वराहमिहिर ज्योतिष के कितने बड़े ज्ञाता थे, इसका प्रमाण एक घटना से मिलता है। वह उज्जैन के राजा विामादित्य के राज ज्योतिषी और 9 रत्नों में से एक थे। उन्होंने विामादित्य के पुत्र के पैदा होते ही यह भविष्यवाणी कर दी थी कि 18वें वर्ष में ही उसकी मृत्यु हो जायेगी। और ऐसा ही हुआ। ठीक 18वें साल में जंगली सूअर ने राजकुमार को मार दिया। यह समाचार जब विामादित्य के पास पहुंचा, तो वे बहुत दुःखी हुए। मगर उन्होंने उसी समय राज ज्योतिषी को बुलाया। राज ज्योतिषी के पहुंचने पर विामादित्य बोले, आपने जो कुछ कहा था वह सच निकला। मैं आपकी कुशलता से अभिभूत हूं और आपको वराह का चिह्न, जो मगध राज्य का सबसे बड़ा पुरस्कार है, प्रदान करता हूँ। तभी से मिहिर वराहमिहिर हो गये।
वराहमिहिर का जन्म सन् 499 में एक गरीब ब्राह्मण परिवार में उज्जैन के निकट कपित्थ नामक गांव में हुआ था। उनके पिता आदित्यदास सूर्यभक्त थे। उन्होंने ही मिहिर को ज्योतिष विद्या सिखायी। फिर मिहिर को उस समय के सबसे बड़े शैक्षिक केन्द्र नालंदा (पटना) भेजा गया। वहॉं वह महान खगोलज्ञ और गणितज्ञ आर्यभट्ट से मिले। उस समय उज्जैन कला, विज्ञान, संस्कृति और विद्या का केन्द्र था। जब विामादित्य चन्द्रगुप्त द्वितीय को इस बात का पता चला, तो उन्होंने मिहिर को अपने दरबार के नवरत्नों में शामिल कर लिया। मिहिर ने ज्योतिष विद्या का प्रकाश सुदूर यूनान तक फैलाने के लिए यूनान की यात्रा की। वह वेदों के ज्ञाता थे। अलौकिक पर विश्र्वास नहीं करते थे। उनकी भावना और मनोवृत्ति आधुनिक वैज्ञानिकों सी थी।
अपने पूर्ववर्ती वैज्ञानिक आर्यभट्ट की तरह वराहमिहिर ने भी कहा कि पृथ्वी गोल है। विज्ञान के इतिहास में वह पहले शख्स थे जिन्होंने कहा कि कोई ऐसी शक्ति है जो चीजों को जमीन से चिपकाये रखती है। वास्तव में वह गुरुत्वाकर्षण की तरफ इशारा कर रहे थे। जिसका पता बाद में न्यूटन ने लगाया। उनकी कुछ धारणाएं गलत भी थीं। उन्हें लगता था कि पृथ्वी गतिमान नहीं है। क्योंकि अगर यह घूम रही होती तो पक्षी पृथ्वी की गति की विपरीत दिशा में जाकर अपने घोंसले में उसी समय पहुंच जाते। वराहमिहिर ने पर्यावरण विज्ञान, जल विज्ञान, भू-विज्ञान के संबंध में भी महत्वपूर्ण टिप्पणियां कीं। यद्यपि उन दिनों इन अलग-अलग विज्ञानों का वर्गीकरण नहीं हुआ था। उन्होंने ही पहली बार कहा था कि पौधे और दीमक बताते हैं कि जमीन के अंदर पानी है। आज के वैज्ञानिक भी यही मानते हैं। उन्हें संस्कृत व्याकरण में कुशलता हासिल थी और छंद के माहिर थे। इसलिए वह उच्च कोटि के लेखक भी थे। अपने लेखकीय कौशल से ही उन्होंने रूखे और विशद खगोल विज्ञान को भी सरस बना दिया। उनकी पुस्तक-पंच सिद्घांतिका, वृहद संहिता और वृहज्जात्क का फलित ज्योतिष में वही स्थान है, जो राजनीति व दर्शन में कौटिल्य के अर्थशास्त्र का है और कानून में मनुस्मृति का। सन् 587 में वराहमिहिर की मृत्यु हुई।
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