, शहद और जौ का एनिमा लेने से मोटापा ठीक किया जा सकता है।

शिलाजीत अशुद्घ रूप में डामर जैसा पदार्थ है, जो वानस्पतिक कार्बनिक पदार्थ का बना गहरा लाल गोंदनुमा पदार्थ है। इसका स्वाद कसैला और गंध बासी गोमूत्र जैसी होती है। यह हिमालय में 1000 से 5000 मीटर की ऊँचाई पर अरूणाचल प्रदेश, कश्मीर के अलावा अफगानिस्तान, भूटान, चीन, पाकिस्तान और रूस में भी पाया जाता है।

उत्पत्ति

सुश्रुत के अनुसार मई-जून के महीनों में पौधों का रस या गोंद जैसे स्राव के रूप में पहाड़ी चट्टानों की दरारों से बाहर आता है। यही शिलाजीत है। द्वारिष्तरंग का कहना है कि शिलाजीत पौधों के लेटेक्स, गम-रेजिन का स्राव है, जो झुलसाने वाली गर्मी में चट्टानों से बाहर आता है। परन्तु शिलाजीत का एकदम सही स्रोत अभी भी शोध का विषय है। शिलाजीत की उत्पत्ति के बारे में कई मत हैं।

  1. शिलाजीत पर हुए शुरुआती शोध से पता चला है कि यह मुख्य रूप से ह्यूमस की बनी हुई है, जो मिट्टी का मुख्य घटक है। इसमें कुछ अन्य कॉर्बनिक पदार्थ भी मिले रहते हैं।
  2. कुछ लोग मानते हैं कि हिमालय में उगने वाला यूफोर्बिया रायलेआन शिलाजीत का स्रोत है, क्योंकि इस पौधे में बहुत सारा लेटेक्स होता है।
  3. बनारस हिन्दू विश्र्वविद्यालय में हुए शोध के अनुसार रे़िजन और लेटेक्स युक्त पौधों का मिट्टी में सड़ना-गलना ही इसका स्रोत होना चाहिए। ता़जा शोध के अनुसार रे़िजनयुक्त पौधों का मृदाकरण ही शिलाजीत में उपस्थित कार्बनिक पदार्थ के लिए जिम्मेदार है।

शिलाजीत के रासायनिक विश्र्लेषण से पता चला है कि इसका लगभग 80 प्रतिशत हिस्सा ह्यूमस का बना है। एक अन्य ताजा शोध का दावा है कि बारबुला, मायनियम, थुडियम जैसे मॉस और ऐस्टेला,स इमोराशिएरा, मारकेंशिया, पेलिया, प्लेजियोकास्मा और एन्थोसेरास जैसे लिवरवर्टस उन चट्टानों के आस-पास लगे रहते हैं, जिनसे शिलाजीत निकलती है। अतः ये ब्रायोफाइट ही शिलाजीत के निर्माण में जिम्मेदार हैं। इन ब्रायोफाइट पौधों के शरीर में वे सभी खनिज एवं धातुएँ मिलती हैं, जो शिलाजीत में पाई जाती हैं। जैसे – तांबा, चांदी, जस्ता, लोहा और सीसा।

शिलाजीत का रासायनिक संगठन कई कारकों जैसे आसपास के पौधों, चट्टान की किस्म, तापमान, आर्द्रता एवं पहाड़ों की ऊँचाइयों पर निर्भर होता है। शिलाजीत में फुल्विक एसिड, ह्यूमिक एसिड प्रचुरता से होते हैं। शिलाजीत भारत के हिमालय क्षेत्र, नेपाल, पाकिस्तान, चीन और तिब्बत में मिलता है। ऐसा विश्र्वास किया जाता है कि हिमालय में जो शिलाजीत मिलता है, वह उन पौधों का जीवाश्म रूप है, जो करोड़ों साल पहले वहॉं पाए जाते थे। शिलाजीत हिमालय की ऊँचाइयों पर गर्मियों में एकत्रित किया जाता है।

पीटर जहालर ने शिलाजीत और उड़न गिलहरी की लेंडियों के बीच कुछ संबंध बताया है। जहॉं शिलाजीत मिलता है, वहीं इनकी लेंडियॉं भी मिलती हैं, विशेषकर उत्तरी पाकिस्तान में।

खोज का इतिहास

शिलाजीत के चमत्कारिक औषधीय गुणों की खोज की दो कथाएँ हैं – एक है, ब्रिटिश खोजी सर मार्टिन एडवर्ड स्टेनले की। उन्होंने सन् 1870 में अपनी यात्रा के दौरान देखा कि गंगा के मैदानी इलाकों के (सफेद) बंदर केवल 10 वर्ष की आयु में ही बूढ़े हो जाते हैं, जबकि इसी प्रजाति के हिमालय की ऊँची पहाड़ियों पर रहने वाले बंदर ज्यादा लंबे समय तक चुस्त-दुरुस्त बने रहते हैं। उन्होंने देखा कि ऊँचाई पर पाए जाने वाले बंदर गर्मियों में चट्टानों की दरारों से स्रावित एक पिघला पदार्थ खाते हैं। स्थानीय लोग इसे शिलाजीत कहते हैं और उसके औषधीय गुणों से बहुत लंबे समय से परिचित हैं।

दूसरी कथा है कि हिमालय में रहने वाले ग्रामीणों ने देखा कि वहॉं के बंदर गर्मियों में ऊँचे पहाड़ों पर चले जाते हैं और वे वहॉं चट्टानों से बहने वाला एक काला-भूरा पदार्थ खाते हैं। स्थानीय निवासी बंदरों की ताकत एवं उम्र का रा़ज उस पदार्थ को बताते हैं। बंदरों को देखकर वे भी उस पदार्थ का उपयोग करने लगे, तो उनके स्वास्थ्य में बहुत सुधार हुआ। इससे उन्हें ज्यादा ऊर्जा, पाचन-संबंधी विकारों से मुक्ति, याद्दाश्त में बढ़ोत्तरी और कामेच्छा में वृद्घि जैसे परिवर्तन दिखे। कुल मिलाकर उन्होंने पाया कि उससे जीवन की गुणवत्ता और अवधि दोनों में सुधार होता है।

कहते हैं कि………

यह एक चमत्कारिक औषधि ही है। गठिया, अस्थि-गठिया और अन्य जोड़ संबंधी रोगों में यह एक प्रभावी औषधि है। यह एक सूजनरोधी पदार्थ के रूप में भी उपयोगी पाई गई है। यह बीटामेथासोन की तरह काम करती है। शिलाजीत अवसाद, मिर्गी आदि में उपयोगी है। यह पाइल्स, फिस्टुला आदि में भी उपयोग की जाती है। यह एक रक्त शुद्घिकारक है। लीवर को स्वस्थ करता है। इससे पाचन ठीक रहता है। इसमें ऑक्सीकरण रोधी पाए जाते हैं, जो बुढ़ापे को दूर भगाते हैं। इसे हृदय रोग में भी उपयोगी पाया गया है, यह रक्तचाप को नियंत्रित करता है।

यह सब पढ़कर तो लगता है कि ऐसा कोई रोग नहीं है, जो शिलाजीत से नियंत्रित नहीं होता। इन दावों में कितनी सच्चाई है, यह तो उचित जॉंच के बाद ही पता चलेगा।

– डॉ. किशोर पंवार

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