देश में दलबदल विरोधी विधेयक के पूर्व तक किसी दल की राष्टीय दल के रूप में मान्यता का केवल इतना ही मतलब होता था कि उस पार्टी द्वारा टिकट दिये जाने की स्थिति में चुनाव लड़ते समय संबंधित दल के उम्मीदवार को एक खास चुनाव चिह्न आवंटित हो। चुने जाने के बाद वे स्वतंत्र थे और किसी भी प्रस्ताव पर चाहे जहॉं वोट दे सकते थे व अपने मनपसंद व्यक्ति को प्रधानमंत्री चुन सकते थे। भले ही उस दौरान अपने दल से विचलन की कोई बहुत उल्लेखनीय घटनाएं नहीं घटीं किंतु दलीय संगठन की दृष्टि से यह बहुत ही अराजक स्थिति थी। इसमें दल, उसके कार्याम और चुनाव घोषणा पत्र का महत्व व्यक्ति विशेष के विवेक और ईमानदारी पर निर्भर था। किंतु जैसे-जैसे ईमानदारी कम होती गयी व विवेक स्वार्थ केन्द्रित होता गया, वैसे-वैसे हमें नियमों में परिवर्तन के लिए विवश होना पड़ा और हमने ामशः नियमों में अनेक संशोधन किये। दल-बदल विरोधी कानून लाये जिसमें किसी मान्यता प्राप्त पार्टी के सदन के सदस्यों में से कम से कम एक तिहाई सदस्यों द्वारा ही अलग होकर दूसरी पार्टी बनायी जा सकती थी, तथा बाद में संशोधन करके उसे प्रति सदस्य तक ले आया गया। अब प्रावधान है कि यदि कोई भी सदस्य अपने पार्टी के व्हिप का उल्लंघन करता है तो उसकी सदस्यता समाप्त की जा सकती है। दलीय स्तर पर भी प्रत्येक दल को नियत समय में अपने सांगठनिक चुनाव कराने को भी अनिवार्य बनाया गया।
आवश्यकता के अनुसार ये नियम भी बनाये गये कि चुनाव की अधिसूचना जारी हो जाने के बाद सरकार द्वारा कोई भी घोषणा नहीं की जा सकती और ना ही शिलान्यास आदि किये जा सकते हैं। इस दौरान चुनाव आदि से जुड़े किसी भी अधिकारी, कर्मचारी का स्थानान्तरण चुनाव आयुक्त की अनुमति के बिना नहीं किया जा सकता। जाति, धर्म, भाषा या क्षेत्र के आधार पर वोट मांगने की भी मनाही की गयी। बड़ी राशि के चन्दे लेने के बारे में भी कुछ नियंत्रण के प्रयास किये गये।
उम्मीदवारों को अपनी और अपने परिवार की सम्पत्ति घोषित करने को कहा गया तथा उन पर चल रहे मुकदमों की जानकारी देने को भी कहा गया। प्रचार में किये गये खर्च का हिसाब रखने और नियत समय में उसे चुनाव आयोग के पास जमा करने के नियम भी बनाये गये। यही नहीं बैनर, पोस्टर, होर्डिंग समेत चुनाव प्रचार सामग्री का हिसाब रखने समेत चुनाव क्षेत्र में प्रचार के लिए आने वाले नेताओं की सूची देने के नियम बनाये गये। दूसरों की दीवारों पर वाल पेंटिंग्स को भी रोका गया। इस दौरान आम जनता को दिये गये लाइसेंसी हथियार भी जमा करा लिए जाने लगे। चुनाव क्षेत्रों में आवश्यकता होने पर दूसरे क्षेत्रों से चुनाव पर्यवेक्षक भी भेजे जाते रहे।
ये सारी कवायद इसलिए की जाती रही जिससे कि हम एक स्वस्थ लोकतंत्र की दिशा में निरंतर आगे बढ़ सकें। किंतु गत दिनों घटित घटनाओं से ऐसा लगता है कि चुनाव आयोग को स्वस्थ लोकतंत्र की स्थापना के लिए इन सुधारात्मक कदमों को कुछ और आगे भी बढ़ाना चाहिये जिससे निहित स्वार्थों के कारण सार्वजनिक जीवन से प्राप्त महत्व का दुरुपयोग करने वाले लोग राजनीति को दूषित न कर सकें। ये नियम कुछ इस प्रकार बनाये जा सकते हैं-
