श्रावण-मास की पूर्णिमा को सम्पूर्ण भारतवासी एक विशेष पर्व की तरह मनाते हैं और वह खास त्योहार है- भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक “रक्षाबंधन’। इस पर्व को राखी, सलूनो, सलोनी, सलोमण, रखड़ी, पहुँची, रक्षासूत्र, रक्षापोटली आदि के नाम से भी मनाया जाता है। देश के उत्तरी प्रदेशों में इसे “शकुन-महोत्सव’ कहते हैं। दक्षिण में लोग इसे “ह्यग्रीव’ (विष्णु भगवान का एक रूप) जयंती के नाम से मनाते हैं।
गुजरात एवं महाराष्ट में इसे “नारियल पूर्णिमा’ कहते हैं। इस पर्व पर समुद्र में नारियल विसर्जित कर पूजा की जाती है। पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और राजस्थान में बहनें अपने भाइयों की लम्बी आयु और स्वास्थ्य की कामना करते हुए, उनकी कलाई पर कच्चा सूत बांधती हैं और भाई अपनी बहनों की रक्षा करने का वचन देते हैं।
रक्षा-बंधन की शुरुआत कब हुई? इस विषय पर अनेक रोचक कथायें मिलती हैं – कहा जाता है कि विष्णु वामन रूप धारण कर याचक बनकर, दैत्यराज बलि को छलने हेतु पहुँचे थे और उन्हें रक्षासूत्र बांधकर उनसे तीन पग धरती मांगी थी। इस दिन रक्षासूत्र बांधते समय जो मंत्र बोला जाता है, वह इस प्रकार है –
येनबद्घोबलिर्राजा, दानवेंद्रो महाबलः।
तेन स्वाम्भिवहनामि, रक्षेमावलयबवा।।
अर्थात् वही रक्षासूत्र है, जिससे राक्षसों के महाबलवान राजा बलि बांधे गये थे। अतः हे रक्षासूत्र! तुम चल-विचल मत हो, प्रतिष्ठित बने रहो।
डाकू मंगलदास, मानसिंह, रूपा और दाऊ इन सभी ने राखी की रीति निभायी है। इसके अलावा जब हमारा देश गुलाम था, तब भी राष्टीयता का व्रत लेने के लिए असंख्य ाांतिकारी इसे पुण्य-प्रदायक पर्व के रूप में मनाते थे। सरोजिनी नायुडू ने “एक्सेप्ट द ब्राइट गेज फ्रॉम माई हैंड’ शीर्षक से राखी पर पूरी कविता लिख दी थी। भारतीय संस्कृति की यही एक विशेषता है कि प्रत्येक भारतीय हर रिश्ते को पर्व के रूप में अहमियत देते हुए, पूरे उल्लास और खुशियों के साथ मनाता है।
– कीर्ति
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