संघीय जॉंच एजेंसी का गठन क्यों जरूरी

बंगलूर एवं अहमदाबाद में हुए विस्फोटों और सूरत में बरामद बमों के बाद एक बार फिर संघीय जॉंच एजेंसी बनाने की मांग जोर पकड़ रही है। इन विस्फोटों में 51 लोगों की जानें गयीं, दो सौ लोग घायल हुए और अपार संपत्ति का नुकसान हुआ। प्राप्त जानकारी के अनुसार 30 बम फटे और 28 बम टाइमर में तकनीकी खराबी या अन्य कारणों से नहीं फटे, अन्यथा मरने और घायल होने वाले व्यक्तियों की संख्या कहीं अधिक होती। प्रारम्भिक जॉंच के अनुसार इन बम विस्फोटों को अंजाम देने में एक विदेशी शक्ति के अलावा विदेशी संगठनों और विदेशी नागरिकों की प्रमुख भूमिका थी। इसके अलावा इन बमों के निर्माण में पहली बार ऐसी टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया गया जिसका पहले देश में प्रयोग नहीं किया गया था। आतंकवादियों ने विस्फोट से कुछ ही मिनट पहले 14 पृष्ठों का धमकीभरा संदेश ई-मेल से भेजा। यह संदेश इतने कपटपूर्ण तरीके से भेजा गया कि भेजने वाले का पता लगाना कठिन है। आतंकवादियों ने अपनी कार्रवाईयों को किराये की साइकिलों, चोरी की कारों और चोरी के इंटरनेट कनेक्टिविटी इस्तेमाल करके अंजाम दिया। इससे पता लगता है कि उनका संगठन कितना व्यापक और कुशल है।

वास्तव में अंतर्राज्यीय और अंतर्राष्टीय आतंकवादी अपराधों, मादक पदार्थों और स्त्री, पुरुषों, बच्चों के अवैध व्यापार और अवैध धन की आवाजाही को रोकने के लिए इस तरह की एजेंसी बनाने का विचार एनडीए सरकार के गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी का था। संघीय जॉंच एजेंसी बनाने के प्रस्ताव का विरोध इस आधार पर किया जा रहा है कि इससे राज्यों के अधिकार कम होंगे और केंद्र को अपने राजनीतिक स्वार्थ साधने के लिए राज्यों के अधिकार क्षेत्र में अनुचित हस्तक्षेप का अवसर मिलेगा। राज्यों का यह भी कहना है कि केंद्र सरकार के अंतर्गत पहले ही इंटेलिजेंस ब्यूरो, सीबीआई और सैनिक एवं अर्धसैनिक बलों की गुप्तचर संस्थाएं हैं। अतः ऐसी एक और एजेंसी बनाने से कार्य में तो सुधार नहीं होगा लेकिन सरकारी खर्च एवं भ्रष्टाचार में बढ़ोत्तरी अवश्य होगी और अंततः कानून और व्यवस्था राज्यों का विषय है। संविधान निर्माताओं ने भली-भांति विचार कर यह विषय राज्य सूची में रखा था। इसलिए इस विषय के साथ छेड़छाड़ करना कदापि उचित नहीं होगा।

निःसंदेह कानून और व्यवस्था राज्यों का विषय है। लेकिन आतंकवाद कानून और व्यवस्था का विषय नहीं, देश की सुरक्षा का विषय है। देश की एकता, अखंडता और प्रभुसत्ता की रक्षा करने का विषय है। अगर देश के शत्रु आए दिन निरपराध नागरिकों की हत्या करके देश में असुरक्षा और अशांति की भावना पैदा करते हैं तो केंद्र सरकार का यह कर्त्तव्य बनता है कि वह देश के खिलाफ छद्म युद्घ करने वालों को मुंहतोड़ जवाब देकर उनका सिर कुचल दे। संविधान की सप्तम अनुसूची की पहली सूची के अंतर्गत केंद्र सरकार का यह दायित्व है कि वह भारत और उसके प्रत्येक भाग की रक्षा करे। इसके लिए वह युद्घ की तैयारी, युद्घ और अन्य उपाय कर सकती है।

