जम्मू में भड़के जन-आंदोलन ने जन विरोध का रूप धारण कर लिया है। वहॉं कर्फ्यू और कानून-व्यवस्था को धता बताकर स्त्री-पुरुष यहॉं तक कि बच्चे भी सड़कों पर निकल पड़े हैं। सेना भी इस जन विरोध को काबू करने में असफल रही। पिछले एक-डेढ़ माह से जारी इस आंदोलन के प्रति देश के राजनेताओं के मुंह बंद रहे। कोई भी कुछ भी कहने से कतराता रहा। केंद्र सरकार भी तमाशा देखती रही। कांग्रेस ने तुष्टिकरण की नीति अपनाई। आंदोलन तीव्र होता गया। अंततः उसने जन आंदोलन का रूप धारण कर लिया। आंदोलन समाप्ति का हल निकाला जा सकता था, क्योंकि वह तो जन इच्छा के एकपक्षीय परिणाम तक जारी रहता है। इस आंदोलन में जन और अर्थ हानि का कोई महत्व नहीं रहता। यही स्थिति जम्मू के इस जन विरोध की है। इस विरोध के पीछे मात्र अमरनाथ श्राइन बोर्ड को आवंटित भूमि का ही मामला नहीं है। हमेशा जम्मूवासियों के साथ पक्षपात, कश्मीरी और जम्मूवासियों के बीच सुविधाओं का पक्षपातपूर्ण विभाजन, साम्प्रदायिकता, केंद्र सरकार का मौन रहना, कांग्रेस की तुष्टिकरण की नीति और अलगाववादियों को प्रोत्साहन आदि के कारण यह चिंगारी सुलगी है, जो अमरनाथ श्राइन बोर्ड को भूमि आवंटन रद्द करने के विरुद्घ आंदोलन के रूप में उभरी। जितनी विकराल समस्याएं होंगी, आंदोलन भी उसी स्तर पर तीव्र होगा।
कई उपेक्षाओं के कारण दबी हुई भावनाओं के उबाल के चलते इस आंदोलन ने जन विरोध का रूप ले लिया। यदि एक समस्या का हल निकल भी गया तो अन्य समस्याओं का क्या होगा। एक समस्या के हल करने से कुछ समय के लिए जम्मूवासियों को शांत अवश्य किया जा सकता है परंतु उनके अंदर चिंगारी सुलगती रहेगी, जो कब विकराल रूप धारण कर ले, कहा नहीं जा सकता। जम्मू में जारी यह आंदोलन कोई साम्प्रदायिक नहीं है। इस आंदोलन में हिन्दू, मुस्लिम, सिख सभी भागीदारी निभा रहे हैं, जबकि कश्मीर घाटी में इस आंदोलन को साम्प्रदायिक दृष्टि से देखा जा रहा है।
जम्मू आंदोलन अमरनाथ श्राइन बोर्ड को आवंटित भूमि को बहाल कर ही नियंत्रित किया जा सकता है। साथ ही पक्षपातपूर्ण रवैया और तुष्टिकरण की नीति छोड़ अलगाववादियों को किनारे कर जम्मूवासियों के साथ न्याय किया जाना चाहिए। जब भी पाक सेना द्वारा गोलीबारी की जाती है, उसके शिकार जम्मूवासी ही होते हैं और झोली, घाटी के लोगों की भरी जाती है। हमेशा घाटी को पाक के साथ जाने का भय दिखाकर केंद्र सरकार पर दबाव बनाकर जम्मूवासियों की उपेक्षा कर घाटी को संपन्न किया जाता रहा है। जम्मू की बिगड़ी हालत पर जहॉं कांग्रेस की नीतियां जिम्मेदार हैं, वहीं पीडीपी भी कम दोषी नहीं है। पीडीपी नेताओं पर तो समय-समय पर आतंकी संगठनों से संपर्क के आरोप भी लगते रहे हैं। अमरनाथ श्राइन बोर्ड को आवंटित भूमि को रद्द किए जाने के मामले में जहॉं केंद्र सरकार और कांग्रेस ने चुप्पी साध ली, वहीं भूमि आवंटन को लेकर घाटी के लोगों और अलगाववादियों ने दुष्प्रचार करने में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। भूमि आवंटन को इस नजर से पेश किया गया कि बालटाल में हिन्दुओं को बसाने की साजिश चल रही है। जिस तरह इ़जराइल ने फिलिस्तीन में यहूदियों को और चीन ने तिब्बत में चीनियों को बसाकर उनकी जनसंख्या में वृद्घि की है, उसी प्रकार बालटाल में हिन्दुओं की संख्या बढ़ाई जा रही है। यह किसी ने विचार नहीं किया कि बालटाल में साल में आठ माह बर्फ जमी रहती है, वहॉं आबादी का बसना असंभव है। मात्र दो माह मौसम अनुकूल होने पर तीर्थयात्रियों का आवागमन होता है। यह ़जमीन मात्र दो माह के लिए यात्रियों की सुविधा हेतु उपयुक्त है। अमरनाथ श्राइन बोर्ड को भूमि आवंटन को मंजूरी देने में पीडीपी के दो मंत्री भी शामिल थे। तीन सालों तक इस भूमि के आवंटन के हर पहलू पर विचार-विमर्श करने के बाद भूमि आवंटित करने का प्रस्ताव तैयार किया गया। जब गुलाम नबी आ़जाद की सरकार की कैबिनेट ने सर्वसम्मति से भूमि आवंटन को मंजूरी दे दी तो हुर्रियत कांग्रेस जैसी अलगाववादी संस्थाओं ने इसेक विरुद्घ दुष्प्रचार शुरू कर दिया। इससे भी एक कदम आगे कांग्रेस की तुष्टिकरण की नीति ने कमाल कर दिखाया। भूमि आवंटन तो रद्द किया ही गया, अमरनाथ श्राइन बोर्ड भी भंग कर दिया गया। बोर्ड का काम मात्र अमरनाथ गुफा में पूजा कराने तक सीमित कर दिया गया। इस विवाद में सरकार ने अलगाववादियों के सम्मुख घुटने टेक दिए और श्राइन बोर्ड को कमजोर कर दिया। इसके बावजूद यह उम्मीद किस आधार पर कर ली गई थी कि जम्मू भड़केगा नहीं?
– सुरेश समाधिया
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