आजकल बाजार में पैर रखना खुद को ठगने के लिए प्रस्तुत करने से कम नहीं है। रोजमर्रा की जिन्दगी में पत्र-पत्रिकाओं में, दूरदर्शन पर “जागो ग्राहक जागो’ के विज्ञापन तो बहुत आते हैं परंतु जो उपभोक्ताओं के अधिकारों की रक्षा करते हैं, यानी उपभोक्ता मंत्रालय कितने सचेत हैं, कितने जागरूक हैं कि विोता के ठगे जाने के तौर-तरीकों पर लगाम लगा सकें?
उदाहरणतः अगर आप मामूली से मामूली चीज बाजार से खरीदें और उसके पैकेट पर अंकित उन चीजों का वजन देखें तो आप स्वयं ही समझ जाएंगे कि बड़ी-बड़ी कम्पनियां आपको कैसे खुलेआम उल्लू बना रही हैं। अगर मैं यहां पूरी सूची लिखने बैठूं तो शायद मुझे पत्र नहीं पूरा चिट्ठा लिखना पड़ेगा। अतः पाठकों की नजर कुछ मामूली चीजों पर ही दौड़ाना चाहूंगा – अमृतांजन (9 ग्राम), गुड डे बिस्कुट (90 ग्राम), 50-50 बिस्कुट (123 ग्राम) शैम्पू (90 एमएल), मेरी गोल्ड बिस्कुट (176 ग्राम) आदि ऐसी कई चीजें हैं। ऐसे-ऐसे वजन लगाकर विोता क्या सिद्घ करना चाहते हैं, पता नहीं? क्या उपभोक्ता मंत्रालय सो रहा है? तो फिर हम ग्राहकों को जागने का न्योता क्यों दे रहा है?
खुलेआम उपभोक्ता मापदण्डों का उल्लंघन कर रहे विोताओं पर लगाम लगाना जितना जरूरी है उतना ही लोगों को ठगे जाने से बचाना भी। बढ़ती महंगाई व ऊपर से ऐसी ठगी आम जनता के पेट पर लात मारने से कम नहीं है। मंत्रालय स्वयं जागे, दूसरों को जगाकर खुद सोना बंद करे व ऐसे कानून का प्रबंध करे कि विोता यूं खुलेआम लोगों को ठगने की हिम्मत ही न कर पाएं। “जब जागो तभी सवेरा’ तो कहते ही हैं, परन्तु आप जागो हम (मंत्रालय) सोएं, कहॉं तक उचित है?
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