परमाणु करार पर बहस राजनीतिक खींचतान का अखाड़ा बन चुकी है। इसके विरोधी परमाणु टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल देश की ऊर्जा सुरक्षा में मददगार होने के सरकारी तर्क को मह़ज बहाना मानते हैं तो सरकार इसे ऊर्जा सुरक्षा के लिए ़जरूरी कहती है और यह बताने में लगी है कि इसके बिना देश का विकास धीमा हो जाएगा, प्रदूषण की समस्या देश को नरक बना सकती है। महंगे पेटोलियम तथा पेटोलियम ईंधन के कारण होने वाले प्रदूषण से बचने की ़जरूरत देखते हुए ज्यादातर विशेषज्ञ मानते हैं कि पेटोलियम तथा कोयले के विकल्पों की तलाश आवश्यक हो गयी है। सौर ऊर्जा, पन-बिजली, पवन ऊर्जा और परमाणु बिजली को ऊर्जा ़जरूरतें पूरी करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। ़जाहिर है, प्रदूषण में योगदान की कसौटी पर कसें तो परमाणु ऊर्जा अन्य तीन विकल्पों से पीछे है। पन बिजली के उत्पादन के लिए नदी के प्रवाह को बाधित किए बिना चलने वाले संयंत्र पर्यावरण को अपेक्षाकृत कम नुकसान पहुँचाते हैं, पर इनसे पन-बिजली की आपूर्ति मौसमी होने के कारण वर्षभर की ़जरूरतें पूरी नहीं होतीं। भाखड़ा, हीराकुंड, सरदार सरोवर जैसे बड़े बांध नदी के प्रवाह को बाधित करने के कारण पर्यावरण से ज्यादा छेड़छाड़ के दुष्परिणामों के कारण विरोध झेलते आ रहे हैं।
विकास के लिए ऊर्जा ़जरूरी है और विकास का लाभ ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुँचाने, विकास की गति 19 प्रतिशत के आसपास पहुँचाने का राष्टीय लक्ष्य पूरा करने के लिए ऊर्जा आपूर्ति बढ़ाना बहुत महत्वपूर्ण है। परमाणु ऊर्जा संयंत्रों में दुर्घटना के खतरों तथा विकिरण से होने वाले रोगों के अंदेशे की बात भी सामान्यतः सुनने में आती है। ऐसे में परमाणु ऊर्जा के विकल्प को बेहतर मानने के आधार की गंभीर समीक्षा ़जरूरी है। ऐसे में परमाणु ऊर्जा संयंत्र लगाने का रास्ता साफ करने के लिए इन सब पहलुओं का ध्यान रखने की ़जरूरत भी स्पष्ट है। लगभग दो दशक पूर्व सोवियत संघ में चेरनोबिल (1986) तथा अमेरिका में थ्रीमाईल आइलैंड (1979) के परमाणु बिजलीघरों की दुर्घटनाओं के बाद विश्र्व में परमाणु बिजली का उत्पादन जिस ते़जी से बढ़ा है उसे देखें तो यह लगना स्वाभाविक है कि उन दुर्घटनाओं से सही सबक सीख कर परमाणु बिजली का उत्पादन निरापद बनाने के प्रयास सफल रहे हैं। भारत में आज कुल मिलाकर 3800 मेगावाट बिजली परमाणु संयंत्रों में पैदा होती है। अमेरिका, ाांस आदि में परमाणु बिजली के उत्पादन की दिशा में बहुत ज्यादा काम किया गया है। ाांस अपनी कुल ऊर्जा ़जरूरतों का लगभग 80 प्रतिशत हिस्सा परमाणु ऊर्जा संयंत्रों से हासिल करता है और इस मामले में दुनिया भर में सबसे आगे है।
ाांस ने चेरनोबिल और श्रीमाईल आइलैंड की दुर्घटनाओं को 15-20 वर्ष बाद 1989 से 1999 के दशक में नये परमाणु बिजलीघर लगाकर 42 मेगावाट बिजली उत्पादन की क्षमता हासिल की। कुल बिजली उत्पादन के मामले में अमेरिका विश्र्व में अग्रणी है, पर परमाणु ऊर्जा के उत्पादन की क्षमता बढ़ाने की रफ्तार के मामले में ाांस अमेरिका से आगे निकल गया है। देश के कुल ऊर्जा उत्पादन के मामले में दुनिया के परमाणु ऊर्जा उत्पादन में सक्षम देशों में से लगभग आधे भारत से आगे हैं। आज के आंकड़ों के हिसाब से चीन परमाणु बिजली उत्पादन के मामले में दुनिया में 12वें स्थान पर है। उल्लेखनीय है कि हाल के वर्षों में चीन परमाणु ऊर्जा उत्पादन बढ़ाने की सर्वाधिक महत्वाकांक्षी योजना लागू करने में लगा है। आज चीन में कार्यरत तथा लगाए जा रहे परमाणु बिजली संयंत्र दुनिया के आधुनिकतम (तीसरी पीढ़ी के) ड़िजाइन के हैं। गत वर्ष चीन ने ाांस की अरेवा कम्पनी से तीसरी पीढ़ी के यूरोपीय उच्च दाब वाले दो रिएक्टर तथा ईंधन खरीदने का आठ अरब यूरो (लगभग 12 अरब डॉलर) का सौदा किया है। चीन ने वर्ष 2020 तक देश की परमाणु ऊर्जा उत्पादन क्षमता 20 गीगावाट तथा 2030 तक इसे 120 से 160 गीगावाट तक पहुँचाने के कार्याम का िायान्वयन शुरू किया है।
