उत्तर-भारत में गंगा के तट पर स्थित तीर्थों में शुक्रातीर्थ को “तीर्थ सम्राट’ कहा जाता है। हस्तिनापुर, विदुर कुटी (बिजनौर) के समान ही शुक्रातीर्थ (मुजफ्फर नगर) उन तीर्थों में है, जिसे श्रीकृष्ण ने अपने पावन चरणों से पवित्र किया। शुक्रातीर्थ पर असंख्य ऋषि-मुनियों की उपस्थिति में वटवृक्ष के नीचे बैठकर व्यास नंदन महर्षि शुकदेव जी ने शापग्रस्त महाराज परीक्षित को श्रीकृष्ण लीलाओं का रसास्वादन कराया था। असंख्य ऋषियों के श्री चरणों से पावन यह स्थली आज देश के अग्रणी तीर्थस्थल का रूप ले चुकी है।
शुक्रातीर्थ कुरुवंश की ऐतिहासिक राजधानी हस्तिनापुर (मेरठ) से 60 कि.मी. उत्तर में और देश की वर्तमान राजधानी दिल्ली में 150 किलोमीटर उत्तर-पूर्व दिशा में मुजफ्फरपुर जिले में गंगा के तट पर है। करीब पांच हजार साल पहले इस तीर्थ-स्थली में वटवृक्ष के नीचे बैठकर परमहंस शुकदेव जी ने महाराज परीक्षित को श्रीमद्भागवत का अमृतपान कराकर उन्हें आदर्श और आनंददायक मृत्यु को वरण करने का मार्ग दिखाया था।
प्राचीन ग्रंथों में शुक्रातीर्थ को भगवती भागीरथी गंगा क्षेत्र का आनंद-वन कहा जाता है। पुराणों के अनुसार जब शकुंतला कण्वाश्रम में हस्तिनापुर के लिए महाराजा दुष्यंत से मिलने के लिए रवाना हुई, तो उन्होंने इसी क्षेत्र में विश्राम किया था। स्कंदपुराण में शुाताल तीर्थ को मोक्षनगरी कहा गया है। धार्मिक व सांस्कृतिक महत्व के इस ऐतिहासिक तीर्थस्थल के जीर्णोद्घार की कहानी भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
चालीस के दशक में प्रयाग कुंभ के दौरान संत प्रवर प्रभुदत्त ब्रह्मचारी की संत स्वामी कल्याण देव जी से भेंट हुई। उन्होंने एक दिन कल्याण देव जी को त्रिवेणी के जल में खड़ा करके, उनके हाथ में जल देकर संकल्प कराया कि वे शुक्रातीर्थ का जीर्णोद्घार कर उसे भव्यता प्रदान करेंगे। सन् 1945 में स्वामी जी ने शुकदेव आश्रम सेवा समिति का गठन किया। महामना पंडित मदनमोहन मालवीय के सुझाव पर अलवर के कृष्ण भक्त राजा तेजसिंह ने 18 नवंबर, 1945 को शुकदेव मंदिर का भूमिपूजन किया। इस अवसर पर एक करोड़ गायत्री मंत्र का अनुष्ठान हुआ। कल्याण देव जी ने गांव-गांव पैदल भ्रमण कर निर्माण-कार्य के लिए आर्थिक सहयोग की याचना की। दस वर्षों में शुकदेव मंदिर बनकर पूर्ण हो गया। 27 अप्रैल, 1956 को तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री गुलजारी लाल नंदा ने स्वामी आखंडानंद सरस्वती के सान्निध्य में मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा करवायी। स्वामी जी दिन-रात इस सेवा में लगे रहे। संस्कृत विद्यालय गोशाला, यज्ञशाला, पुस्तकालय, भागवत भवन आदि की स्थापना कराकर इसे भव्य रूप प्रदान किया गया। स्वामी जी के निमंत्रण पर 26 नवम्बर, 1958 को कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू भी शुाताल आये।
शुक्रातीर्थ में 72 फीट ऊँची हनुमान जी की प्रतिमा स्थापित की गई। यहॉं पुरातन पीढ़ी के भागवताचार्य स्वामी विष्णु द्वारा स्थापित दंडी स्वामी आश्रम धर्म-प्रचार के केन्द्र के रूप में विद्यमान है। भगवान गणेश जी का भव्य मंदिर भी दर्शनीय है। स्वामी प्रबुद्घानंद जी महाराज जैसे मनीषी आज भी दंडी आश्रम केन्द्र में निवास कर साधना व धर्म-प्रचार में संलग्न हैं।
देश के प्रायः सभी धर्माचार्य, व्यास, संत, महात्मा समय-समय पर शुक्रातीर्थ आकर साधना एवं प्रवचन कर अपने को कृतकृत्य मानते हैं। देश भर के असंख्य श्रद्घालुजन अपने स्वर्गीय पूर्वजों की स्मृति में शुातल पहुँचकर श्रीमद्भागवत कथा का आयोजन कराते रहते हैं।
शुक्रातीर्थ में आकर पांच हजार साल से ज्यादा पुराने ऐतिहासिक व विशाल वटवृक्ष की प्रदक्षिणा कर अपने को कृतकृपा मानते हैं।
– कीर्ति
You must be logged in to post a comment Login