बुद्घिजीवियों से प्रार्थना

जागो बुद्घिजीवियों जागो, कब तक अपना सब कुछ बेचकर सोते रहोगे। देश संकट में है, देश की संस्कृति घोर संकट में है। संकटमोचक बनो, उद्घार करो, कब तक डरते रहोगे, किससे डरते हो? लोगों में दोहरी मानसिकता पनप रही है, उसे इकहरी बनाओ। समय आ गया है कि बुद्घिजीवी वर्ग भय त्यागकर सामने आए। अब न तो उनके पीछे रहने से काम चलेगा और न ही यह रोना रोने से कि “हम कर ही क्या सकते हैं’, यह आठान एक “जानी-मानी अभिनेत्री की ओर से है। वही अभिनेत्री जो कभी “शांति’ का पर्याय थी। अब तो कई लोग उसके चलते अशांत हो उठते हैं। कभी उनकी तिरंगा साड़ी के चलते लोग अशांत हुए तो कभी कांधे की एक डोरी के चलते असहज हुए। कभी शरीर पर गोदना गुदवाने के कारण धार्मिक लोग बौखलाए तो कभी उनकी साफगोई से परेशान हुए। क्रिकेट में भी अच्छी-खासी पैठ है उनकी। टीवी के परदे पर अपनी अदाओं का जादू बिखेरने का सलीका कोई उनसे सीखे। आइपीएल क्रिकेट के लिए उन्होंने बाल छंटवाए। लिहाजा कई छंटे। बहरहाल, अभिनेत्री जी की बुद्घिजीवियों से यह अपील इसी  क्रिकेट घटनााम के कारण है। उनकी अपील इसलिए मुखर हुई है कि हमारा देश अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों की बराबरी का दावा तो कर रहा है पर सोच में अब भी वही बाबा आदम का पिछड़ापन है।

अपेक्षाकृत ठंडे देश की होने के बावजूद उन “तरक्कीपसंद देशों’ में महिलाएँ कम कपड़े पहनती हैं, पर हमारे इस गर्म देश में कम कपड़ों के कारण हर जगह हायतौबा मची रहती है। आखिर इस तरह हम उन देशों की बराबरी कैसे कर सकते हैं? उनका विश्र्वास है कि बुद्घिजीवी इस मामले में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। उन्हें चाहिए कि वे अपना-अपना तर्क सामने रखकर कम कपड़ों के महत्व पर प्रकाश डालें, उसका समर्थन करें। विचार-विमर्श करें, गोष्ठियां आयोजित करें ताकि कम कपड़े पहनकर हम अमेरिका और ब्रिटेन के समकक्ष खड़े हो सकें। अभिनेत्री का यह कहना बिल्कुल वाजिब है कि उन देशों में चीयरलीडर्स का होना खेलों में आम बात है, पर यहां खामख्वाह का बखेड़ा खड़ा किया गया और बुद्घिजीवी चुप्पी साधे रहे। उन्हें आगे आकर चीयरलीडर्स का समर्थन करना चाहिए था। आखिर कब देश को पंद्रहवीं सदी से बाहर निकालेंगे? ग्लैमर का तड़का जब सब जगह भरपूर लग रहा है तो फिर क्रिकेट में भी इसकी बघार लग जाये तो हर्ज ही क्या है? तथाकथित अश्र्लीलता वास्तव में रत्ती भर भी नहीं होती।

अभिनेत्री का तर्क है कि मीडिया के कैमरामैनों की आँखें हमेशा अश्र्लीलता तलाशती रहती हैं और ये लोग कैमरे का एंगल इस कदर फिट करते हैं कि साफ-सुथरापन भी भौंडा हो जाता है। दम है इस बात में। आइंदा से कैमरामैनों को चाहिए कि वे गले से ऊपर का हिस्सा ही कवर किया करें। न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी। कहीं किसी को बखेड़ा खड़ा करने का अवसर ही नहीं मिल पाएगा।

अभिनेत्री का बुद्घिजीवियों के प्रति यह आठान वाकई काबिले-गौर है। वैसे भी बुद्घिजीवी करते-धरते कुछ हैं नहीं, बस बैठे-बैठे दिमाग चलाते रहते हैं। बहुत हुआ तो कहीं आमंत्रित हुए तो भाषण दे लिया या फिर कलम घिसते रहे।

चलते-चलतेः एक युवक अपनी प्रेमिका का हाथ मांगने के लिए उसके पिता के सामने उपस्थित हुआ। पिता ने बातों ही बातों में पूछ लिया कि वह करता क्या है? युवक बुद्घिजीवी था। कहने लगा, “मैं लेखक हूँ, कवि हूँ।’ इस पर प्रेमिका के पिता बोले, “सो तो ठीक है, पर तुम काम क्या करते हो?’

