हॅंसना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है, जिससे शरीर में सकारात्मक रासायनिक परिवर्तन होते हैं। स्वच्छ और निर्मल हॅंसी का स्वास्थ्य पर काफी प्रभाव पड़ता है। एक वयस्क दिनभर में दस बार भी नहीं हॅंसता, जबकि एक मासूम दिन में कम से कम चार सौ दफा मुस्कुराता है, हॅंसता है, खिलखिलाता है। सामाजिक जटिलताएँ इतनी बढ़ गई हैं कि जो हास्य पूरी दुनिया में कदम-कदम पर बिखरा पड़ा है, उसे पाने के लिए “लॉफ्टर क्लब’ का सहारा लेना पड़ रहा है। जरा सोचिए, जो व्यक्ति मन से प्रसन्न नहीं है, फिर भी वह हॅंसेगा तो उस हॅंसी में क्या वही मस्ती होगी, जो वास्तविक प्रसन्नता में होती है? जब वास्तविक हॅंसी आती है तो रोके नहीं रुकती। हॅंसते-हॅंसते इंसान दोहरा हो जाता है, तो “लॉफ्टर क्लब’ की नकली हॅंसी में असली जैसा प्रभाव कहॉं से लाएगा?
स्वाभाविक हॅंसी के फायदे
- स्वास्थ्य लाभ, ब्लड-प्रेशर, हृदय रोग में कमी, मानसिक तनाव में कमी।
- फेफड़ों के लिए सबसे अच्छा व्यायाम।
- रक्त में कॉर्बन डाईऑक्साइड की मात्रा में कमी।
वास्तविक प्रसन्नता से हमारे दिमाग में कुछ ऐसे लाभदायक हार्मोंस उत्पन्न होते हैं, जो हमें चुस्ती-स्फूर्ति से भर देते हैं। ये हार्मोंस हॅंसने की एक्टिंग करने या कृत्रिम हॅंसी हॅंसने से उत्पन्न नहीं हो सकते हैं, क्योंकि वास्तविक हॅंसी में जहॉं मन की प्रसन्नता की भावना रहती है, वहीं नकली हॅंसी में वह भाव आना मुश्किल होता है।
हॅंसी कई प्रकार की होती है-
मुस्कुराहट-ये स्वाभाविक एवं आसानी से आने वाली हॅंसी है। ये कई दफा किसी पुरानी स्मृति में खो जाने पर भी सहज ही देखी जा सकती है।
स्वाभाविक हॅंसी -निश्छल या निर्मल हॅंसी, बच्चों द्वारा हॅंसी जाने वाली स्वाभाविक हॅंसी या गुदगुदी से उत्पन्न होने वाली हॅंसी है।
ठहाके- दिल खोलकर जोर-जोर से हॅंसना, जैसे- शानदार चुटकुला सुनने पर।
इससे नहीं होगा फायदा-
व्यंग्यात्मक हॅंसी- व्यंग्य से हॅंसना, जैसे- किसी की मृत्यु पर कोई रो रहा हो और कोई व्यंग्य से हॅंसते हुए कहे, देखो घड़ियाली आँसू बहा रहा है।
कुटिल हॅंसी- ताने के रूप में या उपहास उड़ाती या व्यंग्य करती हॅंसी।
विद्रूप हॅंसी- यह एक फीकी जबर्दस्ती की हॅंसी होती है।
अट्टहास- जोर-जोर से भद्दे तरीके से हॅंसना, जैसे- राक्षस अट्टहास करते हैं। ये एक प्रकार की अहंकारी हॅंसी होती है। व्यंग्यात्मक, कुटिल या विद्रूप हॅंसी एवं अट्टहास से वास्तविक प्रसन्नता के फायदे नहीं मिलते। कोई लाभ नहीं होता, क्योंकि इससे मन प्रसन्न नहीं होता और जब तक मन प्रसन्न नहीं हो, हॅंसने का अभिनय करने से या कृत्रिम हॅंसी हॅंसने से एन्डोरफिन हार्मोंस उत्पन्न नहीं हो सकते।
– डॉ. राजेश अग्रवाल
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