आ़जादी की सालगिरह फिर आ गई है। साठ सालों से आ रही है। आती रहेगी। साठा सो पाठा। लेकिन इन साठ वर्षों में आ़जादी के रखवालों की बुद्घि चली गई है। साठ साल के प्रजातंत्र में नोट तंत्र तक पहुँच गये हैं। नोटम् नमामि की स्थिति आ गई है। देश ने इन वर्षों में बड़ा विकास किया है। बड़ी प्रगति की है। बम ही बम। आतंक ही आतंक। भ्रष्टाचार ही भ्रष्टाचार। झण्डे ही झण्डे। पण्डे ही पण्डे। संसद में नंगा नाच। नोटों की गड्डियां। सरकारें हारें या जीतें। प्रजातंत्र का दुःख बढ़ता ही जा रहा है। देश की प्रगति के क्या कहने! महंगाई सर चढ़ कर बोल रही है। गरीब की आह, कराह किसी को भी सुनाई नहीं दे रही है। चुनाव की दहलीज पर खड़ा यह दिवस आ़जादी की आंधी ला रहा है। आधी रात को आई थी आ़जादी। आ़जादी से सब खुश थे। मगर खुशी, उमंग, उत्साह, उल्लास पता नहीं कहॉं चला गया और एक औपचारिकता रह गई। “झण्डा ऊँचा रहे हमारा…’ का नारा खो गया। आ़जादी अब साठ साल की हो गई। और देश की स्थिति वैसी की वैसी रही। हम सवा अरब हो गये। इन वर्षों में देश में गरीबी, बेकारी बढ़ी। नेताओं, अफसरों की तोंदें बढ़ीं। आतंकवाद बढ़ा। नक्सली हमले बढ़े। रेलें बढ़ीं। सड़कें बढ़ीं। दुर्घटनाएं बढ़ीं । हवाई जहाज बढ़े। लेकिन गरीब का निवाला छिनता गया।
स्कूल बढ़े। कॉलेज बढ़े। विश्र्वविद्यालय बढ़े। बड़े-बड़े संस्थान बढ़े। मगर शिक्षा का स्तर गिरता चला गया।
पुलिस ब़ढ़ी। राजनैतिक हस्तक्षेप बढ़ा। प्यार, मोहब्बत, भाईचारा, मान-सम्मान कम होता चला गया। संवेदनाएँ मरती गयीं। संवादहीनता बढ़ती चली गई। हमने वनों को काट दिया। पर्यावरण को नष्ट कर दिया। पशु-पक्षी मर गये। या हम मार कर खा गये। अकाल आये। बाढ़ें आईं । आबादी बढ़ी, योजनाएं बढ़ीं। स्वयंसेवी संस्थान बढ़े। सरकारें बढ़ीं। नौकरशाही बढ़ी। मगर गरीब की फाइल नहीं चली। वह रुकी पड़ी रही।
आ़जादी के क्या कहने। हम खूब ऊपर उठे। उठ-उठ कर गिरे। गिर-गिर कर उठे। लोग राजनीति को वेश्याओं का पेशा कहने लगे। आ़जादी के इस वर्ष में गरीब और भी ज्यादा गरीब और अमीर और भी ज्यादा अमीर होता चला गया।
आ़जादी के बाद उद्योग-धन्धे भी खूब बढ़े। शेयर बाजार भी खूब बढ़ा। जमीनों के भाव भी खूब बढ़े मगर गरीब की झोंपड़ी पर छप्पर नहीं डला। वह बेचारा खुले आसमान के तले ही सोता रहा। आ़जादी के बाद रोटी की लड़ाई में व्यस्त रहा गरीब। मगर सरकारें शेयर बाजार की लड़ाई में व्यस्त हो गईं। आ़जादी के बाद हमने परमाणु विस्फोट किये और सरकारें परमाणु-परमाणु खेलने लग गईं। आ़जादी के बाद क्या नहीं हुआ देश में। देश ने बड़ी तरक्की की। योजना आयोग में अफसर घुस गये। नेताओं ने बुलेट प्रूफ जैकेट खरीद ली। जैमर वाली गाड़ियों में चलने लगे। देश में दुपहिया वाहन ाान्ति हो गई। मारुति लहर चल गई। दाल-चावल तक मिलना मुश्किल हो गया। आ़जादी के बाद बड़ी तरक्की की देश ने।
टीवी चैनलों, अखबारों, मीडिया की भरमार हो गई। सब कुछ बिकने लगा। सब कुछ बाजार हो गया। आकाशवाणी, दूरदर्शन तक बाजार हो गये। देश में केवल नग्नता बची। बाकी सब बिक गया। एक-एक एम.पी. बिकने को तैयार। खूब घोड़े बिके। एक चैनल ने तो घोड़ों की पूंछें तक बेच दीं। देश में भ्रष्टाचार, भुखमरी, अर्धसत्य के कारण सब तरफ दिखाई देने लगे। सब कुछ अधूरा ही रहा। अधूरी आ़जादी की तरह। इन सब विसंगतियों के बावजूद आ़जादी की सालगिरह पर बधाई देने को जी चाहता है क्योंकि इस महान देश में प्रजातंत्र की महान जड़ें हैं, जिन्हें कोई भी उखाड़ नहीं सकता। पन्द्रह अगस्त मुबारक हो! तुम फिर आना। मैं ही नहीं पूरा देश तुम्हारा इन्त़जार करेगा।
– यशवन्त कोठारी
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