गोधरा कांड की जॉंच करने वाले नानावटी-शाह आयोग ने जो रिपोर्ट गुजरात सरकार को प्रेषित की है, उसमें साबरमती एक्सप्रेस के कोच एस 6 और 7 में लगी आग को कोई हादसा न मानकर एक साजिशी कार्रवाई स्वीकार किया गया है। रिपोर्ट के अऩुसार आग बाहर से लगाई गई थी और इस घटना को अंजाम देने के लिए इसके एक दिन पूर्व बाकायदा योजना का ़खाका एक बैठक कर तैयार किया गया था। इसके लिए उसी दिन 140 लीटर पेटोल भी खरीद कर जमा कर लिया गया था। ़गौरतलब है कि गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस के जलने अथवा जलाये जाने की यह घटना 27 फरवरी 2002 को घटित हुई थी और इसमें कुल 59 लोग जल मरे थे, जिनमें अधिकांश राम सेवक थे जो अयोध्या से अपने घरों को लौट रहे थे। इस घटना के बाद लगभग पूरे गुजरात में भयंकर दंगा हुआ था जिसमें एक ह़जार से अधिक लोगों के मारे जाने की रिपोर्ट खुद गुजरात सरकार ने केन्द्र सरकार को संप्रेषित की थी। इस दंगे को लेकर गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी, उनके मंत्रिमंडलीय सहयोगियों और उनकी पुलिस तथा प्रशासनिक अमले पर यह आरोप लगाया गया था कि उन्होंने जानबूझ कर अल्पसंख्यक मुसलमानों पर आाामक होने के लिए हिन्दुत्ववादी जमातों को सुविधाजनक अवसर मुहैया कराया था। इतना ही नहीं मोदी पर आरोप यहॉं तक लगाया गया था कि मुसलमानों को कत्ल करने और उनकी बस्तियॉं जलाने में उनकी पुलिस भी पीछे नहीं थी। इन आरोपों के घेरे में गोधरा कांड की पूरी सच्चाई को उजागर करने के लिए ही नानावटी-शाह आयोग का गठन किया गया था, जिसकी रिपोर्ट का पहला भाग सरकार ने सार्वजनिक कर दिया है और यह सिर्फ साबरमती एक्सप्रेस में लगी अथवा लगाई गई आग से ही संदर्भित है।
इसी तरह के एक आयोग की एक रिपोर्ट गोधरा कांड के बाबत पहले आ चुकी है। रेल मंत्रालय की ओर से गठित की गई यू.सी. बनर्जी कमेटी की रिपोर्ट ने नानावटी आयोग के ठीक विपरीत तथ्य प्रस्तुत किये हैं। इस रिपोर्ट ने अपनी पूरी जॉंच-पड़ताल के बाद यह निष्कर्ष प्रस्तुत किया था कि 27 फरवरी, 2002 को साबरमती एक्सप्रेस में लगी आग किसी सा़िजश का परिणाम नहीं थी, अपितु एक आकस्मिक “हादसा’ था। अब नानावटी आयोग ने बनर्जी आयोग की निष्पत्ति से अलग इसे एक सा़िजश करार दिया है। गऱज यह कि एक ही घटना की सच्चाई को दो आयोगों ने दो तरह से अलग-अलग दृष्टिकोण तथा अलग-अलग सच्चाइयों के साथ प्रस्तुत किया है। साथ ही दोनों ही सच्चाइयॉं परस्पर विरोधी भी हैं। देश के आम आदमी के सामने म़जबूरी यह है कि वह किस सच को सच माने? यह तो तय है कि दोनों सच-सच नहीं हो सकते। किसी एक को तो झूठ होना ही पड़ेगा। संभावना इस बात की भी बनती है कि दोनों ही सच प्रायोजित हों और वास्तविक सच कोई तीसरा हो। इस तरह का विरोधाभास अगर राजनीति के धरातल पर उभरता तो इतनी बड़ी विडम्बना सामने नहीं आती। लेकिन दोनों ही आयोगों के जॉंचकर्त्ता सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश हैं, अतएव उनसे तो आम आदमी यह अपेक्षा कर ही सकता है कि वे उसे “राजनीतिक’ सच परोसने की जगह वास्तविकता से रू-ब-रू करायेंेगे।
नानावटी आयोग ने एक और विडम्बना की सृष्टि की है। पूर्व न्यायाधीशों ने जो रिपोर्ट प्रस्तुत की है वह गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस में लगी आग से संदर्भित है। इसे वे सा़िजश बताते हैं और इसे साबित करने के लिए अपनी 168 पृष्ठ की रिपोर्ट में उन्होंने बहुत सारे प्रमाण भी संकलित किये हैं। लेकिन अभी आयोग ने रिपोर्ट का प्रथम भाग दिया है। आगे राम सेवकों के साबरमती एक्सप्रेस में जलने अथवा जलाये जाने के बाद व्यापक रूप से गुजरात में हुए सांप्रदायिक दंगे तथा उस बाबत मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनकी पुलिस तथा मंत्रिमंडलीय सहयोगियों की भूमिका की जॉंच-रिपोर्ट आनी बाकी है। रिपोर्ट इस संबंध में भी आनी बाकी है कि दंगाईयों के खिलाफ पुलिस प्रशासन ने क्या कार्रवाई की और दंगा प्रभावित लोगों की सुरक्षा, सहायता तथा पुर्नवास के लिए राज्य सरकार की ओर से क्या-क्या कदम उठाये गये? हैरत में डालते हुए नानावटी आयोग ने इस रिपोर्ट के आने के पहले ही अपनी इस पहली रिपोर्ट में ही नरेन्द्र मोदी को उनके पूरे अमले के साथ “क्लीन चिट’ थमा दी है। जस्टिस नानावटी और जस्टिस शाह ने यह साबित करने के लिए कि साबरमती एक्सप्रेस में आग लगी नहीं लगाई गई थी, ढेरों सबूत इकट्ठा किये हैं। लेकिन इस विषय में सिर्फ वे इतना कहते हैं कि इनकी दंगों में संलिप्तता के कोई सबूत नहीं पाये गये। जो भी हो, इस रिपोर्ट के सार्वजनिक होने के बाद कोई तथ्य या सत्य स्थापित हुआ हो, ऐसा नहीं है। रिपोर्ट के तथ्यों का विवेचन शुद्घ राजनीतिक आधार पर किया जा रहा है। भाजपा और हिन्दूवादी संगठन जहॉं इस रिपोर्ट को लेकर यह प्रतििाया दे रहे हैं कि आयोग ने “सत्य’ को स्थापित किया है, वहीं कांग्रेस और वामदल रिपोर्ट को पक्षपात और पूर्वाग्रह से प्रेरित बता रहे हैं। गोधरा-कांड का सच आज भी देश के आम आदमी के लिए अबूझा ही है।
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