टीवी पर आजकल रियलिटी शो़ज की भरमार है, इनमें बहुत से कार्यक्रम बच्चों की प्रतिभा को निखारने के नाम पर आयोजित होते हैं। छोटे बच्चों के गायन व डांस के अनेक कार्याम टीवी के विभिन्न चैनलों पर देखने को मिलते हैं। ऐसे कार्यक्रमों में कई राउण्ड होते हैं व कुछ जजों की एक टीम होती है जो कलाकार को अंक देते हैं। ऐसे कार्यक्रमों के विजेता को लाखों रुपये का इनाम भी मिलता है, परन्तु अभी चंद दिनों पहले कोलकाता के एक टीवी रियलिटी शो में इन कार्यक्रमों की हकीकत खुलकर सामने आ गई। जहॉं एक डांस प्रतियोगिता में ग्यारहवीं कक्षा की छात्रा शिनजिनी सेन गुप्ता ने “सात समन्दर पार’ गीत पर नृत्य किया। नृत्य के बाद जजों ने जो तथाकथित “कमेन्ट’ शिनजिनी पर किए उससे उसके मस्तिष्क पर इतना बुरा प्रभाव पड़ा कि उसकी दिमागी हालत खराब हो गई, यहॉं तक कि उसने अपनी आवाज तक खो दी। कहते हैं कि एक जज ने उसके डांस की तुलना “भालू की उछल-कूद’ से कर दी तो दूसरे जज ने उसके परफॉरमेन्स को “वैरी बैड’ कह कर उसका मानसिक संतुलन बिगाड़ दिया। अब छात्रा शिनजिनी एक अस्पताल में उपचाराधीन है। वह अपनी आवाज तथा मानसिक संतुलन खो चुकी है। प्रतिभागी की आयु मात्र 16 वर्ष थी। उपरोक्त घटना को जानने के बाद तो यही लगता है कि आज का बचपन दबाव में है। अब जब इतनी बड़ी घटना को मीडिया प्रकाश में लाया तो कुछ लोगों पर अंगुलियां उठनी भी लाजिमी थीं। अधिकांश लोगों ने अपनी राय देते समय जजों को दोषी ठहराया, जिसे एक हद तक सही भी कहा जा सकता है।
आजकल रियलिटी शो में ऐसे व्यक्तियों को जज जैसा महत्वूपर्ण काम सौंप दिया जाता है जिन पर कई अन्य बड़ी जिम्मेदारियां भी होती हैं। इन जजों को जहॉं कार्याम के विषय का पूरा ज्ञान नहीं होता, वहीं बच्चों की साइकॉलॉजी का भी ज्ञान नहीं होता, क्योंकि कार्याम में भाग लेने वाले बच्चे किशोरावस्था के हों तो बच्चों के मानसिक स्तर का भी ज्ञान होना अति आवश्यक है। किशोर आयु वह अवस्था होती है, जब बच्चा बहुत ही इमोशनल (भावुक) होता है। वह अपनी बुराई नहीं सुन पाता। ऐसी अवस्था में आमतौर पर बच्चे को प्रोत्साहित करके काम लिया जा सकता है, उसे निरुत्साहित करना तो उसे मानसिक रूप से बीमार करना है।
किशोरावस्था (लगभग 12 से 16 साल की आयु) में सहनशक्ति भी बहुत कम होती है। यह आयु किसी प्रतियोगिता में या सार्वजनिक रूप से अपना अपमान नहीं सहन कर पाती। कुछ इसी तरह की गलती रियलिटी शो के जजों ने की। जिन्हें संभव है डांस का थोड़ा-बहुत ज्ञान होगा। उसके डांस को एक जज ने भालू-चिंपाजी के उछल-कूद की संज्ञा दी तथा दूसरे ने “बैड परफारमेंस’ कहकर नकारात्मक दृष्टिकोण का परिचय दिया। अगर यही निर्णायक मण्डल उस समय छात्रा की प्रतिभा के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण रखता तो परिणाम भी सकारात्मक ही होता। जैसे पहले तो