19 मई, 1883 को जन्मे श्री विनायक सावरकर आगे चलकर हजारों क्रांतिकारियों के लिए प्रेरणा स्रोत बने। भारतवर्ष ने उन्हें “स्वातंत्र्य वीर’ की उपाधि से विभूषित किया। चाफेकर बंधुओं को जब फॉंसी की सजा सुनायी गयी, तब विनायक के मन में भी क्रांति की चिन्गारियॉं उठने लगीं। पूना के फर्ग्युसन कॉलेज से ही उन्होंने अपनी मंडली बनाने का काम शुरु कर दिया और स्वतंत्रता-आंदोलन के लिए जनता का आठान किया। वीर सावरकर के आदर्श थे, मेजिनी, गेरीबाल्डी, शिवाजी और समर्थ रामदास।
पूना के समीपस्थ पहाड़ी दुर्गों में जाकर, शिवाजी जैसा बल प्राप्त हो, यही प्रार्थना वे व उनके साथी करते। पूना शहर के मध्य में भारत की विदेशी वस्त्रों की पहली होली लोकमान्य तिलक की उपस्थिति में विनायक सावरकर ने ही जलाई थी। एक छात्रवृत्ति पाकर वे इंग्लैंड चले गये, ताकि वहां जाकर क्रांति का शंखनाद कर सकें। वहां उन्होंने फ्री इंडिया सोसाइटी बनायी। बम बनाना भी सीख लिया तथा बाकायदा लंदन “इंडिया हाउस’ में विविध प्रवृत्तियों का प्रशिक्षण देने लगे। एक पच्चीस वर्ष के युवा ने जो कार्य उन दिनों किया, वह आज अकल्पनीय ही माना जाता है।
वीर सावरकर बाद में अंडमान की काल कोठरी में रहे। वर्षों नजरबंद रहे, पर वे हमेशा एक क्रांतिकारी रहे। आजादी के बाद भी उनका संघर्ष ऐसी सभी प्रवृत्तियों से रहा। 26 फरवरी, 1966 को उन्होंने स्वेच्छा से शरीर छोड़ दिया, पर जो कार्य उन्होंने किया, उसे स्वतंत्र भारत कभी भूल नहीं सकता।
श्री विनायक सावरकर
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