एक प्रसिद्घ लोकोक्ति है – आषाढ़ का चूका किसान और डाल का चूका बंदर कहीं का नहीं रहता। हमारे महापुरुष सदा से चेतावनी देते आ रहे हैं कि काल करै, सो आज कर। समय की बर्बादी सबसे बड़ी बर्बादी है। एक विद्वान थॉमस मोये का मत है- समय एक प्रकार का अमूल्य धन है। नष्ट किया हुआ धन पुनः प्राप्त किया जा सकता है, पर नष्ट किया हुआ समय प्राप्त नहीं हो सकता।
सर वाल्टर रेले से एक आदमी ने प्रश्र्न्न किया, “”आप इतने कम समय में इतना अधिक काम कैसे कर लेते हैं?” उन्होंने कहा, “”मुझे जो काम करना होता है, उसे मैं उसी वक्त समाप्त कर देता हूं।” अमेरिका में एक धुरंधर विद्वान हो चुके हैं वेब्सटर। वे प्रातःकाल नाश्ते से पूर्व 20-30 प्रश्र्न्नों का उत्तर लिख डालते थे। इसी प्रकार दार्शनिक इमरसन से पूछा गया, “”आपकी आयु क्या है?” उन्होंने उत्तर दिया “”360 वर्ष।” प्रश्र्न्नकर्ता चौंका। वह बोला, “”आप तो 60 वर्ष के हैं, फिर यह गलत संख्या क्यों बतला रहे हैं?” इमरसन ने हंसते हुए उत्तर दिया, “”श्रीमान्, आप सही कह रहे हैं कि मेरी आयु 60 वर्ष की है। पर, मैंने अपने कार्यों में समय के एक-एक क्षण का जिस प्रकार उपयोग किया है, उतने कार्यों में एक सामान्य आदमी 360 वर्ष लगा देता है।”
वास्तव में हमने “मूड’ नामक एक व्यवस्था गढ़ ली है। कोई भी काम हो, कह देते हैं- यार अभी मूड नहीं है, कल कर लेंगे। और फिर इस हमारी सुस्ती का परिणाम यह होता है कि मूड कभी होता ही नहीं। कहते हैं कि रावण सोचने में ही मर गया और स्वर्ग तक सीढ़ियां नहीं बनवा पाया। क्षमताएं सबके पास होती हैं, पर कल के भरोसे हम आज को खो देते हैं। आज नकद कल उधार के चक्कर में हम आने वाले कल को पकड़ना चाहते हैं, पर तब तक वह हो चुका होता है। विद्यार्थी हो या भक्त, समाजसेवी हो या वैज्ञानिक, साहित्यकार हो या जिज्ञासु, कल के भरोसे यदि जीवन बर्बाद करते रहें तो वे कोई भी उपलब्धि प्राप्त नहीं कर सकते। मूड, मुहूर्त व अच्छे ग्रहों की प्रतीक्षा में हम अनेक ऐसे अवसर खो बैठते हैं, जो वापिस कभी नहीं आते।
एक प्रतिष्ठित कम्पनी के बड़े अधिकारी काम के बोझ से दबे रहते थे। उन्हें फुर्सत ही नहीं मिलती थी। “”मरने तक की फुर्सत नहीं।” ऐसा जुमला आपने कई बार सुना होगा। उनकी टेबल फाइलों से भरी रहती थी। एक दिन वे एक अन्य कम्पनी के प्रमुख अधिकारी से मिलने गये। वे देखकर हैरान रह गये कि उनकी टेबल एकदम साफ थी। एक भी फाइल नहीं थी। आखिर उन्होंने पूछ लिया, “”आपकी टेबल पर एक भी फाइल नहीं है। क्या बात है! मुझे आश्र्चर्य है।”
वे बोले, “”भाई, मैं कोई फाइल पेंडिंग नहीं रहने देता। रोज का काम रोज निपटा कर ही घर जाता हूं। यह मेरा दैनिक कार्याम रहता है।”
पहले अधिकारी ने फिर पूछा, “”आपको पत्र के उत्तर भी देने होते हैं, ऐसे पत्र आप कहां रखते हैं?”
वे बोले, “”ऐसा कोई पत्र बाकी नहीं रखता हूं। मैं तुरंत पी.ए. को बुलाकर उत्तर लिखवा देता हूं।”
वास्तव में पहले अधिकारी ने समय प्रबंधन की शिक्षा वहां प्राप्त की। काम सबके पास होता है। समय भी होता है। पर, प्रबंधन सही नहीं होने से एक काम से दबा रहता है, दूसरा निपटा कर मस्त रहता है।
महान गुरुओं ने कहा है कि किसी के इंतजार में समय बर्बाद नहीं करना चाहिए। समय ही सोना है, इसे खोकर तो रोना ही रोना है। अध्यात्म मार्ग में ऐसी कथाएँ हैं, जो यह प्रेरणा देती हैं कि कल के भरोसे मत बैठे रहो। अभी से ही प्रभु-भक्ति करना प्रारंभ कर दो, जो भी करना है, तत्काल करो। कल का क्या, आये न आये। प्रभु नाम जो भी लेना है, आज ही लेना है।
कबीरदास जी ने कहा है –
हम न मरै मरि है संसारा।
हमको मिला जीवावन हारा।
निरंतर राम-रस का पान करने वाले भक्त को मृत्यु का भी भय नहीं होता। आप यदि इसलिए नदी के किनारे बैठे रहे कि कब नदी का पानी समाप्त हो और हम पार जायें तो जीवन यों ही प्रतीक्षा में निकल जाएगा। अतः पानी में कूद कर ही उसे पार किया जा सकेगा। यदि कल फिर पानी में बाढ़ आ जाए तो हम अपने लक्ष्य की प्राप्ति के उद्देश्य से ही वंचित रह जाएँ।
समय बड़ा अनमोल है। हमें किसी भी क्षेत्र में सफलता प्राप्ति के लिए इसके महत्व को समझना होगा। सेना जब हमले का कार्यक्रम बनाती है तो एक-एक मिनट का महत्व होता है। थोड़ा चूकते ही शत्रु आपकी योजना पर पानी फेर देता है।
– डॉ. विनोद सोमानी “हॅंस’
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