वाटरमैन माइकल फेल्प्स। बीजिंग ओलंपिक 2008 में चमत्कारिक ढंग से 8 स्वर्ण-पदक जीतने वाले 23 वर्षीय इस अमेरिकी तैराक का यही नाम हो सकता है, जिसने अब तक के ओलंपिक इतिहास में व्यक्तिगत रूप से किसी खिलाड़ी के साथ जितनी भी महानताएं जुड़ी थीं, उन सबको हथिया कर अपने नाम कर लिया है।
हालांकि फेल्प्स को दुनिया भर की मीडिया, उसके प्रशंसकों, उसके देशवासियों और पूरी दुनिया के लोगों ने हजारों-हजार नाम दिये हैं, फिर भी कोई ऐसा नाम नहीं है जिसमें माइकल फेल्प्स की समूची प्रतिभा का बयान हो सके। फेल्प्स अपने आप में एक कहानी हैं। एक अजूबा हैं। एक चमत्कार हैं। उनके इस चमत्कार का सम्मोहक अभियान बीजिंग ओलंपिक शुरू होने के पहले से ही शुरू हो गया था। जब वह बीजिंग के खेलगांव में पहुंचे तो उसके पहले से ही चीन से लेकर चंडीगढ़ तक चर्चित थे और सुर्खियों में थे। हर तरफ एक ही अनुमान व्यक्त किया जा रहा था कि माइकल फेल्प्स क्या अब तक के सर्वाधिक स्वर्ण-पदक जीतने वाले खिलाड़ी का गौरव हासिल करके ओलंपिक इतिहास में दर्ज सर्वकालिक महान खिलाड़ियों को पीछे छोड़ेंगे और इन आशंकापूर्ण सवालों के ज्यादातर जवाब खुद ही दिये जा रहे थे, वह भी हां में। माइकल फेल्प्स ने 2004 के एथेंस ओलंपिक में 6 स्वर्ण-पदक जीते थे। दुनिया में सर्वाधिक स्वर्ण-पदक जीतने वाले खिलाड़ियों से आगे निकलने के लिए इन्हें महज 4 स्वर्ण-पदकों की और जरूरत थी। क्योंकि अब तक के ओलंपिक इतिहास में सिर्फ अमेरिका के एथलीट कार्ल लुईस, अमेरिका के ही तैराक मार्क स्पिट्ज, फिनलैंड के एथलीट पावो नूरमी और पूर्व सोवियत संघ के यूोन की लैरिसा लैटीनिना ने ही यह कारनामा किया था। अगर माइकल फेल्प्स को इनके आगे जाना था, तो उन्हें अपने बीजिंग के सफर में 4 गोल्ड मेडल और हासिल करने थे, क्योंकि एथेंस में उन्होंने पहले ही 6 गोल्ड मेडल हासिल कर लिए थे।
2004 के एथेंस ओलंपिक में तब 19 साल के फेल्प्स ने 100 मीटर बटरफ्लाई, 200 मीटर बटरफ्लाई, 200 मीटर व्यक्तिगत मेडले रिले, 400 मीटर व्यक्तिगत मेडले, 4 गुणा 100 मीटर मेडले रिले और 4 गुणा 200 मीटर फ्रीस्टाइल रिले स्पर्धाओं में सोने के तमगे जीते थे, तब वह अपने ही देश के महान तैराक मार्क स्पिट्ज से महज 1 स्वर्ण-पदक से एक ही ओलंपिक में सर्वाधिक 7 स्वर्ण-पदक जीतने के रिकॉर्ड की बराबरी से पीछे रह गये थे। इस बार जब वह बीजिंग पहुंचे तो चारों ओर सिर्फ और सिर्फ उन्हीं का जलवा था। हर किसी को यह उम्मीद थी कि अब तक वह जितने साल के हैं, उससे ज्यादा के तैराकी के विश्र्व रिकार्ड तोड़ चुके फेल्प्स सर्वाधिक स्वर्ण-पदक जीतने के महान ओलंपिक महानायकों की बराबरी कर लेंगे। लेकिन किसी को यह अंदाजा नहीं था कि फेल्प्स न सिर्फ यह बराबरी करेंगे अपितु वह कामयाबी के उस शिखर तक पहुंच जाएंगे, जहां भविष्य में शायद ही कोई दूसरा खिलाड़ी पहुंच सके। फेल्प्स ने बीजिंग ओलंपिक में लगभग अजूबा कर दिखाते हुए 8 गोल्ड मेडल जीतकर तहलका मचा दिया। उन्होंने न सिर्फ 1972 के ओलंपिक में 7 स्वर्ण-पदक जीतने वाले मार्क स्पिट्ज का रिकार्ड तोड़ दिया, अपितु ओलंपिक इतिहास के अब तक के सभी महानायकों को बहुत पीछे छोड़ दिया।
अभी तक ओलंपिक में किसी भी खिलाड़ी द्वारा सर्वाधिक 9 स्वर्ण-पदक जीते गये थे, लेकिन फेल्प्स अब तक 14 स्वर्ण-पदक और 2 कांस्य-पदक जीत चुके हैं। अभी उनकी उम्र सिर्फ 23 साल है। जब वह अगले ओलंपिक में तरुणताल में डुबकी लगायेंगे, तब महज 27 साल के होंगे और तैराकों का इतिहास बताता है कि वह 32-34 साल की उम्र तक आसानी से तैर सकते हैं। उस उम्र तक पहुंचते-पहुंचते फेल्प्स कहां होंगे, इसकी बस चमत्कारिक कल्पना ही की जा सकती है। ऐसा बहुत कम होता है कि किसी खिलाड़ी से जितनी उम्मीदें लगायी जाएं, वह उन उम्मीदों से भी कई गुना बेहतर साबित हो। जैसा कि फेल्प्स साबित हुए। लोगों को उनकी महानता पर कतई शक नहीं था, जिस तरह वह रिकॉर्ड-दर-रिकॉर्ड बना रहे थे, उससे भी सबको यह लग रहा था कि वह आसानी से ओलंपिक में सबसे ज्यादा पदक हासिल करने का रिकॉर्ड बना लेंगे। लेकिन कोई यह नहीं जानता था कि 30 जून, 1985 को अमेरिका के बाल्टीमोर, मैरीलैंड में जन्मी माइकल फेल्प्स एक ऐसा कारनामा कर गुजरेंगे, जिसकी कल्पना करने तक में भी सांसें थम जाएं।
