भारत की आजादी के समय हर नागरिक के मन में रामराज्य की कल्पना थी। महात्मा गांधी भी एक ऐसे संविधान की रचना चाहते थे जो भारतीय संस्कृति के आधार पर रामराज्य की कल्पना को साकार कर सके। लेकिन सत्ता की बागडोर संभाले पंडित नेहरू पश्र्चिमी सभ्यता से बहुत प्रभावित थे। फलतः संविधान की रचना भारतीय सोच से नहीं बल्कि पश्र्चिम की नकल के आधार पर की गई। प्रजातंत्र के अंतर्गत जनता को अधिकार दिया गया कि अपने अमूल्य वोट द्वारा नेताओं को चुनकर पांच साल के लिए संसद और विधानसभाओं में भेजेगी। भारत की आजादी से लेकर 70-80 के दशक तक के नेताओं तक कहा जा सकता है कि उनमें से अधिकतर राजनीतिक और सामाजिक अपराधों में लिप्त नहीं थे। उनका चरित्र और वर्चस्व जनता के लिए एक आदर्श स्थापित करता था। पूर्व में जितने भी राजनीतिज्ञ हुए वे अपने निजी स्वार्थों से ऊपर उठकर राष्टहित के लिए कार्य करते थे। उनके लिए राष्टहित और जनता का हित सर्वोपरि था।
समय के परिवर्तन के साथ-साथ आपराधिक चरित्र के लोग धन और बाहुबल के आधार पर राजनीति में आने लगे। आज स्थिति विस्फोटक हो गई है और राजनीति और अपराध का अपवित्र रिश्ता इतना अटूट हो गया है जो अब टूटने वाला नहीं दिख रहा। आज हर राजनीतिक पार्टियां ऐसे लोगों को टिकट देने लगी हैं जो हर प्रकार के अपराधों में लिप्त हैं। उनका उद्देश्य सिर्फ सीटों की संख्या में वृद्घि करना रह गया है। इन नेताओं ने अपनी समझ से, धन के द्वारा जनता के दिल और दिमाग को जीत लिया है। हर राजनीतिक पार्टियां अपराध और राजनीति के रिश्ते की निन्दा तो करती हैं परन्तु कोई भी पार्टी आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों को टिकट देने से गुरेज नहीं करती।
अब समय आ गया है कि आपराधिक छवि वाले लोगों को राजनीति में स्थान देने पर जनता सवाल उठाये और उन्हें वोट देकर संसद या विधानसभा में किसी भी तरह न पहुंचने दे। प्रजातंत्र में जनता के पास सबसे बड़ा हथियार उसका वोट है। हमारी मुख्य चुनाव आयोग से विनम्र विनती है कि ऐसे प्रावधान बनायें कि जनता जिस उम्मीदवार के कार्यकलाप से नाराज है, उसे वापस बुला सके या उसे नकार सके। इससे उम्मीदवारों को यह अहसास होगा कि कितनी प्रतिशत जनता उन्हें पसंद नहीं करती। इससे राजनीति में आपराधिक छवि या जनता की इच्छाओं के खिलाफ काम करने वाले राजनेताओं पर रोक लगेगी और राजनीति पवित्र होगी। मुख्य चुनाव आयुक्त हमारे अनुरोध पर ध्यान देकर अमल करें तो राजनीति स्वयमेव साफ-सुथरी हो जाएगी।
– श्रीनिवास मोदानी (सिकन्दराबाद)
रंगे सियार
मैंने तुम्हें गाली दी
तुमने मुझे गाली दी
कोई बात नहीं
आओ गले मिल जाएँ यार
क्योंकि दोनों ही हैं
रंगे सियार
पहचान
वे सिर्फ
सत्ता को पहचानते हैं
दल बदल तो
बहाना है
जिधर सत्ता सुख दिखा
उधर ही
मुँह मारते हैं।
– डॉ. सुधाकर आशावादी
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