नए शहर को बनाने का काम पेशवा मीर मोहम्मद मोमिन को सौंपा गया। उन्होंने बड़े जोश के साथ इस काम को संभाला। इसके लिए मीर ने खास तौर पर मीर अबु तलीब, कमाल-उद-दिन शिराजी और शहरयार जहां को ईरान से इस काम के लिए बुलाया। उनके आने से पहले ही गॉंव में खुदाई का काम पूरा कर दिया गया और उनके आते ही काम और तेजी से होने लगा।
नए शहर की नींव रखने के लिए सुल्तान एक सुसज्जित हाथी पर अपने दरबारियों के साथ आया। मीर मोहम्मद ने राजसी सम्मान के साथ उनका स्वागत किया। जब सुल्तान के आगे नए शहर का रेखाचित्र रखा गया तो उसकी आँखें खुशी से जगमगा उठीं।
“”मैं देखना चाहता हूं कि यह शहर कैसा लगेगा?”
मीर मोमिन ने नक्शा पूरा खोल दिया।
नक्शा देखते ही सुल्तान के मुंह से निकला, “”चार मीनारें। मैंने सुना है कि दिल्ली में भी एक मीनार है जो कि बहुत ऊँचा है।”
“”जहांपनाह, इस शानदार भवन के चारों कोनों पर चार मीनारें होंगी।”
“”अच्छा! और क्या होगा? ”
“”यह भवन चौकोर होगा, जिसकी तीन मं़िजल होंगी। इसकी छत पर एक मस्जिद होगी, जिसका रुख मक्का की दिशा में होगा।”
“”सुभान अल्लाह..हमें पसंद आया।”
इस मस़्िजद में पैंतालीस लोगों के बैठने की जगह होगी। जरूरत पड़ने पर और लोग भी आ सकते हैं। इस भवन से चार सड़कें सुल्तान के राज की दिशाओं की तरफ जाएँगी।
फिर पश्चिम की ओर इशारा करते हुए उसने आगे कहा, “”यह सड़क हुजूर के किले से शुरू होकर मछलीपट्टनम बंदरगाह तक जायेगी।”
सुल्तान ने मन में बंदरगाह की दूरी का अनुमान लगाया और कहा कि “”बंदरगाह यहॉं से तकरीबन तीन सौ किलोमीटर दूर है।” और पूछा, “”किला यहॉं से कितनी दूर है?”
“”हुजूर, इस बिन्दु से मुख्य द्वार की दूरी आठ किलोमीटर है और वहॉं से यह महल एक किलोमीटर दूर है।”
“”बहुत खूब!”
“”और यह सड़क उत्तर दिशा में नदी तक जाती है। यह दूसरी सड़क कोह-ए-तूर तक जाती है, जो तकरीबन पॉंच किलोमीटर दूर होगा।”
“”आह, कोह-ए-तूर!”, सुल्तान ने कहा, “”बेहद उम्दा और ताजगीयुक्त वातावरण है, वहॉं की। हम वहॉं एक महल बनवाना चाहते थे। यकीनन आप हमारी मंशा को भूले नहीं होंगे।”
“”बिल्कुल नहीं हुजूर। इस योजना में उस महल का प्रावधान रखा गया है।”
“”बहुत अच्छा! हमें उस महल की योजना के बारे में बताओ।”
“”जहॉंपनाह, उससे पहले मुझे इस जगह के बारे में बताने की इजाजत दें।”
सुल्तान ने देखा कि अभी दो बड़ी-बड़ी मेजों पर रखे नक्शे देखने बाकी हैं।
सुल्तान के चेहरे पर बेजारगी की एक हल्की-सी झलक को भांपकर पेशवा ने गुजारिश की- “”अगर हुजूर चाहें तो ़गुलाम इस चर्चा को यहीं पर रोक दें।”
“”नहीं, नहीं! अभी थोड़ी देर और चलने दो”, फिर सुल्तान सहसा, नक्शे की तरफ़ पलटकर बोले- “”लेकिन यहॉं ाॉस दिखाई पड़ता है। यह तो ईसाई मत का चिह्न है!”
