कुचलना होगा अलगाववादी सपने को

जम्मू-कश्मीर राज्य के अगर लद्दाख के इलाके की बात छोड़ दी जाए तो पूरा राज्य अशांति और अराजकता की भेंट चढ़ गया है। जहॉं तक लद्दाख का सवाल है, यह दुर्गम पहाड़ी इलाका इतिहास में कभी अशांत रहा ही नहीं। लेकिन बाकी का इलाका अपने अलग-अलग कारणों से इस कदर अशांत हो गया है कि सरकार पूरी ताकत लगाकर भी सामान्य स्थिति बहाल करने में नाकामयाब सिद्घ हो रही है। अमरनाथ यात्रियों को आवंटित ़जमीन की पुनर्वापसी की मॉंग के साथ जम्मू संभाग में शुरू हुआ आंदोलन 47 दिनों में अब तक 42 जानें ले चुका है। फिर भी आंदोलन की आग बुझने का नाम नहीं ले रही है। जम्मू के अधिकांश हिस्सों में कर्फ्यू लगाये जाने के बावजूद अराजकता सड़कों पर उतर कर शासन-प्रशासन का म़जाक उड़ा रही है। समाधान खोजने की दिशा में प्रधानमंत्री द्वारा बुलायी गयी सर्वदलीय समिति में राजनीतिक दलों के नुमाइन्दों ने समाधान खोजने की जगह जलती आग में घी डालना ही ज्यादा उचित समझा है।

अलगाववादी देशद्रोही ताकतों ने अपनी आतंकवादी गतिविधियों के चलते कश्मीर घाटी को दशकों से अशांति और अराजकता की गोद में ढकेल रखा है। पाकिस्तान की मदद और हिमायत से घाटी में कश्मीर को भारत से अलग करने की कोशिशें लगातार जारी हैं। अतएव कश्मीर घाटी के संबंध में यह कत्तई नहीं कहा जा सकता कि वहॉं तात्कालिक तौर पर जो अराजकता उभरी है, वह उसके लिए कोई नई परिघटना है। यह भी सही है कि उन्होंने अपनी इसी ताकत का प्रदर्शन करते हुए अमरनाथ श्राइन बोर्ड को आवंटित भूमि का आवंटन रद्द करवाया। जिसके चलते उन्हें यह मु़गालता हुआ कि वे सरकार की ताकत को जब चाहें तब तौल सकते हैं। अलगाववादियों को पीडीपी जैसी सरकार में शिरकत करने वाली राजनीतिक पार्टी का सिाय समर्थन भी हासिल हुआ। इसके अलावा श्राइन बोर्ड की जमीन वापसी के मुद्दे पर शुरू हुए जम्मू-क्षेत्र के आंदोलन और तथाकथित आर्थिक नाकेबंदी ने भी घाटी और जम्मू को सांप्रदायिक आधार पर विभाजित करने और अपने अलगाववादी मंसूबों को कामयाब बनाने का एक मौका-मुबारक अलगाववादियों की झोली में डाल दिया। उनके हौसले इस कदर बुलन्द हुए कि उनका जत्था पाक-अधिकृत कश्मीर की राजधानी मुजफ्फराबाद को कूच करने को आमादा हो गया। केन्द्र सरकार को धन्यवाद दिया जा सकता है कि अपनी तमाम गलतियों के बावजूद वह समय पर जागी और उसने उनकी इस पाक समर्थित नापाक कोशिश को नाकामयाब कर दिया।

लेकिन उनकी कोशिशें और हौसले पूरी घाटी में कर्फ्यू आयद होने और अलग-अलग जगहों पर तकरीबन बीस से ज्यादा लोगों के मारे जाने तथा पॉंच सौ से ज्यादा के घायल होने के बावजूद कहीं से पस्त होते ऩजर नहीं आते। वे कश्मीर की आ़जादी का सपना पाले हुए हैं और हिन्दुस्तान की सऱजमीन पर एक नया “कोसोवो’ पैदा करना चाहते हैं। अब तक अपनी कश्मीर संबंधी नीति के तहत भारत सरकार ने बड़ी गंभीर गलतियॉं की हैं। कहा तो यह भी जा सकता है कि अब तक वह गलतियॉं ही करती रही है। पाकिस्तान ने उसे शांति-वार्ता के मकड़जाल में अब तक उलझाये रखा है और वह कश्मीर मुद्दे का समाधान खोजती रही है। विडम्बना यह कि उसकी यह कोशिश भारतीय संसद के उस संकल्प वाक्य के बावजूद सामने आई है कि कश्मीर भारत का अविभाज्य अंग है। संसद ने यह भी प्रस्ताव पूर्व में पारित किया है कि पाक अधिकृत कश्मीर को भी वापस लेना है। अब तक की गलतियों का एकमात्र परिहार यही हो सकता है कि कश्मीर की आ़जादी का ख्वाब देखने वाले अलगाववादी देशद्रोहियों और उनके आकाओं को यह संदेश दे दिया जाए कि भारत कश्मीर के संबंध में अपने संकल्प से पीछे नहीं हट सकता और हर उस प्रयास को कुचल देगा जो भारत से कश्मीर को अलग करने का ख्वाब देख रहा है।

मुशर्रफ का भविष्य

राष्टपति पद छोड़ने के हर दबाव को निरस्त करते पाकिस्तान के राष्टपति परवे़ज मुशर्रफ ने अपने खिलाफ लाये जाने वाले महाभियोग का पूरी मजबूती के साथ सामना करने का मन बनाया है। उनका कहना है कि वे इसका सामना एक बहादुर सैनिक के रूप में करेंगे। उनका यह भी कहना है कि उन पर लगाये जाने वाले प्रत्येक अभियोग का उत्तर उनके पास है। वे कहते हैं कि उनका अंजाम चाहे जो हो, लेकिन अगर वे इस महाभियोग का सामना नहीं करेंेगे तो उनके खिलाफ अभियान चलाने वालों की बातें सत्य सिद्घ हो जायेंगी। इसी ाम में उन्होंने पी.पी.पी. के सहअध्यक्ष आसिफ अली जरदारी के इस आरोप को भी बकवास बताया है, जिसके तहत उन पर अमेरिका द्वारा प्रदत्त सैनिक सहायता की धनराशि में घपला करने की बात कही गई है।

इस बीच मुशर्रफ के कट्टर समर्थक भी उनका साथ छोड़ते और उन्हें पद छोड़ने की हिदायत देते ऩजर आ रहे हैं। लेकिन मुशर्रफ महाभियोग का सामना करने के संदर्भ में अडिग दिखाई देते हैं। ऐसा नहीं है कि वे अपनी स्थिति को निरापद समझते होंगे, क्योंकि उनकी समर्थक सेना भी उनके समर्थन में खुल कर सामने नहीं आ रही है। ऐसी स्थिति में दो ही अंजाम हो सकता है कि वे या तो महाभियोग का सामना करते और अपने पर लगाये जाने वाले आरोपों का जवाब देते शहीदी स्वीकार करें अथवा वे जानबख्शी की राजनीतिक पेशकश स्वीकार कर परिदृश्य से बाहर चले जाएं। लेकिन यह राजनीतिक दबावों से संभव नहीं होगा। ऐसा तभी होगा जब सेना उन्हें ऐसा करने को परोक्ष-अपरोक्ष निर्देशित करेगी।

You must be logged in to post a comment Login