बहुत मामूली और छोटी बात से भी अक्सर बहुत बड़ी समस्या खड़ी हो जाती है। इसलिए छोटी बात को नजरअंदाज न करें। खासकर अगर उससे गलतफहमी पैदा होने का अंदेशा हो। वैवाहिक जीवन में जो तनाव महसूस किया जाता है, वह अक्सर बहुत साधारण गलतफहमी के कारण होता है। महिला और पुरुष, अमूमन बिना तथ्यों को जाने व समझे हुए अलग-अलग तरह से कम्युनिकेट करने लगते हैं।
दो विपरीत लिंगों के बीच कम्युनिकेशन न सिर्फ कला है, जिसे विकसित किया जाना चाहिए ताकि घर में शांति व खुशहाली बनी रहे बल्कि यह अपने चरित्र का विकास करने के लिए भी महत्वपूर्ण तरीका है। इसलिए जिन अलग-अलग तरीकों से पुरुष और महिलाएं अपने विचार व इच्छाओं को प्रदर्शित करते हैं, उससे वह सोच और महबूब के तारीफ करने वाले तरीकों में अधिक संवेदनशील बन सकते हैं।
किसी भी संबंध विशेषकर शादी को अच्छी तरह से बरकरार रखने का एकमात्र तरीका है कि दोनों पार्टियों के बीच कम्युनिकेशन का स्तर स्वस्थ व सकारात्मक रहे। यह काम कठिन अवश्य है, लेकिन निम्न सुझावों से आपके लिए राहें आसान हो सकती हैं-
- महिलाओं को यह समझ लेना चाहिए कि पुरुषों का दिमाग अधिक साहित्यिक होता है, क्योंकि यह तार्किक सोच का चिह्न है।
- जबकि महिलाएं तर्क को पूरी तरह से ठुकराने में अधिक सक्षम होती हैं। अगर उनकी भावनाएं तार्किक टेंड का समर्थन न कर रही हों।
- पुरुष, दूसरी ओर, भावनाओं को पूर्णतः ठुकराने में सक्षम होते हैं। बशर्ते वह उस किस्म के टेंड के समर्थन में न हों।
- दोनों लिंगों को सावधानी बरतनी चाहिए, जिससे वे अपनी इन विशेष क्षमताओं का प्रयोग दमनकारी अंदाज में न करें।
- महिलाओं को भावनात्मक ब्लैकमेल नहीं करना चाहिए।
- पुरुषों को हर समय व निरंतर तर्क का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
- अगर आपको अपने साथी की कोई बात पसंद आती है तो उसकी तारीफ करने में परहेज नहीं करना चाहिए। तारीफ एक ऐसी चीज है, जिससे संबंधों के बीच ठंडापन पिघल कर रिश्तों में गर्मजोशी भर देता है। इसके अलावा तारीफ अक्सर राय की शुद्घता व तार्किकता से अधिक महत्वपूर्ण व मजबूत संदेश होता है।
- यह मानकर न बैठ जायें कि दूसरा व्यक्ति यह जानता है कि आप किस तरह महसूस करते हैं। इसका अर्थ यह है कि अपने मन की बात को छुपाकर मत रखो, उसे व्यक्त करना भी सीखो।
- आप चाहते हैं कि आपका साथी आपके दिल की बात को सुने, यही बात आपका साथी भी चाहता है। इसलिए उसकी बात को भी ध्यानपूर्वक सुनें।
- राय में मतभेद होना स्वाभाविक है। अगर ऐसी स्थिति आ जाये तो अपने दृष्टिकोण को अंतिम सत्य के तौर पर थोपने का प्रयास न करें। अंतिम शब्द अपने साथी को दे देना ही अपने आप में जीत होती है।
- कभी भी पावर गेम्स यानी राजनीति खेलने का प्रयास न करें।
- अगर आपको किसी बात से कोई तकलीफ भी पहुंचती है तो भी सभ्य नजरिया कायम रखें। ऐसे नहीं कि आप अपने साथी के सामने दिखावा करें कि आप कितने सभ्य हैं बल्कि उसकी बात को पूर्णतः स्वीकार करके और उसे सम्मान देकर साबित करें कि आप सभ्य हैं।
- नकारात्मक भावनाओं को व्यक्त करने से बचें।
- एक-दूसरे से ऐसी उम्मीदें रखें, जो पूरी हो सकती हैं।
- यह आशा न रखें कि आपका साथी परफेक्ट है। हर आदमी में कमी होती है। तभी अंग्रेजी कवि एलेक्जेंडर पोप ने कहा, “”गलती करना मानव स्वभाव है, लेकिन उसे माफ कर देना दैविक गुण है।”
– राजकुमार “दिनकर’
You must be logged in to post a comment Login