कलाकार : सारिका, जैकी श्रॉफ, लिलेट दुबे, ़जैन खान, स्विनी खरा, जाकिर खान , सौरभ शुक्ला, विजय राज
संगीतः आदेश श्रीवास्तव-गुरू शर्मा
निर्देशकः लकी कोहली-राजेश बजाज
बच्चों को लेकर फिल्म बनाना आसान है, परंतु उनके लिये बनाना हर किसी के बस की बात नहीं है। एडलैब्स के निर्देशक लकी कोहली एवं राजेश बजाज के तो बिल्कुल नहीं। “हरि पुत्तर’ से यह स्पष्ट होता है कि एडलैब्स को इतना भी ख्याल नहीं रहा कि ऐसी फिल्मों में आयटम सॉंग नहीं रहना चाहिए। शमिता का “हरि पुत्तर’ वाला भद्दा आयटम डान्स तो है ही, पर शीर्षक-गीत में गायक शान के साथ अर्धवस्त्र पहनी विदेशी बालाओं एवं उसी तरह की पोशाक में बच्चों को बताया गया है।
भारतीय हरि पुत्तर अपने पिता जाकिर खान एवं माता सारिका के साथ लंदन में रहता है। सारिका की बहन लिलेट दुबे अपने पति जैकी श्रॉफ और बच्चों के साथ उससे मिलने के लिए लंदन जाती है। वहां घर भर में बच्चों की उधम मचने लगती है। भारतीय घर में पलने के बावजूद भी हरि पुत्तर को रिश्तेदारों के साथ मिलकर रहने, एक-दूसरे के साथ सामंजस्य बैठाने की आदत नहीं है और फिल्म में इस बात की ओर संकेत भी नहीं किया गया है।
इस बीच इन लोगों का लंदन घूमने का कार्याम बनता है। घर से निकलने की जल्दी में सारिका का बेटा हरि पुत्तर और लिलेट की बेटी टुक-टुक घर पर ही छूट जाते हैं। सारे घर में दोनों बच्चे अपने आप को अकेला पाते हैं और हिम्मत करके दोनों साथ रहते हैं। विदेशी बच्चों की तरह टुक-टुक टी.वी., विडियो आदि नहीं देखती है। वह तो भारतीय खेल खेलना पसंद करती है। वह अपनी साड़ी पहन कर हरि पुत्तर को खाना परोसती है।
कहानी में मोड़ आता है। हरि पुत्तर के पिता के पास महत्वपूर्ण जानकारी से भरी एक चिप है, जिसे खलनायक मिरची हासिल करना चाहता है। सौरभ गांगुली तथा विजय राज इन दो मसखरों को वह चिप चुराने के लिए भेजता है। टुक-टुक का वे लोग अपहरण कर लेते हैं और हरि पुत्तर फिल्मी हीरो की जानी-पहचानी स्टाईल में उन्हें पुलिस के हवाले कर देता है। टुक-टुक के प्रति दर्शकों की सहानुभूति खींचने के लिये उसे सांस की तकलीफ का सामना करते हुए बताया गया है।
हरि पुत्तर के घर पर छूट जाने के कारण चिंतित सारिका लौटने लगती है तो उसे रास्ते में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इस घटना से भले ही कहानी को अलग पहलू मिलता है, पर निर्देशक ने टुक-टुक की मॉं को भूला ही दिया।
कॉर्पोरेट एडलैब्स द्वारा बनी फिल्म में अचानक कार्टून विज्ञापनों के आने से चतुर दर्शकों के सामने उनका भांडा फूट जाता है। यदि यह कम लगता हो तो हरि पुत्तर के पिता के अमूल नाम की ओर गौर करें। एक और मजेदार बात फिल्म के बीच में यकायक 10 वर्ष का हरि पुत्तर किशोर बन जाता है, उसे भी इस जादू का आश्र्चर्य होता है। परंतु दर्शकों को फिल्म लम्बी होने के कारण कुछ बोरियत का सामना करना पड़ता है।
़जैन खान एवं स्विनी खरा के कारण फिल्म की दिलचस्पी बरकरार रहती है। लिलेट कुछ ज्यादा ही अभिनय कर जाती है, मगर सारिका ने संयम अच्छा पाला है। सौरभ शुक्ल तथा विजय रा़ज डरावने खलनायक बिल्कुल नहीं लगते। बावले लगते हैं। इस फिल्म से बच्चों को गलत संदेश मिलने की उम्मीद है इसलिये उन्हें इससे दूर रखने की कोशिश करें तो अच्छा होगा।
– अनिल एकबोटे
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