राष्टीय सुरक्षा सलाहकार, उच्चतम न्यायालय, राष्टीय मानव अधिकार आयोग, पुलिस सुधारों के लिए नियुक्त विभिन्न समितियों और प्रधानमंत्री सहित देश का उत्तरदायी प्रबुद्घ जनमत संघीय अपराधों की जॉंच के लिए ऐसी एजेंसी बनाने के पक्ष में है।

यह सच है कि संविधान में कानून और व्यवस्था की जिम्मेदारी राज्यों को सौंपी गई थी। उस समय की परिस्थितियों में यह व्यवस्था एकदम ठीक थी। लेकिन आज परिस्थितियां बदल गई हैं। आज देश की एकता, अखंडता और साम्प्रदायिक सद्भाव को खतरा पैदा हो गया है। फिर कुछ राज्यों को छोड़ शेष राज्यों के पास पुलिस तंत्र को चुस्त-दुरुस्त और आधुनिक बनाने के लिए संसाधन भी नहीं हैं। अनेक राज्यों में पुलिस के ह़जारों पद खाली पड़े हैं। पुलिस थानों में टेलीफोन, जीप और आधुनिक हथियार नहीं हैं। कुछ राज्यों के लिए संसाधनों के अभाव में पुलिस बल का आधुनिकीकरण करना संभव नहीं है।

जहॉं तक संघीय जॉंच एजेंसी द्वारा राज्यों में अनुचित हस्तक्षेप करने का प्रश्र्न्न है, इसे रोकने के लिए कानून में समुचित व्यवस्था की जा सकती है। इस तरह की एजेंसी में वरिष्ठ पदों पर नियुक्ति का दायित्व एक ऐसे मंडल को सौंपा जा सकता है जिसमें सरकार और विपक्ष दोनों के प्रतिनिधि हों। संसदीय समिति की राय थी कि वर्तमान स्थिति को ठीक करने के लिए कानून में संशोधन किया जाए और सीबीआई को यह कार्य सौंप दिया जाए। सीबीआई की स्थापना मूल रूप से सरकारी कर्मचारियों में भ्रष्टाचार को रोकने के लिए की गई थी। उस समय इसका नाम “स्पेशल पुलिस एस्टैबलिशमेंट’ था। कालान्तर में इसका नाम “सेंटल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन’ कर दिया गया और इसे गंभीर किस्म के अपराधों की जॉंच का काम भी सौंप दिया गया। सीबीआई का गठन मूल रूप से एक गुप्तचर एजेंसी के रूप में नहीं हुआ था। आतंकवादियों से लोहा लेने के लिए हमें इ़जराइल की मोसाद जैसी एजेंसी की जरूरत है जिसके युवा सदस्य सम्पूर्ण समर्पण की भावना से काम करें। इस तरह की एजेंसी को परिपक्व होने में कुछ समय लगेगा लेकिन इसकी शुरुआत की जा सकती है।

संघीय जॉंच एजेंसी का अपना कैडर होना चाहिए। प्रारंभ में उसमें चोटी के पदों पर कुछ वरिष्ठ, अनुभवी और सत्यनिष्ठ अधिकारियों की नियुक्ति की जा सकती है। लेकिन उसके अधिकांश सदस्यों की नियुक्ति नई भर्ती द्वारा की जानी चाहिए। इन लोगों को सभी किस्म का गहन प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। इनको आकर्षक वेतन, भत्ते, ग्रेच्युटी और अन्य सुविधाएं दी जानी चाहिए। इस एजेंसी में लगातार युवा सदस्यों की भर्ती की जानी चाहिए। और 10,15 और 20 वर्षों की सेवा के बाद उन्हें पेंशन दे दी जानी चाहिए अथवा पुलिस, सीमा सुरक्षा बल या अर्ध सैनिक बलों में शामिल कर लिया जाना चाहिए।

 

– नवीन पंत

 

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