चीन की तुलना में भारत का परमाणु बिजली कार्याम कुछ पहले शुरू हुआ, पर कार्याम की वर्तमान स्थिति तथा भावी योजनाएं देखें तो चीन भारत से मीलों आगे है और ज्यादा ते़जी से आगे बढ़ने को कृतसंकल्प है। अब तक भारत का परमाणु बिजली कार्याम ज्यादातर स्वदेशी टेक्नोलॉजी तथा क्षमताओं पर निर्भर रहा है। 50 के दशक में अमेरिका की मदद से तथा लगभग एक दशक पूर्व रूस की मदद से परमाणु ऊर्जा संयंत्र लगाने के फैसले के बावजूद आज की परमाणु बिजली उत्पादन क्षमता ज्यादातर स्वदेशी उद्यम का नतीजा कही जा सकती है। रूस की मदद से कुडनकुलम में लगाये जा रहे परमाणु बिजलीघर के निकट भविष्य में (संभवतः एक वर्ष तक) चालू होने की संभावना है। भारत में परमाणु बिजली उत्पादन की क्षमता का विकास अपेक्षाकृत धीमा रहने के कारणों में सरकार द्वारा “भेदभावपूर्ण’ परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर करने से इनकार तथा 1974 एवं 1998 में पोखरण में परमाणु विस्फोट परीक्षण किए जाने के बाद लगाए गए अंतर्राष्टीय प्रतिबंध मुख्य हैं। भारत में यूरेनियम खनिज की कम़जोर गुणवत्ता के चलते देश का परमाणु कार्याम हैवी वाटर पर आधारित बिजलीघरों पर केन्द्रित है। हालांकि देश में भारी मात्रा में सुलभ थोरियम का परमाणु बिजली उत्पादन में इस्तेमाल करने की भारतीय परमाणु कार्याम की उपलब्धियों की बहुत से जानकारों ने प्रशंसा की है।
प्रदूषण के खतरों तथा पेटोलियम के मामले में ज्यादातर आयात पर निर्भरता के कारण विशेषज्ञ भारत के लिए परमाणु ऊर्जा के विकल्प को अपनाना ़जरूरी मानते हैं। यह लक्ष्य हासिल करने के लिए अंतर्राष्टीय कम्पनियों से आधुनिक तकनीक तथा उपकरण खरीदना ़जरूरी है, पर प्रतिबंधों को हटाए बिना यह रास्ता भारत के लिए सुलभ नहीं। स्वदेशी टेक्नोलॉजी का विकास भी प्रतिबंधों के चलते रफ्तार नहीं पकड़ पा रहा। ऐसे में अमेरिका-भारत असैनिक परमाणु सहयोग का रास्ता अपनाना मजबूरी बन चुका है क्योंकि आज अमेरिका विश्र्व की इकलौती महाशक्ति भले ही नहीं हो, पर महाशक्तियों में यह आज भी सबसे आगे तो है ही। शीतयुद्घ के अंत तथा सोवियत संघ के विघटन के बाद के दौर में हथियारों की होड़ ठंडी पड़ती देखी जा सकती है। इसके बावजूद पड़ोसी चीन तथा पाकिस्तान के साथ भारत के नरम-गरम रिश्तों के चलते परमाणु हथियारों के विकास को छोड़ने का फैसला करने का समय अभी नहीं आया। ऊर्जा उत्पादन बढ़ाना विकास के लिए ़जरूरी है और थोक में ऊर्जा उत्पादन की वर्तमान रणनीति का तका़जा है कि परमाणु ऊर्जा का रास्ता अपनाया जाए। ़
स्टेनफोर्ड विश्र्वविद्यालय के ऊर्जा विशेषज्ञ विनय राय के अऩुसार परमाणु ऊर्जा कोयले तथा प्राकृतिक गैस से सस्ती पड़ती है। भारत में यह इसलिए महंगी पड़ रही है क्योंकि भारत को परमाणु ईंधन सुलभ नहीं। परमाणु बिजलीघर बनाने पर शुरू में भारी लागत आती है और कुछ वर्ष पहले तक पूंजी निवेश की क्षमता के मामले में भारत की हालत सुखद नहीं थी। परमाणु बिजलीघर बनाने की टेक्नोलॉजी में सब कुछ अपने बूते पर विकसित करने की ़जरूरत ने परमाणु बिजलीघरों की लागत बढ़ा दी है। अब तक भारत में परमाणु बिजलीघर लगाने का अधिकार सिर्फ सरकार को है। इस क्षेत्र में गैर सरकारी उद्यमियों के प्रवेश का रास्ता खोल कर परमाणु बिजली उत्पादन की क्षमता ज्यादा ते़जी से बढ़ाई जा सकती है। सन् 2006 के भारत-अमेरिका परमाणु करार के बाद टाटा, रिलायंस आदि कम्पनियों ने विदेशी परमाणु टेक्नोलॉजी कम्पनियों से टेक्नोलॉजी हासिल करने के लिए बताचीत शुरू की है। परमाणु बिजली उत्पादन की रफ्तार बढ़ाने के लिए ़जरूरी संसाधनों का निवेश कर भारत इस दिशा में ते़जी से आगे बढ़ सकता है, पर इसके लिए अंतर्राष्टीय परमाणु टेक्नोलॉजी तथा आपूर्ति समुदाय की मदद ़जरूरी है, यह पूरी तरह स्पष्ट है।
– अशोक मलिक
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