नेचर पत्रिका में हाल में प्रकाशित एक शोध समाचार में कहा गया है कि गाएँ संभवतः पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र का अनुभव कर सकती हैं और ज्यादातर समय उतर-दक्षिण दिशा के समांतर खड़ी रहती हैं। काफी संभावना इस बात की है कि वे उत्तर की ओर मुंह करके खड़ी रहती हैं। यह निष्कर्ष करीब 8000 से ज्यादा गायों के उपग्रह चित्रों के आधार पर निकाला गया है। इसी अध्ययन में यह भी पाया गया है कि हिरनों में भी यही प्रवृत्ति पाई जाती है।
उपरोक्त अध्ययन करने वाले शोधकर्ता हैं जर्मनी के डुइसबर्ग-एसेन विश्र्वविद्यालय के सैविन बीगाल और उनके साथी। अपने अध्ययन के नतीजे प्रोसीडिंग्स ऑफ नेशनल एकेडमी ऑफ साइन्सेज में प्रकाशित करते हुए बीगाल ने कहा है कि “”यह अचरज की बात है कि हमारे इतने निकट के एक पशु के बारे में इतनी बुनियादी बात तक हमें पता नहीं चली।” दरअसल इस तरह का चुंबक-उन्मुखीकरण कई कीटों व पक्षियों में पहले ही खोजा जा चुका है। चूहों वगैरह में भी चुंबकीय क्षेत्र को महसूस करने की क्षमता पाई जाती है। गाय और मनुष्य का संबंध इतना प्राचीन व इतना नजदीकी है कि यह बात हमें सदियों पहले पता चल जानी चाहिए थी। दरअसल इस शोध को लेकर सबसे पहला सवाल यही है कि हमारे ग्वाले-गड़रिए क्यों इस बात का बिल्कुल भी अंदाजा नहीं लगा पाये।
चुंबकीय क्षेत्र के प्रति गायों के व्यवहार को जानने के लिए बीगाल व उनके साथियों ने एक नवीनतम तकनीक का सहारा लिया। उन्होंने “गूगल अर्थ’ के चित्रों में खड़ी गायों को देखा। “गूगल अर्थ’ उपग्रह की मदद से खींचे गए पृथ्वी के चित्रों के आधार पर धरती के विभिन्न स्थानों के विस्तृत नक्शे व चित्र इंटरनेट पर प्रस्तुत करता है। ये चित्र इतने बारीकी से तैयार किये जाते हैं कि मैं इनमें अपना घर ढूंढ सकता हूं।
तो बीगाल व उनके साथियों ने इन चित्रों में खड़ी गायों पर ध्यान दिया। उन्होंने दुनिया के विभिन्न स्थानों पर खड़ी गायों को देखा। अलबत्ता उन्होंने उन गायों के चित्रों पर ध्यान नहीं दिया, जो किसी पानी के स्रोत या चारे के स्रोत के पास खड़ी थीं, क्योंकि इन चीजों के कारण गाय का रुख बदलना स्वाभाविक है। घुटना पेट की तरफ ही मुड़ता है। कुल मिलाकर 308 स्थानों पर खड़ी 8510 गायों के खड़े होने की दिशा का अवलोकन किया गया। आप शायद समझ ही गये होंगे कि यह काम काफी श्रमसाध्य रहा होगा। कुछ वैज्ञानिकों ने इस बात पर टिप्पणी भी की है कि आखिर इस टीम ने इतनी मेहनत करके यह काम क्यों किया!
खैर, जब यह काम हो ही गया है और इन वैज्ञानिकों का दावा है कि दुनिया भर की गायें (और संभवतः हिरन) उत्तर की ओर मुंह करके खड़े रहना पसंद करती हैं, तो यह सूचना सबसे पहले स्व. शरद जोशी को मिलनी चाहिए कि अब हमें एक चलता-फिरता कुतुबनुमा मिल गया है और उनके पंडितजी सही दिशा में शंख फूंक सकते हैं।
मगर बात इतनी-सी नहीं है। सबसे पहला सवाल तो यह पैदा होता है कि गायों के पास ऐसा कौन-सा अंग है, जिसकी मदद से वे पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र का एहसास करती हैं। कुछ वैज्ञानिकों का मत है कि यह कोई मुश्किल बात नहीं है। इसके लिए तंत्रिका-तंत्र में छोटी-सी व्यवस्था ही लगती है। जैव-भौतिकी की दृष्टि से तो इसमें कोई समस्या नहीं लगती। मगर अन्य वैज्ञानिकों का सवाल है कि गायों में इस व्यवस्था का क्या फायदा, क्योंकि वे पक्षियों की तरह मौसमी प्रवास तो करती नहीं हैं। न ही ऐसा प्रतीत होता है कि वे अतीत में कभी ऐसा करती रही होंगी।