“”बेशक, मेरे मालिक। हुजूर की तेज निगाहें बारीक से बारीक ऩुक्ते को भी पकड़ लेती हैं, लेकिन हमने इस योजना में ाॉस नहीं बनाया है। यहॉं से उत्तर की ओर 76 मीटर की दूरी पर एक दूसरा चौराहा है।” पेशवा ने दूसरा नक्शा दिखाते हुए कहा- “”यहां प्रत्येक दिशा में स्थित चारकमानों के सामने एक फव्वारा लगाया जायेगा। अब अगर आप चाहें तो अगली मेज की तरफ़ चलें।”
अगली मेज पर, पहले से भी बड़ा नक्शा मौजूद था। इस नक्शे में अनेक इमारतों की रूप-रेखाएं बनी थीं और सुदूर उत्तर में मूसी नदी के प्रतीक स्वरूप एक हल्की-सी नीली रेखा खींची हुई थी।
मसविदे के बीचोंबीच इशारा करते हुए मीर मोमीन ने अर्ज किया, “”यहॉं पर एक अष्टभुजाकार फव्वारा होगा और यहॉं से निकलने वाली चार नहरें, प्रत्येक सड़क को दो भागों में बांट देंगी।”
“”एक फव्वारा और चार नहरें?” युवा शासक का चेहरा चमक उठा।
“”मीर जुमला, हमारी जन्नत में भी ऐसा ही है ना!”
“”बिल्कुल सही फरमाया हुजूर। ये चार नहरें, जन्नत की खालिस पानी, खालिस दूध, खालिस शहद और खालिस शराब से भरी नहरों का प्रतीक होंगी।”
“”बेशक, मीर मोमिन।”
“”जहॉंपनाह, हमारी पाक जन्नत में निरंतर चलने वाले फव्वारे के पास “सिदर’ और “तलहा’ नामक दो वृक्ष हैं। यह वृक्ष धरती पर नहीं होते। इसलिये इनकी जगह पर एक नारियल का और एक सुपारी का दरख्त लगाने का प्रस्ताव है।”
इस व्याख्या से युवा शासक का उत्साह और बढ़ा। उसने और जानकारी की इच्छा प्रगट की।
“”मेरे मालिक, चारों तरफ चार कमाने होंगी। पश्र्चिमी कमान के पीछे शाही महल होंगे, जो शहंशाह और शाही परिवार का खूबसूरत निवास स्थान होगा। यह महल मूसी नदी तक हजार वर्ग मीटर के क्षेत्र में फैले होंगे। यहॉं पर शाही दरबार की व्यवस्था भी होगी। पूर्वी कमान के ऊपर बैठकर संगीतकार, संगीत के तार छेड़ेंगे। खासकर, हुजूर का मनपसंद वाद्य “शहनाई’ दिन में चार बार बजाई जाएगी। उत्तरी और दक्षिणी कमान पर, यहॉं की हिफाजत के लिये हथियारबंद पहरेदार तैनात रहेंगे।”
“”ठीक है, तो यहॉं पर एक ाॉस होना चाहिये। यहॉं दो ाॉस क्यों हैं?”
“”हुजूर, हमारी पाक पुस्तक में केवल एक नहीं, बल्कि कई जन्नतों का जिा है। आप कुरान शरीफ़ की सुरा 55 याद करें। ये दो ाॉस दो जन्नतों को दर्शाते हैं। पश्र्चिमी चौक पर, हमारे जहॉंपनाह का निवास होगा तो दक्षिण पश्र्चिम की तरफ़ उनकी वफादार रिआया अपने मालिक के निरंतर समर्पण में रहेगी। हमारी पावन पुस्तक की सुरा 56 में ऐसा ही बताया गया है, हुजूर।”
“”और, पश्र्चिमी कमान के पीछे मेरी हूरें होंगी।”, मानो सुल्तान ने आश्वासन के लिए पूछा।
“”बेशक, जहॉंपनाह।”
“”तो, तुमने नये शहर की योजना हमारी पाक किताब के मुताबिक बनाई है। बहुत खूब, बहुत होशियार हो।”
“”यह तो मेरे मालिक की हौसला आफ़जाई है। आपके हुकुम के मुताबिक, इस योजना में आपकी वफ़ादार रिआया के लिये भी दुकानों, मकानों, मदरसों, मस्जिदों, सरायों तथा मरीजों के लिये सरकारी अस्पताल का प्रावधान रखा है।”
“”बहुत बढ़िया, पेशवा साहिब, आप हमें बहुत अच्छी तरह से समझते हैं। आप इस योजना को अमली जामा कैसे पहनायेंगे? आपके उस्ताद लोग कहॉं हैं?”
