संसार में पुरुषों का खतना होना तो आम बात है और फिर मुसलमानों में तो यह आवश्यक भी है, इसीलिये उनके यहां 10 साल की आयु में खतना करा दिया जाता है। 10 साल तक इसलिये कि दस वर्ष बाद बच्चा युवक होने लगता है और उसमें सेक्स की भावना जाग्रत होने लगती है। अब तो बहुत से लोग जहां बच्चा पैदा होता है, वहीं करा देते हैं। डॉक्टरों के अनुसार उस समय बच्चे के गुप्तांग का चमड़ा काफी मुलायम होता है, जिससे उसका खतना बड़ी आसानी से हो जाता है। कुछ सेक्स डॉक्टरों के परामर्श पर अब बहुत से गैर-मुस्लिम लोग भी खतना कराने लगे हैं।
लेकिन विश्र्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार संसार के कुछ देशों में युवतियों के भी खतने किये जाते हैं, जो बड़े कष्टदायक होते हैं। युवतियों के खतने मिस्र देश में 10 से 19 वर्ष की आयु में किये जाते हैं। वहां पहले यह खतना 94 प्रतिशत युवतियां कराती थीं, जबकि आज शिक्षा-व्यवस्था के कारण इसका अनुपात 84 प्रतिशत रह गया है। हर वर्ष लाखों युवतियों को खतने की खातिर घोर कष्ट झेलना पड़ता है। कुछ लोगों का मानना है कि आज के युग में इस प्रकार की प्रथा एक बेजा प्रथा है। धीरे-धीरे यह प्रथा पहले के मुकाबले कुछ कम भी हुई है।
युवतियों का खतना कराने वाले माता-पिता और उनके अभिभावकों का कहना है कि युवतियों का खतना इसलिये कराया जाता है कि इससे उनकी काम-वासना की इच्छा काफी कम हो जाती है और उन्हें दुराचारी होने से बचाया जा सकता है। खतना हो जाने से उनकी यौन-इच्छाएं कम हो जाती हैं। वह पथभ्रष्ट भी नहीं होतीं। अब तक अफ्रीकी देशों में करोड़ों युवतियां इस प्रथा के कारण अपना खतना करा चुकी हैं। इस पीड़ादायक प्रथा में कितनों की जान भी जा चुकी है। विश्र्व स्वास्थ्य संगठन की एक ताजा रिपोर्ट के अनुसार आज भी इन देशों में रोजाना लगभग 7000 युवतियों का खतना किया जाता है। सोमालिया, मिस्र और इथोपिया में अब तक 90 प्रतिशत युवतियों का खतना किया जा चुका है। यद्यपि मिस्र सहित तमाम अफ्रीकी देशों में इस पर प्रतिबंध लगा दिया गया है, फिर भी युवतियों के खतने हो रहे हैं?
जहां तक महिलाओं में सेक्स की चाह की बात है तो यह उनमें कुदरती है। इसे रोकने या न रोकने का अधिकार पुरुषों को नहीं है। सारी यातनाएं केवल युवतियों को ही क्यों दी जातीं है? किसी समय में संसार के कुछ देशों में जवान होती युवतियों को कपड़े के भीतर इतने तंग अंतःवस्त्र पहनाए जाते थे कि जिससे उनके वक्ष का पता ही न चले और वह जल्दी जवान न दिखाई दें। इस पीड़ादायक चोली के कारण तरह-तरह की बीमारियां हो जाती थीं। कितनों का दम घुट जाता था।
इसी प्रकार कुछ देशों में युवतियों को जवान होने पर लोहे से बने अंतःवस्त्र पहनाए जाते थे और उसमें ताला बन्द कर उसकी चाभी उनके माता-पिता या पति अपने पास रखते थे। इससे उन्हें गहन पीड़ा होती थी और तरह-तरह की बीमारियां हो जाती थीं। धीरे-धीरे यह परम्परा टूटी। संसार में युवतियों के लिये अनेक परम्पराएं हैं, जो उनके लिये किसी भी प्रकार से व्यावहारिक नहीं हैं। धीरे-धीरे इन रूढ़िवादी परम्पराओं को तोड़ने की जरूरत है। सारे नियम-कायदे केवल महिलाओं के लिये हैं पुरुषों के लिये नहीं, आखिर क्यों?
– काजिम रिजवी
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