अधिकांश वैज्ञानिकों की टिप्पणी है कि आमतौर पर पशु जिस ढंग से खड़े रहते हैं, उसका संबंध धूप से होता है। मौसम व परिस्थिति के अनुसार या तो जानवर खुद को धूप से बचाना चाहते हैं या धूप का सेवन करना चाहते हैं। उत्तर-दक्षिण दिशा में खड़े रहने से काफी समय तक शरीर पर अधिकतम धूप पड़ती है, क्योंकि सूरज पूर्व से पश्र्चिम की ओर गति करता है। मगर बीगाल ने अपने अवलोकनों के आधार पर इस धारणा को खारिज कर दिया है। उन्होंने पाया कि ध्रुवों के नजदीक जो गायें थीं, वे भौगोलिक उत्तर की ओर नहीं बल्कि चुंबकीय उत्तर की ओर मुंह करके खड़ी थीं। गौरतलब है कि पृथ्वी के भौगोलिक उत्तरी ध्रुव और चुंबकीय उत्तरी ध्रुव में थोड़ा अंतर है, तो बीगाल को यकीन है कि गाएं चुंबकीय क्षेत्र के आधार पर उन्मुख होती हैं, न कि सूरज के आधार पर। मगर वे इतना जरूर मानते हैं कि इस बात को पूरी तरह से प्रमाणित करने के लिए प्रयोग करने होंगे। अब वे शायद गाय को पकड़ कर प्रयोगशाला में लाएंगे और उसको अलग-अलग ढंग से चुंबकीय क्षेत्रों में छोड़कर देखेंगे।
कुछ वैज्ञानिकों ने अपनी टिप्पणी में यह भी कहा है कि पशुओं के उन्मुखीकरण पर हवा की दिशाओं का भी बहुत असर पड़ता है। आमतौर पर गायें हवा के विपरीत दिशा में मुंह कर लेती हैं, क्योंकि सीधी हवा उनके मुंह पर पड़े, तो नथुने सूखने का डर ज्यादा रहता है। यदि हवा सर्द है तो भी पशु दूसरी ओर मुंह कर लेते हैं। मगर इस बात पर भी सब लोग एकमत नहीं हैं। कुछ पशु वैज्ञानिक बताते हैं कि गायें आमतौर पर हवा जिधर से आ रही है, उधर ही मुंह रखेंगी, क्योंकि इससे उन्हें शिकारियों की गंध आसानी से मिल जाएगी, जबकि अन्य लोग कहते हैं कि शिकारियों की टोह लेने में गायें गंध का सहारा नहीं लेतीं, अपने कानों के भरोसे रहती हैं।
उपरोक्त अधिकांश टिप्पणियां यह मानकर की गई हैं कि बीगाल ने जो अवलोकन प्रस्तुत किये हैं, वे सही हैं। मगर कई वैज्ञानिक तो इन अवलोकनों की प्रामाणिकता पर भी सवाल उठा रहे हैं। कुछ लोग मान रहे हैं कि पता नहीं कितनी गायें, कहां और कैसे खड़ी थीं, और कितनी हद तक इन आंकड़ों के आधार पर कोई निष्कर्ष निकालना संभव है। एक रोचक टिप्पणी यह है कि गूगल अर्थ, जिसके चित्रों के आधार पर पूरा सिद्घांत विकसित किया गया है, वह अपने चित्र लगभग मध्याह्न के समय खींचता है, जब सूरज लगभग सिर के ऊपर होता है। इस समय पशुओं के लिए धूप से बचने का सबसे बढ़िया तरीका तो यही है कि उत्तर-दक्षिण दिशा में खड़े रहें।
इसके अलावा इस शोध कार्य पर बहस के दौरान एक और रोचक बात उभर कर आई है। कई देशों में, शायद पश्र्चिमी देशों में खासतौर से, गायों को अच्छे शक्तिशाली चुंबक खिला दिये जाते हैं। ऐसे कई चुंबक वहां बाजार में उपलब्ध होते हैं, खासतौर से गायों को खिलाने के लिए। बताते हैं कि ये चुंबक गाय के पेट के एक हिस्से में पड़े रहते हैं। यदि गाय गलती से लोहे की कील, स्टेपल पिन या ऐसी कोई चीज खा ले तो वह जाकर इस चुंबक से चिपक जाती है। इस प्रकार से गाय के पेट की दीवारों में घाव नहीं हो पाते। ऐसा लगता है कि कुछ देशों में यह एक आम प्रथा है। पता नहीं इसका और बीगाल के अवलोकनों का कितना संबंध है। पेट में पड़े इन चुंबकों का चुंबकीय क्षेत्र काफी शक्तिशाली होता होगा। तो ये पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र को उदासीन करने में जरूर महत्वपूर्ण भूमिका निभाते होंगे।
बहरहाल, बीगाल व उनके साथियों ने खूब मेहनत करके यह अध्ययन किया है। हो सकता है सामाजिक रूप से यह अध्ययन फालतू ही हो, मगर कम से कम एक वैज्ञानिक का ख्याल है कि इस दल को इग्नोबल पुरस्कार के लिए नामांकित तो किया ही जा सकता है। गौरतलब है कि इग्नोबल पुरस्कार ऐसे ही कार्यों के लिए रखा गया है। वैसे एक खुशी की बात है कि इस बहाने गायों की स्टाइल पर थोड़ी चर्चा हो गई। दूसरी बात यह है कि बीगाल से प्रेरणा लेकर हमारे महानगरों के लोग यह देखने की कोशिश कर सकते हैं कि सड़कों पर गायें किस दिशा में मुंह करके बैठती हैं।
– डॉ. सुशील जोशी
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