“”आला ह़जरत, क्या मैं अपने दल के मुख्य लोगों को ह़जूर की खिदमत में पेश कर सकता हूँ? मैंने इस काम के लिए कुछ उस्ताद लोगों को खास तौर पर ईरान से बुलवाया है। इन लोगों ने ईरान की शान माने जाने वाले शहर “इस्फ्हान’ की योजना बनाई थी और उसका निर्माण किया था।”
“”तो, हम यहॉं “इस्फ़्हान’ बनाने जा रहे हैं।”
“”इस्फाहान से बेहतर, हुजूर! इस नये शहर के निर्माण के लिए शाह अब्बास को भी अपने विशेषज्ञों को यहॉं भेजना पड़ेगा।
“”मीर मोमिन, हम चाहते हैं कि इस शहर में जगह-जगह पर इतने बा़ग-बागीचे लगवाए जायें कि पूरा शहर हरा-भरा ऩजर आये हर तरफ़ हर्यावल ही हरयावल दिखाई दे।”
“”हु़जूर नये नगर की ढाई किलोमीटर वर्ग की आबादी 23 किलोमीटर वर्ग की हरयावल से घिरी होगी। मैं अपने मालिक के चमनों के प्रति रुझान को जानता हूँ। वैसे भी इस्लाम में, जन्नत का मतलब ही चमन है। अरबी भाषा में भी “जन्नत’ का मतलब चमन भी है और स्वर्ग भी।”
“”मीर जुमला, हम नहीं जानते कि मरने के बाद हमें जन्नत नसीब होगी या नहीं, हम इस ़िंजदगी में तो जन्नत में रहना चाहते हैं।”
“”जहॉंपनाह की लंबी आयु हो। आइंदा ऐसे अशुभ बोल मत बोलिएगा। इतने युवा और महान इंसान के लिये अभी स्वर्ग की बात करना उचित नहीं। आपकी प्रजा आपको बेहद चाहती है, हमें आपके आशीर्वाद की ़जरूरत है। आप के साये तले ही हमारी जन्नत है।”
इस पर मोहम्मद ने एक तश्तरी से जरी की चमचमाती खिल्लत उठाकर मीर मोहम्मद को दी। इस पर पेश्वा ने नम्रता से झुकते हुए बारंबार फर्शी सलाम किए। सुल्तान ने मीर जुमला के तीन सहायकों अबू तालिब, उस्ताद कमाल-उद-दीन शीरा़जी और शहरयार जहान को भी इसी प्रकार सम्मानित किया।
जब सुल्तान इस पूरी प्रिाया से निपट चुके, उस वक्त आकाश में चमकते सूर्य के बावजूद बारिश की हल्की बौछार हुई। सभी ने इसे शुभ माना। सुल्तान ने स्वयं सबसे पहले इस प्राकृतिक ऩजारे की तरफ़ इशारा किया।
उस रात चिचलम वासियों के लिये शाही रसोई की ओर से निःशुल्क रात्रि-भोज आयोजित किया गया। इसके बाद जमकर आतिशबाजी भी की गई।
शहर के निर्माण का काम तेजी से होने लगा था। हजारों आदमी और औरतें दिन-रात इस काम में जुटे हुए थे। दुनिया के हर कोने से निर्माण का सामान आ रहा था, लेकिन सबसे ज्यादा ध्यान चारमीनार और दो महलों दौलतेेखाना-ए- अली और खुदादाद महल पर दिया जा रहा था। ये दो बड़ी परियोजनाएँ थीं। इनके सामने दुकानों और घरों का निर्माण काफी छोटा था।
(शेष अगले रविवार)
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