एक अरब कम्प्यूटर और लापरवाह सरकारें

दुनियाभर में मे़ज पर रखे जा सकने वाले “डेस्क टॉप’ कम्प्यूटरों या उनसे भी छोटे “लैपटॉप’ कम्प्यूटरों की संख्या इसी वर्ष एक अरब तक पहुँच जाएगी। गत सप्ताह यह समाचार छपने के कुछ ही दिन बाद चंडीगढ़ के बहुत से सरकारी स्कूलों में भी बच्चों को कम्प्यूटर शिक्षा सुलभ नहीं होने की खबर पर हैरानी स्वाभाविक होगी। चंडीगढ़ देश के बेहतर योजनापूर्वक विकसित शहरों में अग्रणी है, प्रति व्यक्ति आय के मामले में देश में लगभग सबसे आगे है। प्रति ह़जार व्यक्ति सर्वाधिक वाहनों का आंकड़ा भी इसकी आधुनिकता और संपन्नता का सबूत माना जाता है। ऐसे में चंडीगढ़ के इस क्षेत्र में पिछड़ने पर हैरानी होना स्वाभाविक है। “पर्सनल कम्प्यूटर’ या पीसी का चलन 1970 के दशक के उत्तरार्ध में शुरू हुआ और लगभग तीन दशक में इनकी आबादी एक अरब तक पहुँच गयी यानी औसतन हर छह व्यक्तियों के पीछे एक पीसी। ़जाहिर है, इस रफ्तार के पीछे नये युग के इस अलादीन के चिराग की बहुविध उपयोगिता मुख्य कारण है। वैज्ञानिक आंकड़ों का हिसाब-किताब रखने से लेकर कारोबारी हिसाब-किताब रखने, दस्तावे़ज तैयार करने, मुद्रण, चित्रों के संपादन, गीतों व फिल्मों के संपादन, दस्तावे़जों के वितरण, प्रसारण, ईमेल सहित अनेक काम करने की क्षमता वाले इस उपकरण की क्षमता और उपयोगिता लगातार ते़जी से बढ़ती जा रही है। यही इसकी पैठ बढ़ने की ते़ज रफ्तार का बड़ा कारण है।

शुरू में ज्यादातर लोग इसकी बहुविध उपयोगिता नहीं समझते थे तो स्पष्टतः कारण यही रहा कि इसकी क्षमताओं का विकास ामिक रूप से हुआ है। दाम में कमी और बहुविध उपयोगिता सामने आने के परिणामस्वरूप पीसी दफ्तरों से निकलकर घरों तक पहुँच गया। मनोरंजन के वाहक के साथ-साथ इंटरनेट से जुड़कर घरों में बच्चों की पढ़ाई, ईमेल, जानकारी के विशाल वैश्र्विक तंत्र से जुड़ाव के चलते यह लगातार ज्यादा उपयोगी दिखने लगा है। चिकित्सा, साहित्य, चित्रकला, भाषा, कानून के विद्यार्थी भी अब इस जादुई लगने वाले करामाती यंत्र का उपयोग करते हैं। एक दशक पहले तक यह मुख्यतः इंजीनियरिंग तथा वास्तुकला के विद्यार्थियों का आधुनिक खिलौना समझा जाता था। आज जब अमेरिका तथा यूरोप के स्कूली छात्र कम्प्यूटर के माध्यम से अपनी गणित जैसे अपेक्षाकृत कठिन विषय की ट्यूशन के लिए भारतीय ट्यूटरों से संपर्क करते हैं, तो भारत की स्कूली शिक्षा तो दूर कालेज शिक्षा में भी कम्प्यूटर सर्वसुलभ नहीं होने पर हैरानी और परेशानी होती है।

देश के ज्यादातर राज्यों में स्कूल तथा कॉलेज की पढ़ाई में कम्प्यूटर का इस्तेमाल अभी बहुत कम है। सरकारें समय-समय पर इस आशय की घोषणाएं करती रहती हैं, पर ़जमीनी स्तर पर स्थिति यह है कि जहॉं कम्प्यूटर हैं वहॉं भी वे छात्रों को नियमित अभ्यास या पढ़ाई के लिए उपलब्ध नहीं हैं। पंजाब, हरियाणा तथा हिमाचल के सरकारी स्कूलों में कम्प्यूटर भी हैं और कम्प्यूटर शिक्षक भी, पर इनका इस्तेमाल महज काग़जी होने के सच से ज्यादातर जानकार सहमत हैं। कॉलेजों में स्थिति कुछ भिन्न है। वहॉं कम्प्यूटर को विषय के रूप में पढ़ने वाले या विज्ञान के कुछ विषयों के विद्यार्थियों को कम्प्यूटर प्रयोगशाला की सुविधा सुलभ है। इसका इस्तेमाल और प्रशिक्षण कितना होगा, यह मुख्यतः प्रयोगशाला प्रमुख और संबंधित विषयों के अध्यापकों पर निर्भर करता है। चंडीगढ़ के एक जाने-माने कॉलेज में समाजशास्त्र के शिक्षक के अनुसार ज्यादातर कॉलेजों में “व्यक्तिगत विकास प्रशिक्षण’ या किसी अन्य नाम से हर छात्र को कम्प्यूटर के इस्तेमाल का प्रशिक्षण देने की सशुल्क व्यवस्था अनिवार्य है। इसके बावजूद यह विषय अनिवार्य नहीं होने के कारण ज्यादातर विद्यार्थी कम्प्यूटर फीस देने के बाद भी इसकी तरफ पर्याप्त ध्यान नहीं देते। कम्प्यूटर का इस्तेमाल ज्यादातर वही विद्यार्थी करते हैं जिनका शिक्षक, परिवारजन, मित्र आदि की प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष प्रेरणा के चलते इसके प्रति व्यक्तिगत रुझान बन जाये।

