- काली खांसी के रोगी द्वारा छींकने व खांसने से थूक की अत्यंत बारीक बूंदें हवा में फैल जाती हैं, ये बूंदें जीवाणुओं को फैलाने का काम करती हैं।
- इस रोग का व्यक्ति जब तक ठीक न हो जाये, संक्रामित ही रहता है और दूसरों को भी संक्रामित करता है।
- संक्रामित होने पर स्वस्थ व्यक्ति 15 दिनों के अंदर रोग की गिरफ्त में आ जाता है।
- इस बीमारी के शुरू में सर्दी-जुकाम, खांसी, नाक से पानी आता है, लेकिन बुखार नहीं आता।
- रोग बढ़ने पर खांसी तेज हो जाती है, सोते-जागते दम निकालने वाली खांसी आती है। खांसी में चिकना-चिकना बलगम आता है। कभी-कभी लगता है दम घुट जाएगा, नाक से भी अजीब-सी आवाज निकलती है।
- खांसी में न्यूमोनिया हो सकता है, सांस की तकलीफ बढ़ सकती है, फेफड़े के विकार हो सकते हैं, फेफड़े सिकुड़ सकते हैं और शरीर में ऐंठन होती है, जिससे मौत संभावित है।
रोग के उपचार का तरीका
- डॉक्टर थूक व खून की लेबोरेटरी जॉंच करता है व इसका निर्धारण करता है कि रोग काली खांसी ही है।
- शिशु को इसका टीका समय-समय पर लगवाते रहें, बड़ा होने पर उसमें इसके होने की संभावना क्षीण रहती है। काली खांसी के रोगी के संपर्क में रहते समय नाक-मुंह ढंके होने चाहिए।
- काली खांसी की संभावना होने पर तुरंत डॉक्टर से इलाज कराएं, जरा-सी लापरवाही या देरी रोग को तीव्र कर देगी।
- रोग की तीव्रता में कोई भी एंटी बायोटिक दवा काम नहीं करती। जब रोग की शुरूआत में इलाज किया जाये, तो इस पर काबू पाया जा सकता है।
- जिन्हें दमे की शिकायत हो, उनका इलाज विशेष तरीके से किया जाता है व रोगी को हवादार रूम में रखा जाता है।
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