प्रतिभागी के परफॉरमेंस की प्रशंसा की जाती है और फिर बड़े प्यार से उसकी कमियों को गिनाया जाता है। किसी प्रतिभागी की कला को सिरे से नकार देना तो कला के नियमों के भी विरुद्घ है। क्योंकि कोई भी व्यक्ति जन्म से महान नहीं होता और कोई भी कलाकार जन्म से कलाकार नहीं हो सकता। डांस, गायन, पेन्ंिटग आदि कलाएं तो निरन्तर प्रयास से आती हैं। फिर यह जानते हुए भी किसी के परिश्रम को नकार देना जज के लिए शोभनीय नहीं है। अतः कार्याम के निर्णायक मण्डल इस संदर्भ में दोषी हैं, परन्तु आज की स्थिति के हिसाब से माता-पिता को भी दोषमुक्त नहीं किया जा सकता है।
यह तो अकेले शिनजिनी का मामला है। हम देखते हैं कि आज अभिभावक अपने बच्चों से कहेंगे कि बेटा तेरा परीक्षा परिणाम 80 प्रतिशत या 90 प्रतिशत क्यों नहीं आया? हमने इतना पैसा खर्च किया फिर भी तूने टॉप नहीं किया। अब उन्हें कौन समझाए कि 70 प्रतिशत अंक कोई कम थोड़े ही होते हैं। इसी प्रकार दौड़ में बेटा दूसरे स्थान पर आया तो उसका हौसला ब़ढ़ाने की बजाय यही कहेंगे तू पहले स्थान पर क्यों नहीं आया। अब यह बात तो समझनी ही होगी कि किसी न किसी को पहले, दूसरे, तीसरे स्थान पर आना ही है। सारे प्रतिभागी प्रथम आने से रहे। सबसे आगे निकलने की सोच हमें बदलनी होगी। हमारी इस सोच से बच्चों का बचपन दबकर रह जाएगा। इसलिए उसे निरुत्साहित करने की बजाय प्रोत्साहित करके काम लें। नहीं तो वे भी मानसिक रूप से कमजोर हो जाएंगे।
जहॉं तक टीवी पर रियलिटी शो चलने का सवाल है तो यह बताना लाजिमी हो जाता है कि हमारी नजर प्रतिभा दिखाने पर कम तथा कार्याम की इनामी मोटी रकम पर ज्यादा होती है क्योंकि कार्याम में भाग लेना और कम समय में लाखों रुपये जीतना ऐसे कार्यामों का उद्देश्य होता है। अभिभावक ह़जारों रुपए खर्च करके अपने बच्चों को ऐसे रियलिटी शो में भेजते हैं, इसलिए कार्याम में अपेक्षाएं बहुत ज्यादा बढ़ जाती हैं। प्रतिभागी हारना नहीं चाहता व माता-पिता भी बच्चों पर जीत का दबाव डालते हैं। ये दबाव कई बार आंसुओं के रूप में साफ झलक जाते हैं। अतः शिनजिनी के साथ जो घटित हुआ ऐसी अनेक घटनाएं होती हैं। इन प्रतियोगिताओं में हार से उत्पन्न निराशा के लिए जहॉं जज दोषी हैं, वहीं माता-पिता भी कम दोषी नहीं हैं, जो बच्चों पर अत्यधिक अपेक्षाओं का दबाव बनाते हैं। ऐसी घटनाओं के लिए हमारी सोच भी जिम्मेदार है, जो शार्टकट में अधिक धन इकट्ठा करने की भावना रखती है। हमें अपनी सोच को बदलना होगा। कला, कला के लिए होती है न कि किसी इनाम के लिए। शिनजिनी की घटना को उदाहरण के रूप में रखतेे हुए अभिभावकों को अपनेे बच्चों को रियलिटी शो में भेजने से पहले कई बार सोचना होगा, ताकि फिर किसी शिनजिनी सेन गुप्ता की कहानी दोहराई न जा सके।
– महेन्द्र बोस “पंकज’
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