23 साल की रुचि की मां एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर है। रुचि कहती हैं, “मेरे लिए अपने माता-पिता से बढ़कर इस दुनिया में कोई और नहीं है। अपनी शिक्षा के दौरान ही मैंने तय कर लिया था कि अपने माता-पिता की पसंद से ही शादी करूंगी।’ इत्तेफाक से उसके एक सहपाठी के माता-पिता की ओर से उसके माता-पिता को रुचि से विवाह का प्रस्ताव मिला। रुचि को वह एक बढ़िया ऑफर लगा। लड़के वालों के परिवार की अच्छी पृष्ठभूमि थी। एक सुरक्षित नौकरी और लंबी-चौड़ी तनख्वाह। कुल मिलाकर रुचि के लिए यह एक परफेक्ट मैच था। उसने तुरंत हां कर दी और उसी के सहपाठी नितिन के साथ उसका विवाह हो गया।
आज दोनों सफल वैवाहिक जीवन बिता रहे हैं। वह आगे बताती हैं कि सगाई और शादी के बीच के अंतराल में हम दोनों को एक-दूसरे को जानने-समझने का काफी मौका मिला। संयोग से रुचि और नितिन एक ही कंपनी में काम करते थे। इसके पहले वह सहपाठी थे। इसके बावजूद उनकी लव-मैरिज नहीं थी। मगर क्या रुचि प्रेम विवाह करतीं? रुचि कहती हैं, “नहीं। मैं प्रेम विवाह के पक्ष में बिलकुल नहीं हूं, क्योंकि आजकल जिस तरह से प्रेम-विवाह भंग हो रहे हैं और तलाक के मामलों में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है। इसको देखकर लगता है कि माता-पिता की पसंद से ही शादी जानी चाहिए।’
पेशे से फाइनेंशियल एनालिस्ट अमरजीत के माता-पिता की दिली इच्छा थी कि उनकी बेटी एक सिख के साथ ही शादी करे। वह अपनी बेटी को अपनी जाति से बाहर किसी और जाति के लड़के से शादी करने के विषय में सोच भी नहीं सकते थे। अमरजीत को अपने तमाम मामलों में पूरी स्वतंत्रता हासिल थी। लेकिन उसके माता-पिता द्वारा उसे सख्ती से कह दिया गया था कि उसे शादी एक सिख लड़के से ही करनी होगी।
आमतौर पर माता-पिता नई पीढ़ी के युवक-युवतियों के साथ इस तरह की बंदिशें नहीं लगाते। उन्हें काफी हद तक अपनी पसंद के लड़के-लड़की से शादी करने की आजादी होती है। याद करें, पिछली सदी के 70 और 80 के दशक का वह दौर जब कम उम्र की लड़कियां किसी के प्यार के चक्कर में पड़कर अपनी पसंद के लड़के से शादी करने के लिए घर से ही चली जाती थीं। समाज में घटने वाले इस तरह की घटनाओं से माता-पिता के दिमाग में यह बात आने लगी थी कि बेहतर यही है कि लड़की अपने पसंद के लड़के से उनकी सहमति से शादी कर ले। आज स्थितियां बदल गई हैं, आजकल की पढ़ी-लिखी कमाऊ लड़कियां ज्यादातर अपने माता-पिता की पसंद से ही शादी करने को तरजीह देती हैं। इसका यह मतलब नहीं है कि उनकी सोच अब परंपरागत हो गई है। दरअसल, हमारे समाज में अरेंज मैरिज का चलन कभी पुराना नहीं हुआ और शायद कभी न होगा। अरेंज मैरिज भारत में ही नहीं बल्कि मिडिल ईस्ट, अमेरिका के ग्रामीण क्षेत्रों, दक्षिण अमेरिका और जापान में भी ज्यादा पसंद की जाती है। भारत में लगातार लड़के-लड़कियों के बीच अरेंज मैरिज करने की चाह बढ़ रही है। अरेंज मैरिज करना अब मॉडर्निटी का भी सूचक हो गया है। महिलाएं अब हर क्षेत्र में अपना कॅरियर बना रही हैं। अपने कॅरियर के लिए उन्हें घंटों घर से बाहर रहना पड़ता है, जिसके कारण घर की जिम्मेदारियों में साझेदारी ज्यादा नहीं कर पातीं। यही वजह है कि वह अपने सास-ससुर और माता-पिता की सहमति से ही सब कुछ करना चाहती हैं।
उपभोक्तावादी संस्कृति का प्रभाव शादियों पर भी पड़ा है। लड़के-लड़की की शादी में मनी फैक्टर एक बहुत बड़ी चीज बन गया है। आमतौर पर लड़कियों का मानना होता है कि उनके माता-पिता अपनी पसंद से जो भी लड़का देखेंगे, वह खाते-पीते घर का होगा। लड़के की पारिवारिक पृष्ठभूमि, उसकी आर्थिक सुरक्षा और तमाम तरह की चीजों के विषय में जब माता-पिता संतुष्ट होते हैं, उसके बाद ही वह लड़की से विवाह के लिए हां कहलवाते हैं। आजकल की लड़कियां खुले तौर पर इस बात को स्वीकार करती हैं कि उन्हें भी ऐसे लड़के से शादी करना पसंद है, जिसकी आर्थिक स्थिति अच्छी हो। कामकाजी लड़कियां हों या गैर- कामकाजी, उनके सामाजिक दायरे में उन्हीं के बराबर के स्तर के लोग होते हैं। यदि लड़की कामकाजी है तो उसके हमउम्र दोस्त लगभग उसके बराबर कमाने वाले होते हैं। लड़कियां अपने सामाजिक दायरे में एक हद तक दोस्ती करना तो पसंद करती हैं, लेकिन विवाह के लिए अपने माता-पिता की पसंद-नापसंद को ही पूरी प्राथमिकता देती हैं, क्योंकि वह इस बात से आश्र्वस्त होती हैं कि उनके माता-पिता उनके लिए जो लड़का देखेंगे वह हर लिहाज से सही होगा। कुछ लड़कियां माता-पिता द्वारा सुझाए गए लड़के के विषय में भी पूरी जानकारी लेने के बाद और उसकी आर्थिक पृष्ठभूमि और आर्थिक सुरक्षा से आश्र्वस्त होने के बाद ही शादी के लिए हां कहती हैं।
– नम्रता नदीम
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