जब गांव-गांव हो उजियारा तब अपना भारत बनता है… इस प्रमोशनल सांग्स के जरिए सरकार गांवों को शहरों से जोड़ने की कोशिश कर रही है। सड़कें, बिजली, पानी, रोजगार और संचार इन्हीं साधनों के माध्यमों से गांवों को शहरों से जोड़कर एक नये भारत को बनाने की मुहिम जारी है। इस मुहिम में मोबाइल कंपनियां भी अपना योगदान बहुत जोर-शोर के साथ दे रही हैं।
मोबाइल ग्रामीणों के लिए भी महज जरूरत नहीं स्टेटस सिंबल बन गया है। इस दीवानगी के लिए उन्हें कई तरह की परेशानियों का भी सामना करना पड़ता है, लेकिन इसका उन्हें कोई गम नहीं है। मोबाइल यूज तो करना ही है, भले ही अपने मोबाइल की बैटरी चार्ज करने के लिए कई किलोमीटर चलकर दूर बाजार ही क्यों न जाना पड़े। अपनों से जुड़े रहने के लिए ये तो बहुत मामूली-सी बात है। लोग अपने घर से दूर चले जाते हैं, लेकिन हर वक्त अपने घर से जुड़े रहना भी चाहते हैं। इन्हीं फासलों को मिटाता है मोबाइल। वो कहते हैं न “बातें गिरा देती हैं फासलों की दीवारें’ तो अपने और अपनों के बीच की दूरी को मिटाने के लिए मोबाइल से बेहतर दूसरा विकल्प और क्या हो सकता है।
देर ही सही, देश के दूर-दराज और पिछड़े इलाकों में कनेक्टिविटी का लाभ पहुंचाने के लिए सरकारी और गैर-सरकारी प्रयास काफी तेजी से विकास कर रहे हैं। सरकार ने अभी तक दूरसंचार सेवाओं के लिए जो भी कदम उठाए हैं, वो आशा के अनुरूप नहीं रहे हैं। 1999 में नयी टेलीकॉम पॉलिसी बनाई गई। इसके बाद सरकारी और गैर-सरकारी प्रयासों में भी तेजी आई। अपनी स्कीम के तहत सरकार ने दूर-दराज के गांव में मोबाइल सेवा मुहैया कराने के उद्देश्य से 27 राज्यों के पांच सौ जिलों में 11,000 से अधिक टॉवर लगाने का निर्णय लिया है, जिसका साझा उपयोग सरकार और निजी ऑपरेटर्स दोनों कर सकेंगे।
इससे ग्रामीण टेलीफोनों में आने वाली लागत को लगभग 30 प्रतिशत कम किया जा सकेगा। इस योजना के लिए सरकार की ओर से सब्सिडी दी जा रही है, जिसकी भरपाई यूएसओ फंड से की जाएगी। दूर-दराज के क्षेत्रों में ढांचागत आधार बढ़ाने के लिए बीएसएनएल, जीटीएल इंफ्रास्टक्चर, एस्सार, एनआईटीएल और रिलायंस कम्युनिकेशंस इंफ्रास्टक्चर के अलावा कई कंपनियों से ग्रामीण क्षेत्रों में टॉवर लगाने का समझौता किया गया है। इसके लिए 1,450 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे। ग्रामीण क्षेत्रों में जिला और ब्लॉक स्तरीय संवाद तंत्र को मजबूत करने के लिए भी बड़े स्तर पर कार्य किए जा रहे हैं।
हाल में मोबाइल सेवा के बढ़ते अवसरों को लेकर भारत में जबरदस्त तेजी देखने को मिली है। जब वर्ष 1995 में पहली बार मोबाइल सेवा शुरू की गई थी, तब टेली डेंसिटी प्रति सौ व्यक्तियों पर मात्र 0.8 थी, लेकिन वर्ष 2007 के अंत तक कुल नये मोबाइल उपभोक्ताओं को जोड़ने के मामले में विश्र्व में सर्वेच्च स्थान पर पहुंच गया। अप्रैल, 2008 में जारी आंकड़ों के मुताबिक 261 मिलियन उपभोक्ताओं के साथ भारत विश्र्व में चीन के बाद दूसरा वायरलेस मार्केट बन गया है। आज प्रति चार भारतीयों में एक के पास मोबाइल की पहुंच है। भारत में शहरी मोबाइल उपभोक्ताओं का प्रतिशत 21 है, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में यह मात्र 6 प्रतिशत ही है।
आज मोबाइल जगत से अलग कई कंपनियां ग्रामीण क्षेत्रों से भारी मुनाफा कमा रही हैं। एक अनुमान के मुताबिक वर्ष 2010 तक रूरल मोबाइल मार्केट के 40,000 करोड़ रुपये तक पहुंच जाने की संभावना है। यही वजह है कि विभिन्न टेलीकॉम कंपनियां लोक-लुभावनी ग्रामीण योजनाओं के साथ रूरल मार्केट में उतर रही हैं।
भारत जैसे विकासशील देश में टेलीडेंसिटी का सीधा संबंध इकोनॉमी से जुड़ा है। ग्रामीण मोबिलिटी यदि एक फीसदी की दर से बढ़ती है तो देश की जीडीपी से लगभग 0.60 फीसदी की दर से बढ़ोत्तरी की संभावना के संकेत हैं। इससे ग्रामीण मोबिलिटी के विकास का भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले प्रभाव का अंदाजा लगाया जा सकता है। देश की 70 प्रतिशत आबादी तक मोबाइल कनेक्टिविटी है ही नहीं। इसलिए इन क्षेत्रों में असीम संभावनाएं हैं।
देश को आजाद हुए भले ही 62 वर्ष हो चुके हों, लेकिन विकास की बयार अभी तक दूरवर्ती, पहाड़ी और सुदूर गांवों में नहीं पहुंच पाई है। सूचना क्रांति के इस दौर में सात सौ मिलियन उपभोक्ता इस लाभ से वंचित हैं। इंफ्रास्टक्चर की सुविधा कोसों दूर है। ग्रामीण मोबिलिटी को लेकर कोशिशें तो तेज हैं, लेकिन आज भी वही बुनियादी समस्याएं इसकी राह में बाधा बनी हुई हैं, जो 60 वर्ष पूर्व थीं। शिक्षा, गरीबी, सड़क और बिजली जैसी समस्याओं में कुछ सुधार तो जरूर हुआ है, लेकिन सूचना क्रांति के लक्ष्यों को पाने के लिए इसमें अभी और सुधार की गुंजाइश है। उपर्युक्त सभी समस्याओं में ग्रामीण मोबिलिटी को बढ़ाने में बिजली सबसे बड़ी समस्या है।
योजनाएं बनती हैं, खर्च होता है, लेकिन उन योजनाओं का कार्यान्वयन कितना सही ढंग से होता है या नहीं, यह असली सवाल है। लेकिन जहां तक मोबाइल जगत की बात है तो जिस तरह से इसमें अभी तक विकास के संकेत देखने को मिले हैं और सरकारी प्रयास के साथ निजी कंपनियों ने भी उत्साह दिखाया है, उससे यही लगता है कि यहां वादे महज वादे न रहकर विकास की नयी कहानी कहेंगे।
– अपराजिता
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