कोलोरेक्टल कैंसर को कोलन कैंसर या बृहदान्त्र कैंसर भी कहलाता है। बृहदान्त्र, गुर्दा और एपेन्डिक्स में कैंसरजन्य अपवृद्घियां शामिल होती हैं। यह एक खामोश हत्यारा है, जो एक लंबे अर्से के दौरान धीरे-धीरे विकसित होता है और पाचन-तंत्र को प्रभावित करता है। कोलोरेक्टल कैंसर, कैंसर का तीसरा सबसे अधिक आम रूप है और पश्र्चिमी देशों में कैंसर से जुड़ी मौतों का दूसरा सबसे बड़ा कारण है। पूरी दुनिया में हरेक साल कोलोरेक्टल कैंसर के कारण 655,000 मौतें होती हैं। यह समझा जाता है कि कई कोलोरेक्टल कैंसर बृहरान्त्र में एडिनोमैटस पॉलीप्स से उत्पन्न होते हैं। कुकुरमुत्ते जैसी ये कोशिका वृद्घि आमतौर पर हितकारी होती है, लेकिन उनमें से कुछ समय के दौरान कैंसर के रूप में विकसित हो सकती है। अधिकांश समय स्थानीकृत बृहदान्त्र कैंसर का निदान कोलोनोस्कोपी के जरिये किया जाता है। आमतौर पर इलाज सर्जरी के जरिये होता है, जिनके बाद अनेक मामलों में कैमोथैरेपी की जरूरत होती है।
कोलन कैंसर के कारण
यह सुनिश्र्चित तौर पर ज्ञात है कि कोलोरेक्टल कैंसर संाामक बीमारी नहीं है। कुछ लोगों के लिए कोलोरेक्टल कैंसर विकसित होने की संभावना दूसरों की तुलना में अधिक होती है। एक व्यक्ति के लिए कोलोरेक्टल कैंसर का खतरा बढ़ाने वाले कारणों में वसा उच्च मात्रा में ग्रहण करना, जंक फूड पर अत्यधिक निर्भरता, परिवार में कोलोरेक्टल कैंसर और पॉलीप्स का इतिहास, बड़ी आंत में पॉलीप्स की मौजूदगी और चिरस्थायी व्रणकारी बृहदान्त्र शोध शामिल हैं।
इस बीमारी के लिए इलाज
डॉ. अतुल शर्मा (अखिल भारतीय आयुर्वेद, नई दिल्ली) का कहना है, “”इलाज अनेक बातों पर निर्भर करता है, जिनमें ट्यूमर का आकार, जगह और सीमा शामिल है। पॉलीप्स या ट्यूमर और चारों ओर मौजूद ऊतकों को हटाने के लिए सर्जरी वाकई सबसे आम किस्म का इलाज है। कैंसर के लिए कैमोथैरेपी और रेडियोधर्मिता इलाज भी इस्तेमाल किया जाता है। सर्जरी के साथ कैमोथैरेपी में कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करने, ट्यूमर की वृद्घि को नियंत्रित करने तथा लक्षणों से छुटकारा दिलाने के लिए भी दवाएं इस्तेमाल होती हैं। रेडियोधर्मिता उपचार में कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करने, ट्यूमर को सिकोड़ने, या सर्जरी के बाद शरीर में बाकी कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करने के लिए एक्सरे किरणों का इस्तेमाल किया जाता हैं।”
कोलोरेक्टल कैंसर
कुछ निश्र्चित कारण लोगों के लिए कैंसर पैदा होने के खतरे को बढ़ाते हैं। इनमें निम्नलिखित हैं-
- उम्र – कोलोरेक्टल कैंसर पैदा होने का खतरा उम्र के साथ बढ़ता जाता है। कोलोरेक्टल कैंसर 50 से अधिक उम्र वाले लोगों में आम है। 90 प्रतिशत से अधिक कैंसर के मामले इस आयु-वर्गों के लोगों में पाये जाते हैं। हालॉंकि 50 साल से पहले की उम्र में ये मामले असामान्य हैं, जब तक कि परिवार में कोलन कैंसर का मामला पहले मौजूद न हो।
