भारत ही नहीं, अपितु विश्र्व के अनेक देशों में भगवान शिव और मॉं पार्वती की समय-समय पर अत्यंत प्राचीन प्रतिमाएं मिली हैं, जो अपने-अपने क्षेत्र में ही नहीं, बल्कि दूर-दूर तक प्रसिद्घ हैं। ये आस्था तथा आकर्षण का केंद्र हैं। भगवान शंकर ने पृथ्वी-लोक पर अनेक बार लीलाएँ की हैं और वे अनेक स्थानों पर लिंग रूप में पूजे जाते हैं। हरियाणा की पावन धरा तो सभी देवताओं को अत्यंत प्रिय रही है। यही कारण है, यहॉं समस्त देवी-देवताओं के अत्यंत प्राचीन मंदिर दिखाई पड़ते हैं।
हरियाणा में भगवान शिव के भी असंख्य मंदिर हैं। इनमें से अनेक तो प्राचीन हैं। यहां के प्राचीन शिवालयों में रेवाड़ी का शिवालय बहुत प्रसिद्घ है। कलायत के शिवालय को तो पुरातत्व विभाग ने अपने संरक्षण में ले रखा है, क्योंकि यह अपने आपमें अद्वितीय शिवालय है। कुरुक्षेत्र के स्थाणीश्र्वर महादेव तो विश्र्व प्रसिद्घ हैं। इनका संबंध महाभारत कालीन है। हरियाणा के जिला यमुनानगर में भगवान शिव के अनेक पावन स्थल हैं, जिनमें श्री कालेश्र्वर महादेव मठ की प्रतिष्ठा सर्वविख्यात है। यहां के अमादलपुर स्थित सूरजकुंड मंदिर में स्थित पाशुपत महादेव भी महाभारत कालीन है। यहां के टोपरा कला में तो अत्यंत कलात्मक प्राचीन शिवालय है। कस्बा बूडिया के श्री पातालेश्र्वर महादेव की भी मान्यता बहुत है। जगाधरी के श्री गौरीशंकर महादेव तथा भटोली के शिवालय अत्यंत प्राचीन हैं। यहां के प्राचीन तीर्थस्थल कपाल मोचन के आसपास भी अनेक प्राचीन शिवालय हैं। श्री सिंधेश्र्वर महादेव सिंधु वन में स्थित हैं तो श्री कपालेश्र्वर महादेव कपाल मोचन में। कपाल मोचन में ही एक और मंदिर भी स्थित है, जो जमनादास टेम्पल के नाम से प्रसिद्घ है। कपाल मोचन का यह टेम्पल अलौकिक है। इसे श्री राधा-कृष्ण मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।
जमनादास टेम्पल इसलिए प्रसिद्घ है, क्योंकि यहां दसवीं या ग्यारहवीं शताब्दी की शिव-पार्वती की अत्यंत आकर्षक प्रतिमा स्थापित है। यह प्रतिमा अद्भुत कलात्मकता लिए है, जो श्रद्घालुओं के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र है। ये शिव-पार्वती स्लेटी रंग के हैं। इस प्रतिमा का आकार 1र्3े12 इंच है। यह पुरातत्व विभाग द्वारा प्रमाणित है। स्लेटी रंग के पत्थर पर कारीगरों द्वारा अद्भुत ढंग से प्रतिमा को उकेरा गया है। मंदिर के पुजारी बताते हैं कि यह प्रतिमा यहां खुदाई के दौरान प्राप्त हुई थी।
कपाल मोचन का जमनादास टेम्पल अत्यंत प्राचीन है। इसी में शिव-पार्वती की प्रतिमा के सामने ही एक प्राचीन शिवलिंग भी स्थापित है। कार्तिक मास में कपाल मोचन के प्राचीन सरोवरों में स्नान हेतु एक विशाल मेले का आयोजन होता है। उस मेले में आसपास के क्षेत्र के लाखों श्रद्घालु भाग लेते हैं। अधिकतम श्रद्घालुओं को यहां के बारे में पूर्ण जानकारी नहीं होती है। इस कारण वे पुण्य-लाभ से वंचित रह जाते हैं। लेकिन जिनको जानकारी मिलती है, वे दर्शन पाकर अन्य को भी बताते हैं। वैसे तो कपाल मोचन में वर्ष भर विभिन्न पर्वों पर स्नान हेतु श्रद्घालु आते रहते हैं, जिन्हें यहां की जानकारी मिल जाती है। वे यहां आकर अवश्य दर्शन करते हैं। पुजारी बताते हैं कि यहां आकर अनेक श्रद्घालुओं की मन्नतें पूरी हुई हैं। यही कारण है कि अब यहां श्रद्घालुओं की संख्या बढ़ने लगी है।
– डॉ. अनिल “सवेरा’
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