विद्यार्थियों से हरसंभव बहाने से पैसा निकलवाने के लिए बदनाम गैर-सरकारी स्कूल कम्प्यूटर क्लास के नाम पर पैसा लेकर उन्हें कुछ समय कम्प्यूटर पर हाथ चलाने का मौका देते हैं पर आमतौर पर पुराने, कामचलाऊ और थोड़े से कम्प्यूटरों के चलते बच्चों को सीखने का सीमित-सा मौका ही मिल पाता है। इसका इतना लाभ ़जरूर है कि कम्प्यूटर के बारे में बच्चों का संकोच समाप्त हो जाता है और कुछ बच्चों में और सीखने की ललक पैदा होती है। सरकारी स्कूलों, खासकर ग्रामीण इलाकों के स्कूलों में इतना भी सामान्य नहीं है और ज्यादातर स्कूलों में कम्प्यूटर शिक्षक नहीं हैं। ऐसे थोड़े ही स्कूल हैं जहॉं कम्प्यूटर ठीक से लगे हैं, स्कूल प्रमुख बच्चों में उसके प्रति रुचि जगाने को उत्सुक हैं और कम्प्यूटर शिक्षक उनमें रुचि जगाने में सक्षम भी हैं। जानकारों का मानना है कि सरकारी स्कूलों में यह तीनों शर्तें बहुत कम जगहों पर पूरी होती हैं। इसलिए सब बच्चों का स्कूल में रहते हुए कम्प्यूटर से परिचय भी ठीक से नहीं हो पाता। सरकारी योजना अभी ज्यादातर काग़जी है। क्योंकि राज्यों के शिक्षा विभागों में उच्च अधिकारी भी इस ओर ज्यादा ध्यान नहीं देते, इसलिए यह विषय कुल मिलाकर एक औपचारिकता मात्र रह गया है।

विशेष आर्थिक क्षेत्रों, एजुकेशन सिटी, आईटी सिटी, नैनो सिटी जैसी आकर्षक विकास योजनाओं को लागू करने के लिए कम्प्यूटर का इस्तेमाल करने में कुशल युवाओं की ़जरूरत होगी, यह बात सरकारें भी जानती हैं, कहती भी हैं। इसके अनुरूप समुचित जमीनी तैयारी अभी तक दिखायी नहीं देती। हाल में हरियाणा सरकार ने पिछड़ी जातियों के परिवारों तथा गरीबी रेखा से नीचे परिवारों के मेधावी छात्रों के लिए कॉलेज स्तर तक मुफ्त शिक्षा की व्यवस्था के लिए 500 करोड़ रुपये का प्रावधान किया है। इसी तरह राज्य सरकार ने उपग्रह आधारित शिक्षा व्यवस्था “एजूसैट’ के माध्यम से राज्य के सुदूर क्षेत्रों में स्थित सरकारी कॉलेजों को भी विशेषज्ञ शिक्षकों की सेवाएं सुलभ कराने के लिए करोड़ों रुपये का प्रावधान किया है। स्कूलों तथा कॉलेजों में कम्प्यूटर शिक्षा की व्यवस्था में कम्प्यूटर शिक्षा से जुड़ी कंपनियों की भूमिका के चलते वहॉं ़जरूरी ढांचा और गु़जारे भर की सुविधाएं सुलभ हैं, पर यह महज दिखावा बनकर रह गयी हैं। स्थिति बदलने के लिए शिक्षकों, संस्थान प्रमुखों, विद्यार्थियों तथा उनके अभिभावकों की भागीदारी तथा रुचि ़जरूरी है।

कम्प्यूटर आज के युग में उतना ही उपयोगी है जितना दस वर्ष पहले कैलकुलेटर था और उससे पहले गुणा-भाग में इस्तेमाल होने वाले “पहाड़े’ तथा पैन थे। वैश्र्विक होड़ के इस दौर में जो बच्चे इसका इस्तेमाल नहीं जानते उनका आगे बढ़ना आसान नहीं- सरकारों ने यह बताये जाने पर ही सभी स्कूलों में कम्प्यूटर शिक्षा की व्यवस्था का फैसला किया है। ़जाहिर है, उसे लागू करने की ठीक से कोशिश नहीं होने के कारण वांछित परिणाम मिलना संभव नहीं। इस व्यवस्था को ठीक से लागू करने में चंडीगढ़ की सफलता सबसे आसान होनी चाहिए। इस छोटे क्षेत्र के सभी स्कूलों में कम्प्यूटर शिक्षा सब बच्चों तक पहुँचाने की कोशिशों की रुकावटें दूर करना अपेक्षाकृत आसान है। यहॉं इसे सफल बनाकर पड़ोसी राज्यों के लिए बेहतर, जॉंची-परखी रणनीति लागू करने का रास्ता आसान बनाया जा सकता है। गुड़गांव में सूचना टैक्नोलॉजी पर आधारित कंपनियों का कारोबार जिस ते़जी से बढ़ा है उसमें देश के अनेक राज्यों के युवाओं की बड़ी भूमिका है। पंजाब, हरियाणा, हिमाचल, चंडीगढ़ में सूचना टैक्नोलॉजी पर आधारित कंपनियों के पैर जमाने के दौर में इस तरफ ध्यान देकर युवा पीढ़ी के लिए आगे बढ़ने का रास्ता आसान बनाना समाज और सरकार की चुनौती भी है और ़िजम्मेदारी भी।

 

– अशोक मलिक

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