अनंत है देवाधिदेव शिव की महिमा

bhagwan-shivजगदीश्र्वर परमात्मा “शिव’ की महिमा अनंत है। “ॐ’ जिनका वाचक है, संपूर्ण तत्व जिनके स्वरूप हैं, जो संपूर्ण तत्वों में विचरण करने वाले हैं, समस्त लोकों के एकमात्र कर्ता और संपूर्ण विश्र्व के एकमात्र पालनहार हैं तथा अखिल विश्र्व के एक ही संहारकारी हैं। सब लोकों के एकमात्र गुरु, समस्त संसार के एक ही साक्षी, जो सबको वर देने वाले हैं तथा पीड़ाओं का नाश करते हैं, उन शशि शेखर का अखंड चैतन्य स्वरूप भक्तों के लिए आनंददायक है।

देवाधिदेव मृत्युंजय कल्प के अंत में समस्त भुवनों को ध्वस्त करके भी आनंद विभोर हो नृत्य करते हैं। चतुर्मुख गौरीश चारों दिशाओं की आपदाओं से मानव मात्र की रक्षा के लिए तत्पर रहते हैं।

अमोघ शिव-कवच में ऋषभ जी ने भव की संपूर्ण बाधाओं को शांत करने वाला कहा है कि यह देहधारियों के लिए गोपनीय रहस्य है। शिव महिमा स्तोत्र में पिनाकपाणि भगवान वीरभद्र की महिमा का विस्तार से वर्णन है।

महेशान्ना परो देवो महिम्न्नो नापरा स्तुतिः

अधोरान्ना परो मंत्रो नास्ति तत्वं गुरोः परम्

श्री महादेव जी से बढ़कर कोई देवता नहीं है। महिम्न से बढ़कर कोई स्तोत्र नहीं है। अघोर मंत्र से बढ़कर कोई मंत्र नहीं है, अघोर मंत्र वैदिक मंत्र है। गुरु से बढ़कर कोई तत्व नहीं है। महाबली रावण कृत “शिव-तांडव’ के एक श्लोक के अर्थानुसार जिन भगनेत्रधारी ने अपने भाल रूपी प्रांगण में धकाधक जलते हुए, वव्हि के कण से कामदेव को भस्म कर दिया था, उनको ब्रह्मादिक सुरों के अधिपति प्रणाम करते हैं, जिनका उन्नत ललाट चंद्रमा की रश्मियों से सुशोभित रहता है, जिनकी जटाओं में कल्याणी श्री गंगा जी निवास करती हैं, ऐसे कपाली तेजोमय मूर्ति सदाशिव हमें धर्म, अर्थ, कर्म और मोक्ष प्रदान करें।

बड़वानल के समान पापों को भस्म करने में प्रचंड, अमंगलों का विनाश करने वाली अष्टसिद्घियों का गान करती स्त्रियां कहती हैं-“”शिव-शिव’ एक ऐसा मंत्र आभूषण है, जो जय प्रदान करता है। सद्योजात, वामदेव, तत्पुरुष, अधीर और ईशान, ये सभी शिव जी के ही प्रमुख अवतार हैं।”

सनत कुमार के अनुरोध पर उन्हें गौरीपति की अष्ट-मूर्तियों का परिचय देते हुए नंदी कहते हैं कि विषपायी की निम्न मूर्तियां अपनी पृथक विशिष्टताओं के कारण विश्र्व-विख्यात हैं। शर्व, भव, उग्र, पाति, ईशान, महादेव और रुद्र।

शिव-चरित्र के बारे में सनतकुमार की उत्सुकता व श्रद्घा को देखते हुए, नंदेश्र्वर जी कहते हैं कि शिव के प्रमुख 21 अवतार हैं, जिनमें बटेश्र्वर की अलौकिक लीलाएं हैं। शरभ, गृहपात, नीलकंठ, यक्षेश्र्वर, एकादश, रुद्र, महेश, दुर्वासा, हनुमान अवतार, वृषभ, पिप्लाद, विश्र्वनाथ, द्विजेश्र्वर, यतिनाथ, कृष्ण दर्शन, अवधूतेश्र्वर, भिक्षवर्च, सुरेश्र्वर, ब्रह्मचारी, सुनट नर्तक, साधु अवतार, विक्षुअश्र्वस्थामा एवं किरात अवतार हैं।

भगवान शंकर के बारह ज्योतिर्लिंगों का स्मरण एवं दर्शन परम पुण्यफलदायी है। ब्रह्माजी ने घोर तप किया, जिससे प्रसन्न होकर शिवजी ने अर्द्घ-नारिश्र्वर रूप धरा। महाकवि तुलसीदास जी ने भी “रामचरित मानस’ में राम जी के यह उद्गार अपने शब्दों में व्यक्त किए हैं-

शिव द्रोही मम दास कहावा।

सो नर मोहि सपनेहूं नहीं भावा।।

पुराण प्रसिद्घ शिवालयों में राजराजेश्र्वर, काशी विश्र्वनाथ, मनोकामनेश्र्वर, बाणेश्र्वर, वृद्घकालेश्र्वर, महाकालेश्र्वर, अनादिकल्पेश्र्वर, गुप्तेश्र्वर आदि हैं।

– हरीश दुबे

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