- कैंसर का इतिहास – जिन लोगों में पहले कोलन कैंसर का निदान एवं इलाज किया जा चुका है, उन्हें भविष्य में कोलन कैंसर होने का खतरा होता है। जिन महिलाओं को डिम्बाश्य, गर्भाशय और स्तन-कैंसर हो चुका है, उन्हें कोलोरेक्टल कैंसर होने का अधिक खतरा होता है।
- आनुवांशिकी – कोलन कैंसर का पारिवारिक इतिहास, खासतौर पर किसी नजदीकी रिश्तेदार या कई रिश्तेदारों को 55 साल की उम्र से पहले।
- धूम्रपान – धूम्रपान नहीं करने वालों की तुलना में धूम्रपानकर्ताओं की कोलोरेक्टल कैंसर से मृत्यु होने की संभावना अधिक होती है। एक अमेरिकी कैंसर सोसायटी ने पाया कि “”धूम्रपान करने वाले लोगों की तुलना में, जिन्होंने कभी धूम्रपान नहीं किया है, कोलोरेक्टल कैंसर से मृत्यु होने की संभावना 40 प्रतिशत से अधिक होती है।
- आहार – जून, 2005 में “कैंसर और पोषण’ की एक यूरोपीयन प्रॉस्पेक्टिव जांच में यह सुझाया गया था कि लाल और प्रोसेस्ड गोश्त की उच्च मात्रा और रेशों की कम मात्रा वाले आहार कोलोरेक्टल कैंसर के जोखिम से जुड़े होते हैं। जीवन-शैली में बदलावों से हत्यारा कैंसर उत्पन्न होता है, जिसकी प्रवृत्ति महिलाओं में अधिक होती है।
- शारीरिक निषियता – शारीरिक रूप से सिाय रहने वाले लोगों को कोलोरेक्टल कैंसर होने का खतरा कम होता है।
- विषाणु – कुछ विषाणुओं (जैसे मानवीय पैपीलोमा विषाणु के विशेष उपभेद) के प्रति अरक्षितता कोलोरेक्टल कैंसर से जुड़ी हो सकती है।
- शराब – पीना भी कोलोरेक्टल कैंसर की जल्दी शुरूआत का एक कारण हो सकता है। प्रति सप्ताह बीयर या स्पिरिट के आठ परोस से अधिक मात्रा ग्रहण करने वाले व्यक्तियों में उल्लेखनीय कोलोरेक्टल नियोप्लाजिया होने की संभावना पांच में से एक को होती है, जिसका पता सीनिंग कोलोनस्कोपी द्वारा पता चलाता है। आधार-रेखा की बात की जाए तो एक दिन में एक या उससे अधिक अल्कोहलिक पेय-पदार्थ ग्रहण करना कोलन कैंसर के लगभग 70 प्रतिशत अधिक जोखिम से जुड़ा है। जो लोग प्रतिदिन 30 ग्राम से अधिक अल्कोहल पीते हैं (और खासतौर पर, जो प्रतिदिन 45 ग्राम से अधिक पीते हैं, उनमें कैंसर का जोखिम मामूली रूप से अधिक होता है।
- पर्यावरणीय कारण – औद्योगिक देशों में कम विकसित या परंपरागत रूप से उच्च-फाइबर/ कम वसा वाले आहार ग्रहण करने वाले देशों की तुलना में सापेक्ष रूप से अधिक जोखिम है।
यूनाइटेड स्टेट्स में कोलन कैंसर होने का खतरा जीवनपर्यंत लगभग 7 प्रतिशत है
अग्रसिाय सीनिंग के जरिये पता लगाना और सीनिंग एवं निगरानी की अहमियत
यह नोट करना जरूरी है कि चूंकि लक्षण हमेशा मौजूद नहीं होते हैं, इसलिए नियमित सीनिंग और पॉलीप्स का जल्दी पता चलना कोलन कैंसर का औसत जोखिम और अधिक जोखिम रखने वाले लोगों के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है, जैसे बृहदान्त्र-शोथ और ाोहन्स से पीड़ित लोग। इस बात पर बल देना वाकई महत्त्वपूर्ण है कि जब कैंसर के लक्षण दिखाई दे रहे हों, खासतौर पर जब यह अग्रिम चरण में हो और उस पल यह कहने के लिए इंतजार करना कि वह कोलोनोस्कोपी करवाना चाहता है, एक अच्छा विचार नहीं है। जब हम कोलोनस्कोपी करते हैं, हम कैंसर नहीं तलाश रहे होते हैं, हम कैंसर के लक्षणों के अग्रदूत तलाश रहे होते हैं, जहां उनके लिए कुछ प्रभावी तरीके से कुछ किया जा सके। यह नोट करना जरूरी है कि कोलोरेक्टल कैंसर से पीड़ित पाई जाने वाली महिलाओं की संख्या से बहुत अधिक है।
