दिमाग को विचलित रखने वाला योग है – राहु और गुरु का संयोग
मूल नक्षत्र : 27 नक्षत्रों के क्रम में 19वें स्थान पर आने वाला यह नक्षत्र, राशि चा की कुल 360 डिग्री के 240.00 डिग्री से 253.20 डिग्री तथा धनु राशि के 0.00 डिग्री से 13.20 डिग्री के मध्य समाता है। मूल नक्षत्र को अंग्रे़जी में “स्कॉरपियन या “लेम्डा’ भी कहते हैं जबकि अरबी भाषा में अश-शौलह (बिच्छु का डंक) तथा चीनी भाषा में इसे “उई’ के नाम से जाना जाता है। इस नक्षत्र में 11 तारों का होना माना गया है, जिसकी आकृति जड़ के आकार जैसी तथा कुछ-कुछ शेर की पूंछ जैसी भी दिखाई देती है। मूल का अर्थ जड़ होता है, शायद इसी कारण इसका यह नाम पड़ा। खगोलशास्त्रीयों के अऩुसार मूल नक्षत्र की गिनती प्रथम तारापुंज के रूप में होने के कारण भी इसे मूल यानि प्रथम के नाम से जाना गया है। आसमान में यह अगस्त माह के आखिरी भाग में मध्याकाश में रात्रि 8 से 9 बजे के बीच वृश्र्चिक राशि के अन्त में दिखाई पड़ता है। मूल नक्षत्र का अधिष्ठाता देवता “नृति’ या “नैत्रृत्य’ है। नृति एक देवी है, जिसका रंग काला है तथा वह काले कपड़े पहनती है। विश्वास है कि वह मृतकों के जगत में निवास करती है तथा बुराई का प्रतिनिधित्व करती है। इस कारण किसी अनुष्ठान से पूर्व इस देवी को दूर रखने के लिए विशेष प्रार्थना की जाती है। “मूल नक्षत्र’ की ज्योतिषीय दशा-महादशा का स्वामी ग्रह “केतु’ है, अर्थात् इस नक्षत्र में उत्पन्न जातक की प्रारम्भिक महादशा केतु ग्रह से संबंधित होगी। ज्योतिष जगत में मूल नक्षत्र को लेकर काफी भय व्याप्त रहता है तथा इस नक्षत्र में उत्पन्न जातक के काफी पूजा-पाठ एवं अनुष्ठान कराये जाते हैं। कूर्मचा के अऩुसार इसे पश्चिम दिशा का सूचक माना गया है।
शारीरिक गठन : मूल नक्षत्र के जातकों का अच्छा शारीरिक गठन, सुन्दर अंग तथा चमकदार आँखें होती हैं। वह परिवार में सबसे आकर्षक व्यक्ति होता है।
स्वभाव एवं सामान्य घटना : जातक मीठे स्वभाव का व शान्तिप्रिय व्यक्ति होता है। जीवन में उसके निर्धारित नियम होते हैं। इनके मन में एक भय-सा रहता है जो कि सदा नहीं रहता तथा ये लोग किसी भी विपरीत परिस्थिति का सामना करने में सक्षम होते हैं। इन्हें ना तो आने वाले कल की चिन्ता होती है और ना ही येे अपनेे मामले में ज्यादा गम्भीर होते हैं। कई बार तो सब कुछ ईश्वर पर छोड़ कर अति आशावादी बन जाते हैं।
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