10 अगस्त को इस सुपर तैराक ने जब अपने इस स्वर्णिम सफर का आगाज किया, तब तरुणताल पहुंचने तक वह कान में हेडफोन लगाये पसंदीदा संगीत सुन रहे थे। लेकिन जब वह नीले पानी वाले ताल में उतरे तो उनसे कोई दूसरा ताल मिलाने की जुर्रत नहीं कर सका। वह सोना लेकर ही बाहर आये और जैसी कल्पना थी, उन्होंने उसी कल्पना के अनुरूप अपना स्वर्णिम सफर शुरू किया। फिर तो पूरी दुनिया मानो थम-सी गयी और प्रतिस्पर्धा दर प्रतिस्पर्धा माइकल फेल्प्स ने दुनिया भर के खेलप्रेमियों, तैराकों और खेल-वैज्ञानिकों को सम्मोहित अवस्था में स्तब्ध करते हुए, एक के बाद एक 8 स्वर्ण-पदक जीत लिए। पहले 4 गुणा100 मीटर मेडले रिले का, दूसरा 200 मीटर व्यक्तिगत मेडले रिले का, तीसरा 200 मीटर बटरफ्लाई, चौथा 4 गुणा 100 मीटर फ्रीस्टाइल रिले, पांचवां 4 गुणा 200 मीटर फ्रीस्टाइल रिले, छठवां 200 मीटर फ्रीस्टाइल, सातवां 400 मीटर व्यक्तिगत रिले और आठवां 4 गुणा 100 मीटर मेडले रिले का स्वर्ण-पदक जीता।
जब वह अपने स्तब्ध कर देने वाले आठवें सोने के तमगे के लिए तरुणताल में कूदे तो उनके गृहनगर टॉसन में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लोगों ने सांसें थामकर इतिहास के इस पल के गवाह बनने के लिए टी.वी. के सामने अपनी नजरें गड़ा दीं। पूरी दुनिया में खेल-प्रेमियों के लिए मानो वो पल ठहर गये, जब 4 गुणा 100 मीटर मेडले रिले की अपनी अंतिम स्पर्धा के लिए फेल्प्स ने पानी में छलांग लगायी। हर कोई इस इतिहास रचते अजूबे युवक का न भूतो न भविष्यति कारनामा देखना चाहता था। एक अमेरिकी टी.वी. चैनल के मुताबिक अमेरिकी इतिहास में बहुत कम ऐसे मौके आये हैं, जब किसी दर्ज हो रही उपलब्धि को इतने ज्यादा लोगों ने उत्सुक नजरों और बेकाबू होती धड़कनों के साथ देखा हो। सचमुच इतिहास हमेशा नहीं बनता। फेल्प्स खेलों के इतिहास के ऐसे स्वर्णिम नायक के रूप में उभरे हैं जैसा नायक शायद ही कभी फिर से देखने को मिले। उनके आठवें स्वर्ण के जीतते ही अमेरिका में जश्न का माहौल छा गया और पूरी दुनिया के खेल-प्रेमियों के जुबान पर बस एक ही शब्द रच-बस गया “फेल्प्स फेल्प्स फेल्प्स’।
सबसे बड़ी बात यह है कि बीजिंग में जीते गये 8 ओलंपिक स्वर्ण-पदकों में से फेल्प्स ने 7 स्वर्ण-पदक विश्र्व रिकार्ड कायम करके जीते और वह अब तक के अपने जीवनकाल में 26 विश्र्व रिकॉर्ड कायम कर चुके हैं, जो कि उनकी अब तक की कुल उम्र सालों से तीन गुणा ज्यादा हैं। किसी ने बिल्कुल सही कहा है कि इतिहास के महानायकों की व्यक्तिगत जिंदगी भी किसी उपन्यास के आख्यान सरीखी होती है। जब फेल्प्स बच्चे थे, तो अटेंशन डिसॉर्डर के शिकार थे और उनके प्रारंभिक अध्यापकों का कहना था कि वह जीवन में कभी भी किसी लक्ष्य पर ध्यान केन्द्रित नहीं कर सकेंगे। लेकिन लगता है जैसे फेल्प्स उन तमाम बातों को झुठलाने के लिए ही बड़े हुए। उन्होंने खेलों की दुनिया में वह सनसनी रची है, जो शायद ही कभी दोबारा रची जा सके। सचमुच माइकल फेल्प्स ने पानी की साम्राज्ञी शार्क को भी मात दे दिया है। अगर वह लड़की होते तो उन्हें जरूर जलपरी कहा जाता, पर वह किसी जलदेवता से कम नहीं हैं।
– साशा
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