अंतर्राष्टीय बा़जार में बढ़ती कीमतों का भारत पर असर

गरीबी और महंगाई चक्की के ऐसे दो पाट हैं जिनके बीच लगातार करोड़ों लोग पिसते जा रहे हैं। दिनों दिन बढ़ती महंगाई और गरीबी की मार झेलते सिर्फ भारत के ही नहीं दुनिया भर के लोग परेशान हैं। खाने की वस्तुओं की बढ़ती कीमतों की वजह से फिलीपींस, मिस्त्र, बांग्लादेश, आीका, अमेरिका आदि कई देशों में दंगे भड़क चुके हैं। स्थिति बहुत विकराल रूप धारण कर चुकी है। विश्र्व बैंक के अध्यक्ष रॉबर्ट जोलिक ने चेतावनी देते हुए कहा है कि शीघ्र ही यदि महॅंगाई पर काबू नहीं पाया गया तो दुनिया को 10 करोड़ नए गरीब मिल जायेंगे।

इस बात से स्पष्ट है कि जब इतने लोगों पर गरीबी की मार होगी तो करोड़ों लोग दाने-दाने को मोहताज होंगे, और दूसरी ओर महंगाई और बढ़ जायेगी।

विश्र्व बैंक और अंतर्राष्टीय मुद्रा कोष ने पिछले दिनों खाद्य संकट पर बैठक बुलाई थी। इसमें भारत के वित्तमंत्री पी. चिदम्बरम भी शामिल हुए थे। उन्होंने कहा कि भारत में बढ़ती महॅंगाई चिंता का विषय है। इसके लिए पेटोल एवं खाद्य पदार्थों की कीमतों पर काबू करना अत्यंत आवश्यक है।

पिछले 3-4 वर्षों में खाद्य पदार्थों की कीमतें लगभग दोगुनी हो गई हैं। कम आय वालों और मध्यम वर्ग का भोजन पर खर्च बढ़ गया है इसलिए गरीबों की संख्या बढ़ती जा रही है। यह बात भी यद्यपि सही है कि कुछ हद तक लोगों की आय में भी बढ़ोत्तरी हुई है परन्तु आय के मुकाबले अनाज की कीमतों में भी बेतहाशा वृद्घि हुई है। इस वृद्घि के लिए बढ़ती हुई मांग और खराब मौसम को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। मौसम में भी लगातार परिवर्तन आता जा रहा है और इस बदलते हुए खराब मौसम की वजह से कई देशों में फसलें चौपट हो गई हैं। इसके अलावा जैविक ईंधन के लिए जमीनों के इस्तेमाल किये जाने के कारण अनाज के उत्पादन में कमी आई है। गेहूँ, चावल, दाल और अन्य अनाजों की कीमतों में ते़जी से बढ़ोत्तरी हुई है। अन्तर्राष्टीय बा़जार में भी इन बढ़ती कीमतों से हलचल मची हुई है। भारत, चीन और वियतनाम में पिछले दिनों खाद्यान्न संकट के लिए भारत की बढ़ती आर्थिक समृद्घि और उसके कारण अधिक खाद्य पदार्थों के उपयोग को जिम्मेदार ठहराया। भारत के लोगों के अधिक खाने से उनके पेट में क्यों दर्द हो रहा है? यह समझ नहीं आया।

यह एक तथ्य है कि भारत ते़जी से विकासशील देशों की रेस में आगे बढ़ता जा रहा है। आर्थिक दृष्टि से भारतीय अधिक समृद्घ होते जा रहे हैं। भारत की यह बढ़ती हुई समृद्घि कई देशों की आँखों में खटक रही है।

सवाल है, इस बढ़ती हुई महंगाई के पीछे क्या वास्तव में खाद्यान्न संकट ही जिम्मेदार है? इस प्रश्र्न्न का जवाब ढूंढने पर पता चलता है कि उत्पादन तो पिछले कुछ वर्षों की तुलना में बढ़ा ही है। लेकिन उत्पादकों को उतने अधिक लाभ नहीं मिल रहे हैं जबकि उपभोक्ताओं को बहुत बढ़ी कीमतों में माल मिल रहा है अर्थात् बीच के बिचौलिए और रिटेलर ने अंतर्राष्टीय बा़जार की बढ़ती कीमतों (जो कि सरकारों के आयात-निर्यात नीति के कारण प्रभावित होती हैं) को देख कर उपभोक्ताओं को ऊँचे दामों पर वस्तुएं देना प्रारम्भ कर देते हैं। कीमतों के बढ़ने के साथ-साथ वे सामान की मात्रा भी दस से बीस प्रतिशत तक कम कर देते हैं। वे अपने पैकेटों पर खुलेआम लिख कर बताते हैं कि मात्रा कम कर दी गई है। फिर भी सरकारी स्तर पर इन पर कोई रोक-टोक या पाबंदी नहीं लगाई जाती है। बेचारा उपभोक्ता अधिक कीमत देकर भी कम माल लेने को विवश है। जब किसी सामान की लागत नहीं बढ़ी है, उत्पादक को अधिक पैसा नहीं मिल रहा है, सरकार भी महंगाई बढ़ने से चिंतित दिखाई देती है, और वस्तुओं के दाम बढ़ते जा रहे हैं तो प्रश्र्न्न यह उठता है कि यह बीच में कौन है जो महंगाई बढ़ाने में भूमिका निभा रहा है? और इन बिचौलियों पर सरकार की निगाह क्यों नहीं पड़ती, या पड़ती है तो मौन सहमति क्यों है? इन प्रश्र्न्नों के जवाब यदि हमें मिल जायें तो यह स्पष्ट हो जायेगा कि यह सारा खेल किसकी मिलीभगत से खेला जा रहा है और क्यों महंगाई बढ़ती जा रही है?

– राजश्री रावत “राज’

You must be logged in to post a comment Login