वह कॉलेज से आते ही बिस्तर पर जा लेटा। उसका सारा शरीर बुखार से तप रहा था। वह सहरसा से पटना आया था। उसे पटना के इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला मिल गया था। उसने कॉलेज के समीप ही एक पुराने मकान में एक कमरा किराये पर लिया था। बाकी के तीन-चार कमरे खाली ही थे। मकान-मालिक कुछ दूर बने अपने नये मकान में रहता था। उसका यह मकान खाली ही रहता था। इसी कारण इस युवक को बिना किसी अतिरिक्त परेशानी के ही इस मकान में एक कमरा किराये पर मिल गया था। इस युवक का नाम प्रकाश था।
बुखार प्रतिक्षण बढ़ता ही जा रहा था। वह उठा और खिड़की तक जा पहुंचा। खिड़की से गर्म हवा अन्दर आ रही थी। उसने खिड़की बन्द कर दी और घड़े से निकाल कर पानी पिया। वह वापस बिस्तर पर आ लेटा। कुछ ही देर में उसे नींद आ गयी।
जब उसकी नींद टूटी तो चारों ओर अंधेरा था। उसने उठकर लाइट जला दी। शाम के सात बज रहे थे। बुखार भी कम हो गया था। उसने स्टोव जलाकर दूध गर्म किया और दूध के साथ ब्रेड खाने लगा। अचानक उसके कानों में पायल की आवाज सुनायी दी। वह चौंक पड़ा। उसे लगा, जैसे कोई उसके कमरे के बाहर आकर रुक गयी है।
तभी उसके दरवाजे पर खटखटाने की आवाज सुनाई दी। उसने सोचा, शायद मकान-मालकिन आयी हो। आज पहला ही दिन है, इसलिए सुविधा-असुविधा के बारे में या और कोई हिदायत देने आयी होगी। वह उठा। उसने दरवाजा खोल दिया।
दरवाजे के बाहर लगभग अठारह वर्ष की एक रूपवती लड़की खड़ी थी। प्रकाश ने पूछा, “”जी, कहिए! किससे मिलना है?”
लड़की ने मुस्कुरा कर प्रकाश की ओर देखा और कमरे के अन्दर बढ़ती हुई बोली,””आप ही से मिलने आई हूं।” वह आगे बढ़कर प्रकाश के बेड पर जा बैठी। प्रकाश भी बदहवास-सा उसके पीछे-पीछे वहां पहुंचा। उसने कहा,””मैं तो आपको नहीं पहचानता? इस शहर में पहली बार आया हूं। यहां मेरे जान- पहचान वाले भी कोई नहीं हैं?”
लड़की ने प्रकाश की बात बीच में ही काटते हुए कहा, “”आप इंजीनियरिंग के छात्र हैं और सहरसा से आये हैं। आप कुछ देर पहले बुखार से पी़डित थे। क्या यह सही है न?”
प्रकाश को लड़की की बात सुनकर आश्र्चर्य हुआ। उसके विषय में यह लड़की सब कुछ जानती है। फिर बुखार की बात तो उसने किसी को नहीं बताई थी, यह कैसे जानती है? प्रकाश को सोचते देख वह लड़की बोल उठी, “”किस सोच में डूब गए आप तो? मैं पड़ोस में ही रहती हूं। मेरा नाम दीपशिखा है। आपके विषय में अंकल जी (मकान-मालिक) ने ही बताया था। जब आप कॉलेज से लौट रहे थे, तो डगमगा रहे थे। इसी से मैंने अनुमान लगाया कि आपको बुखार है। अभी फुर्सत मिली तो देखने चली आयी।”
प्रकाश को कुछ तसल्ली हुई। उसने कहा, “”मैं आपके लिए चाय बनाकर लाता हूँ।”
लड़की ने प्रकाश को रोकते हुए कहा, “”आज मैं ही आपको खाना बनाकर खिलाऊंगी और चाय भी पिलाऊंगी। आज आप मेरे मेहमान हैं। अब आपका बुखार भी उतर चुका है।” वह स्टोव जलाने चली गई।
प्रकाश और दीपशिखा कुछ ही देर में अच्छे मित्र बन गये थे। दोनों ने साथ-साथ खाना खाया। बहुत देर तक बातें होती रहीं। लगभग ग्यारह बजे दीपशिखा अपने घर चली गयी। जाते-जाते उसने कल फिर मिलने का वादा किया।
प्रकाश की तबीयत अब बिल्कुल ठीक लग रही थी। दीपशिखा ने बहुत अच्छा खाना बनाया था। वह बिस्तर पर जाकर सो गया। सुबह उठकर उसने नाश्ता तैयार किया और नाश्ता करके कॉलेज चला गया। कॉलेज से लौटकर वह मकान-मालिक के आवास पर पहुंच गया। मकान-मालिक उसे देखकर चौंके, किन्तु फिर संयत हो गए। उन्होंने प्रकाश से बातचीत करनी शुरू कर दी।
प्रकाश ने उन्हें रात की सारी घटना बताते हुए कहा, “”दीपशिखा बहुत ही सुशील लड़की है, अंकल जी। बिना जान-पहचान के ही वह मेरे पास आयी और मेरी सहायता की।”
मकान-मालिक ने कहा, “”बेटा, तुम पढ़ाई पर ध्यान दो। लड़कियों के चक्कर में पड़ना ठीक नहीं है।”
कुछ दिनों तक प्रत्येक रात दीपशिखा वहां आती रही और खाना पका कर प्रकाश को खिलाती रही। इन दोनों में अच्छी मित्रता हो गयी थी। एक दिन प्रकाश दीपशिखा से मिलने उसके घर जा पहुंचा। उस घर से पता चला कि इस नाम की लड़की इस घर में तो क्या पूरे मुहल्ले में नहीं है।
प्रकाश ने सोचा, आज रात में आएगी तो उसी के साथ उसके घर जाऊंगा, किन्तु उस रात से वह आयी ही नहीं। आखिर वह कौन थी?
– परमानन्द परम
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