- प्रत्येक मान्यता प्राप्त दल को एक सुनिश्र्चित तिथि तक अपने सिाय सदस्यों की सूची को प्रतिवर्ष घोषित करना और चुनाव आयोग से उसकी पुष्टि कराना अनिवार्य होना चाहिये।
कोई भी दल केवल उस दशा में ही अपना चुनाव चिह्न किसी सदस्य को उम्मीदवारी के लिए दे सकता है जबकि वह उसकी सूची का पुष्टि किया हुआ सिाय सदस्य हो। विशेष स्थिति में किसी नये सदस्य को मान्यता प्राप्त दल केवल अपने द्वारा समर्थित उम्मीदवार घोषित करके चुनाव लड़वा सकता है, ऐसी दशा में उसे सुरक्षित चुनाव चिह्न नहीं दिया जा सकता।
- प्रत्येक सिाय सदस्य का नाम मतदाता सूची में होना सुनिश्र्चित करने और उसका प्रमाणपत्र देने की दशा में ही सिाय सदस्य बनाये जाने को अनिवार्य किया जाना चाहिये।
- प्रत्येक राजनीतिक दल के सिाय सदस्य से उसकी आय के अनुसार पार्टी लेवी का लिया जाना सुनिश्र्चित किया जाना चाहिये जिससे पार्टियां अपने सदस्यों के सहयोग से ही चलें न कि “बाहरी’ सहयोग से। इससे दलों को उनके सिाय सदस्यों की आय, उसके स्रोत और उनके व्यवसाय के बारे में जानकारी रहेगी व वे भविष्य की अप्रिय स्थितियों से सतर्क रह सकेंगे। कम आय वाले सिाय सदस्यों को पार्टी की ओर से वेतन भी दिया जाना अनिवार्य किया जाना चाहिये जिससे वे राजनीतिक प्रभाव का दुरुपयोग करने की ओर मुखातिब न हों।
- चुनावी चन्दे के लिए एक सुनिश्र्चित राशि से अधिक की राशि को न केवल चैक से लिया जाना सुनिश्र्चित किया जाना चाहिये अपितु उसकी सूचना बन्द लिफाफे में चुनाव आयुक्त को दिया जाना भी अनिवार्य किया जाना चाहिये। इन लिफाफों को केवल किसी विवाद की स्थिति में ही खोला जाना चाहिये।
- चुनाव प्रचार के लिए कार्यकर्ताओं के उनके कार्य के अनुसार सूची बनाई जाकर उसे चुनाव अधिकारी को उपलब्ध कराया जाना अनिवार्य किया जाना चाहिये तथा यदि संभव हो तो मतदान दिवस के पूर्व तक उनका एक डेस कोड भी होना चाहिये। प्रत्येक चुनावी कार्यकर्ता को दल की ओर से परिचय-पत्र जारी होना चाहिये। ऐसे प्रत्येक कार्यकर्ता के लिए चुनाव आयुक्त से जारी प्रमाणित चुनावी नियमावली की प्रति खरीदना व साथ में रखना अनिवार्य होना चाहिये।
- निर्दलियों समेत गैर मान्यता प्राप्त दलों के उम्मीदवारों को भी उम्मीदवारी का फार्म भरते समय अपना चुनावी घोषणापत्र जारी करना अनिवार्य करना चाहिये, जिससे मतदाताओं को यह पता चल सके कि वे क्यों चुनाव लड़ रहे हैं और वे दूसरे उम्मीदवारों से सोच में किस तरह भिन्न हैं।
गत दिनों किये गये चुनाव सुधारों को जनता व मीडिया का व्यापक समर्थन मिला है। इसलिए इस दिशा में आवश्यकता अनुसार सुधारों को लागू करने में कोई संकोच नहीं होना चाहिये।
– वीरेन्द्र जैन
You must be logged in to post a comment Login