पाकिस्तान की सियासत लगता है एक अंधी सुरंग के हवाले हो गई है। इस लिहा़ज से यह सवाल फिर एक बार बड़ी ते़जी से उभरने लगा है कि वह इस सुरंग से निकल भी पायेगी या नहीं। जब तक परवे़ज मुशर्रफ राष्टपति के पद पर बरकरार थे, तब तक एक-दूसरे की कट्टर विरोधी सियासी जमातें आपस में बला की एकता का प्रदर्शन कर रही थीं। मगर मुशर्रफ को इस पद पर हटे मुकम्मल तौर पर एक सप्ताह भी नहीं होने पाया कि इनकी एकता संतरे की फॉंक की तरह बिखरने लगी। यह तो सभी मानते हैं कि मुशर्रफ इस्तीफा देने के बावजूद अपनी मर्जी से नहीं हटे थे, बल्कि इन सियासी जमातों ने उनकी इस तरह घेराबंदी की थी कि उन्हें मजबूरन अपना पद छोड़ना पड़ा था। उनके हटने के बाद उनका वह वक्तव्य मौजूदा हालात में सही सिद्घ होता समझ में आ रहा है, जो वह पद छोड़ने की मांग करने वालों की ़जानिब उछाला करते थे। मुशर्रफ ने कई मौकों पर अक्सर यह बात दुहराई है कि अगर वे अपने पद से हट जायेंगे तो पाकिस्तान गंभीर रूप से राजनीतिक अस्थिरता का शिकार हो जाएगा।
ग़जब यह कि मुशर्रफ के हट जाने के बाद उनकी कही यह बात अक्षरशः सही होती दिखाई दे रही है। मुशर्रफ को हटाने के लिए पी.पी.पी. के सहअध्यक्ष आसिफ अली जरदारी और पी.एम.एल. (एन) के अध्यक्ष नवाज शरीफ ने आपस में गठबंधन किया था। लेकिन अब उसी खाली हुए पद को भरने के लिए दोनों में तकरार और तनातनी इस कदर बढ़ी है कि नवाज शरीफ ने पी.पी.पी. सरकार को अपनी पार्टी द्वारा दिया जा रहा समर्थन वापस ले लिया है। हालॉंकि उन्होंने सार्वजनिक रूप से यह ़जरूर कहा है कि वे सरकार गिराने की कोई कोशिश नहीं करेंगे और रचनात्मक विरोध करेंगे, लेकिन इसका राजनीतिक मतलब क्या होता है, यह सभी जानते हैं। अपने समर्थन वापसी का कारण उन्होंने मुशर्रफ द्वारा आपातकाल में अपदस्थ किये गये जजों की पुनर्बहाली की घोषित समयसीमा बीत जाना भले ही बताया हो, मगर असली कारण पी.पी.पी. द्वारा आसिफ अली जरदारी की राष्टपति पद के लिए की गई एकतरफा घोषणा ही बतायी जा रही है। उनके विरोध में पी.एम.एल. (एन) की ओर से नवाज शरीफ ने पूर्व चीफ जस्टिस सईदुज्जमॉं सिद्दीकी को अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया है।
इस लिहा़ज से पाकिस्तान की दोनों ही प्रमुख पार्टियॉं अब एक-दूसरे के सामने मुट्ठी बॉंध कर देख लेने की मुद्रा में खड़ी हो गई हैं। जरदारी और शरीफ दोनों की राजनीतिक महत्वाकांक्षा अब पाकिस्तान की पूरी राजनीति को अपनी मुठ्ठी में कैद कर लेने को आमादा दिखाई देती है। जबकि वास्तविकता यह है कि यह दोनों एक-दूसरे से टकरा कर कुछ भी हासिल नहीं कर सकते, सिवा इसके कि पाकिस्तान को एक बार फिर अराजकता के हवाले कर दें। हॉं, उनकी सम्मिलित ताकत अगर सही दिशा में संचालित होती तो वे मुल्क को कट्टरतावाद और आतंकवाद के दलदल में धंसने से बचा सकते थे। उन्हें इस बात का एहसास ़जरूर होना चाहिए कि आतंकवाद का दरिंदा जो अब तक अपना शिकार पाकिस्तान के बाहर तलाश कर रहा था और ़खुद पाकिस्तान की सियासत उसे शह दे रही थी, अब अपने ही घर में अपने ही लोगों को शिकार बनाने लगा है। उन्हें इस बात का भी ़खयाल रखना होगा कि पाकिस्तान ने बड़ी हसरत के साथ लोकतंत्र का यह पौधा रोपा है। अगर अपने सियासी मंसूबों के चलते अवाम की इस हसरत को रौंदा गया तो पाकिस्तान फिर जम्हूरियत के रास्ते बढ़ने का हौसला शायद ही दिखा सके।
न्यूक डील पर भारत का कड़ा रुख
एन.एस.जी. की पिछली बैठक में भारत-अमेरिकी परमाणु करार को मंजूरी न मिलने के पीछे अमेरिकी प्रयासों की कमी मुख्य वजह बतायी जा रही है। माना यह जा रहा है कि इस पर आपत्ति करने वाले देशों की हैसियत ऐसी नहीं है कि अमेरिकी इशारे की वे अवहेलना कर सकें। विश्र्लेषक अमेरिका की इस बेदिली की कई वजहें बता रहे हैं, लेकिन इस तर्क में काफी दम समझ में आता है कि अमेरिका भारत को दबाव में लेकर एनपीटी पर हस्ताक्षर करने को मजबूर कर सके अथवा इस बात का उल्लेख मूल मसविदे में शामिल करा सके कि भारत भविष्य में कभी भी परमाणु विस्फोट नहीं करेगा।
कारण जो भी रहा हो, लेकिन इस मुद्दे पर भारत ने जो स्टैंड लिया है, उसने अमेरिका को पिछले पॉंव पर जाने को मजबूर कर दिया है। मसविदे की भाषा बदलने और कतिपय संशोधन स्वीकार करने के अमेरिकी वक्तव्य का मुँहतोड़ उत्तर देते हुए भारत ने साफ कह दिया है कि उसे नागरिक परमाणु ऊर्जा की ़जरूरत तो है, लेकिन वह अपने ऊपर इसके लिए अतिरिक्त शर्तों की बात कुबूल नहीं कर सकता। उसने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि 18 जुलाई, 2005 के समझौते के अनुसार यह अमेरिका की जिम्मेदारी बनती है कि वह समझौते को संबंधित पक्षों की मंजूरी दिलाये। भारत के इस बयान के बाद अमेरिका को यह समझ में आ गया है कि इस समझौते के नाम पर भारत की राजनीतिक प्रतिबद्घताओं को प्रभावित नहीं किया जा सकता। संभवतः अपना पक्ष स्पष्ट करने की दृष्टि से ही भारत स्थित अमेरिकी राजदूत डेविड मलफोर्ड ने एक बयान जारी कर कहा है कि अमेरिका एन.एस.जी. में भारत पर बिना कोई अतिरिक्त शर्त थोपे इस मसविदे को मंजूरी दिलाने की पुरजोर कोशिश करेगा।
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