छंद और मात्रा की बंदिशों को तोड़ कर
भावनाओं की अभिव्यक्ति करें
अगर कोई यह कहे कि निडरता से किया है!
तो हम कहेंगे, वह कविता है!
इसी कविता के समर्थक और प्रवर्तक तेलुगु के विख्यात क्रांतिकारी कवि श्री श्री की कुछ कविताएं पढ़ते हुए लगा कि वह कविता में ही नहीं बल्कि जीवन में भी क्रांति चाहते थे। तेलुगु साहित्य को नई दिशा देने वाले श्री श्री ने लंबे अर्से तक गद्य एवं पद्य दोनों की सेवा की। उन्होंेने साहित्यकार की भूमिका को उजागर करते हुए, एक मंच से कहा था, यदि हम सच्चे अर्थों में प्रगतिशील लेखक हैं और हम साहित्य के प्रति कर्तव्य के लिए कटिबद्घ हैं तो फिर हमें कभी-कभार मिल-बैठ कर चर्चा करने के बाद कान में तेल डाल कर सो नहीं जाना चाहिए। इस तरह की चर्चाओं से व्यक्ति का सुधार तो संभव है, लेकिन यह वातावरण को बदलने में सहायक नहीं होगा।
अपनी कविता के लिए सिंदूर, चंदन, रक्त, बंदूक, संध्या-राग, घायल शेर, इन्सान की खोपड़ी और काली माता की जिठा की आवश्यकता की मांग करने वाले श्री श्री ने कहा था-
हिलने वाली, हिलाने वाली
बदलने वाली, बदलाने वाली
गहरी नींद से जगाने वाली
संपूर्ण जीवन देने वाली
यह है मेरी नई कविता
घंटों तक मंचों से अपनी वामपंथी धारा से प्रेरित कविताएँ पढ़ कर लोगों को प्रभावित करने वाले श्री श्री के बारे में कहा जाता है, तेलुगु के कविता के पुनर्जागरण काल में वे न केवल एक प्रबल कवि के रूप में उभरे बल्कि गुड़जारा अप्पाराव ने जिन भावनाओं और विचारों को तेलुगु कविता के हवाले किया था, उन्हें प्रगतिशील रूप देकर श्रीश्री ने पेश किया। उनके गीत काफी लोकप्रिय हुए, जिनका प्रयोग तेलुगु फिल्मों के लिए भी किया गया। उन्होंने अपने गीतों को अत्याचार पीड़ितों के लिए हथियार के रूप में पेश किया। हालांकि उन्होंने एक बार कहा था कि मैं वर्तमान का कवि हूँ, भविष्य का दूत नहीं हूँ, लेकिन उनका काव्य संग्रह महाप्रस्थानमू पढ़ने वाले काव्य-प्रेमी जानते हैं कि उनकी कविताओं ने वर्तमान के साथ-साथ भविष्य को भी प्रभावित किया है। इसी कविता संग्रह की एक कविता मानवडू में मनुष्य को संबोधित करते हुए वे कहते हैं,
सौंदर्य की कामना रखने वाले
हे शिल्पी मनुष्य
जीव-जंतुओं, फूल-पत्तों के संरक्षक
और उनकी सौंदर्यता के सेवक
आराम एवं सुविधाओं का बोझ ढोने वाले मनुष्य
वसुधैव कुटुंबकम् के सदस्य
अपने बंधुजन के संरक्षक, सौंदर्य के पुजारी
हे मनुष्य! हे मनुष्य!
श्रीनिवास लाहोटी ने कहा था कि बड़े कवि की पहचान यह नहीं है कि उसने कितना लिखा है, बल्कि यह है कि उसने क्या लिखा है।1851 में तेलुगु कविता में नये युग का प्रारंभ हुआ। वीरेश लिंगम पंतुलू को इसका श्रेय जाता है। उनकी परंपरा में सर्वोपरि नाम श्री श्री का है।
श्री श्री का पूरा नाम श्रीराम श्रीनिवास राव था। 2 जनवरी, 1910 को विजयनगरम् में जन्मे श्री श्री ने 15 जनवरी, 1984 को दुनिया से से रुख्सत ले ली थी। उनकी कविता तीन चरणों में विभाजित की जाती है। अध्ययन के दौरान ही वे क्रांतिकारी कवि के रूप में लोकप्रिय हो गये थे। दूसरा युग प्रगतिशील धारा के प्रभाव में और तीसरा युग जीवन के दर्शन की खोज में होने का आभास दिलाता है।
अपनी एक कविता आँसू में वे कहते हैं
आँख का आँसू सफ़र पर निकला
जंगलों पहाड़ों को पार करता हुआ
वर्षा ऋतु में अपनी मस्त गति में बहती नदी के किनारे पहुंचा
तो नदी ने हस्यास्पद ठहाका लगाया
एक बूंद का अस्तित्व क्या है?
विश्र्व नापने निकला है
कहीं खो जाएगा
आँसू से रहा नहीं गया
और वह हॅंस पड़ा
अरी पगली !
खो जाएगी तू
खो जाने के लिए ही अस्तित्व है तेरा
मैं तो किसी की आँख का तारा हूँ
जहॉं भी जाता हूँ
हर आँख मेरी बलाएं लेती है
मैं दिल जोड़ने निकला हूँ
अपने आपमें खो जाने के लिए नहीं।
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