जागो बुद्घिजीवियों जागो, कब तक अपना सब कुछ बेचकर सोते रहोगे। देश संकट में है, देश की संस्कृति घोर संकट में है। संकटमोचक बनो, उद्घार करो, कब तक डरते रहोगे, किससे डरते हो? लोगों में दोहरी मानसिकता पनप रही है, उसे इकहरी बनाओ। समय आ गया है कि बुद्घिजीवी वर्ग भय त्यागकर सामने आए। अब न तो उनके पीछे रहने से काम चलेगा और न ही यह रोना रोने से कि “हम कर ही क्या सकते हैं’, यह आठान एक “जानी-मानी अभिनेत्री की ओर से है। वही अभिनेत्री जो कभी “शांति’ का पर्याय थी। अब तो कई लोग उसके चलते अशांत हो उठते हैं। कभी उनकी तिरंगा साड़ी के चलते लोग अशांत हुए तो कभी कांधे की एक डोरी के चलते असहज हुए। कभी शरीर पर गोदना गुदवाने के कारण धार्मिक लोग बौखलाए तो कभी उनकी साफगोई से परेशान हुए। िाकेट में भी अच्छी-खासी पैठ है उनकी। टीवी के परदे पर अपनी अदाओं का जादू बिखेरने का सलीका कोई उनसे सीखे। आइपीएल िाकेट के लिए उन्होंने बाल छंटवाए। लिहाजा कई छंटे। बहरहाल, अभिनेत्री जी की बुद्घिजीवियों से यह अपील इसी िाकेट घटनााम के कारण है। उनकी अपील इसलिए मुखर हुई है कि हमारा देश अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों की बराबरी का दावा तो कर रहा है पर सोच में अब भी वही बाबा आदम का पिछड़ापन है।

अपेक्षाकृत ठंडे देश की होने के बावजूद उन “तरक्कीपसंद देशों’ में महिलाएँ कम कपड़े पहनती हैं, पर हमारे इस गर्म देश में कम कपड़ों के कारण हर जगह हायतौबा मची रहती है। आखिर इस तरह हम उन देशों की बराबरी कैसे कर सकते हैं? उनका विश्र्वास है कि बुद्घिजीवी इस मामले में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। उन्हें चाहिए कि वे अपना-अपना तर्क सामने रखकर कम कपड़ों के महत्व पर प्रकाश डालें, उसका समर्थन करें। विचार-विमर्श करें, गोष्ठियां आयोजित करें ताकि कम कपड़े पहनकर हम अमेरिका और ब्रिटेन के समकक्ष खड़े हो सकें। अभिनेत्री का यह कहना बिल्कुल वाजिब है कि उन देशों में चीयरलीडर्स का होना खेलों में आम बात है, पर यहां खामख्वाह का बखेड़ा खड़ा किया गया और बुद्घिजीवी चुप्पी साधे रहे। उन्हें आगे आकर चीयरलीडर्स का समर्थन करना चाहिए था। आखिर कब देश को पंद्रहवीं सदी से बाहर निकालेंगे? ग्लैमर का तड़का जब सब जगह भरपूर लग रहा है तो फिर िाकेट में भी इसकी बघार लग जाये तो हर्ज ही क्या है? तथाकथित अश्र्लीलता वास्तव में रत्ती भर भी नहीं होती।

अभिनेत्री का तर्क है कि मीडिया के कैमरामैनों की आँखें हमेशा अश्र्लीलता तलाशती रहती हैं और ये लोग कैमरे का एंगल इस कदर फिट करते हैं कि साफ-सुथरापन भी भौंडा हो जाता है। दम है इस बात में। आइंदा से कैमरामैनों को चाहिए कि वे गले से ऊपर का हिस्सा ही कवर किया करें। न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी। कहीं किसी को बखेड़ा खड़ा करने का अवसर ही नहीं मिल पाएगा।

अभिनेत्री का बुद्घिजीवियों के प्रति यह आठान वाकई काबिले-गौर है। वैसे भी बुद्घिजीवी करते-धरते कुछ हैं नहीं, बस बैठे-बैठे दिमाग चलाते रहते हैं। बहुत हुआ तो कहीं आमंत्रित हुए तो भाषण दे लिया या फिर कलम घिसते रहे।

चलते-चलतेः एक युवक अपनी प्रेमिका का हाथ मांगने के लिए उसके पिता के सामने उपस्थित हुआ। पिता ने बातों ही बातों में पूछ लिया कि वह करता क्या है? युवक बुद्घिजीवी था। कहने लगा, “मैं लेखक हूँ, कवि हूँ।’ इस पर प्रेमिका के पिता बोले, “सो तो ठीक है, पर तुम काम क्या करते हो?’

– रतनचंद “रत्नेश’

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