कैंसर की रोकथाम करने के उपाय
डॉ. रंगा राव (राजीव गांधी कैंसर इंस्टीट्यूट, नई दिल्ली), – के अनुसार, “”रेशों की उच्च मात्रा वाले आहार ग्रहण करने वाले आीकी लोगों में कोलन कैंसर की व्याप्ति कम थी। फिर उसके बाद दर्जनों अध्ययनों ने रेशों की अग्रसिाय भूमिका का समर्थन किया है। इस बात के भरपूर कारण मौजूद हैं कि रेशों की प्रचुर मात्रा कोलन कैंसर का खतरा कम कर सकती है, रेशे मल की मात्रा को बढ़ाते हैं और संभावित कैंसरजन्य पदार्थों को हल्का कर सकते हैं, रेशे आंतों में मल के मौजूद रहने के समय को कम करते हैं, जिससे कैंसरजन्य पदार्थों के प्रति बृहरान्त्र की अरक्षितता सीमित होती है।
कोलोरेक्टल कैंसर का इलाज किया जा सकता है, अगर इसका जल्दी पता चल जाए!
भले ही यह कैंसर पाया जाता है, यह जानना जरूरी है कि कैंसर का भी इलाज हो सकता है। बशर्ते, उसका पता जल्दी चल जाये। इसके फैलने से पहले कोलोरेक्टल कैंसर से पीड़ित जिन लोगों का शुरूआती चरण में निदान हो जाता है, उनके लिए 5 वर्ष की उत्तरजीवित्ता दर 90 प्रतिशत से अधिक है। अधिकांश मामलों में रोगियों से लक्षणों की अनदेखी होती है और कैंसर लसिका ग्रंथियों में फैल जाता है।
चूंकि जिन लोगों को पॉलीप्स या कैंसर होता है, उनमें हमेशा लक्षण नहीं होते हैं। इसलिए जल्दी पता लगाना और नियमित सीनिंग करना कोलन कैंसर की रोकथाम करने के लिए निहायत जरूरी है, विशेषकर उन लोगों में, जिन्हें यूसी और ाोन्स है। कोलन कैंसर का जब शुरूआती चरणों में इलाज हो जाता है, तब इसकी उत्तरजीवित्ता दर 93 प्रतिशत होती है। औसत व्यक्ति को एक सामान्य वजन बनाये रखना चाहिए, नियमित व्यायाम करना चाहिए और स्वास्थ्यकर आहार ग्रहण करना चाहिए, जिसमें फाइबर की मात्रा अधिक हो, वसा कम हो और लाल गोश्त कम हो। ये सिफारिशें सामान्य आबादी के लिए भी हैं। तदनुसार, जीवनशैली में बदलाव लाने से कोरोलेक्टल कैंसर का खतरा 60-80 प्रतिशत तक कम हो जाता है।
- सीनिंग – यह एक जांच है, जो कैंसर के लक्षण विकसित हो जाने के बाद की जाती है। सीनिंग अत्यंत जरूरी है। इसका लक्ष्य कैंसरजन्य पॉलीप्स की पहचान करने और उन्हें हटाने के द्वारा कैंसर की रोकथाम करना तथा कैंसरजन्य जख्मों की एक शुरूआती चरण में पहचान करना है, जब उन्हें हटाया और बीमारी का सफलतापूर्वक इस्तेमाल किया जा सकता है।
- निगरानी – एक निगरानी जांच में अनुवर्ती जांचें, दुबारा आमतौर पर कोलोनोस्कोपी शामिल होती है, जो प्रारंभिक जांचों के बाद की जाती है। अध्ययन दिखाते हैं कि इस पद्घति से कैंसर से मौत होने का खतरा 80 प्रतिशत से अधिक कम हो जाता है। बशर्ते, इसकी शुरूआत 50 वर्ष की उम्र से की जाए, और हरेक 5 या 10 साल बाद दोहराई जाये।
You must be logged in to post a comment Login