एक सुन्दर, गोरी, कमसिन
चंचल पत्नी ने
अपने श्यामवर्णी
पति से पूछा
सुनोजी, जब मैं ना रहूँगी
क्या आप पुनः ब्याह रचाओगे
मेरी जगह किसी अन्य को
इस घर की लक्ष्मी बनाओगे?
बात सुनकर पत्नी जी की
पति जी ने विस्मय से उनको देखा
देख पूरे होते अधूरे स्वप्न
हृदय की उठती तरंगों को रोका
भांप नजाकत समय की
गम्भीरता को मुखमण्डल में समेटा।
कुछ पल रुका
कुछ सोचा
फिर तुनक कर यूं बोला
प्रियतमा माना कि तुम हो अपव्ययी
फिर भी तुम मेरी नीधि हो
ना सही मिसिज पंत, मिसिज खन्ना,
मेरे लिए तुम ही परी हो
बेरू़खी हो तो क्या
मेरे लिए
सावन की झड़ी हो
इस बंजर जीवन में
जो खिल सकी
वो तुम ही एक कली हो
बात करके अनहोनी की
क्यों हर पल मुझे कोसती हो
मेरी तो छोड़ो
ये नन्हे-नन्हे दिल तोड़ती हो।
ना रहीं गर तुम
तो भला कैसे जियूंगा मैं
भरी जवानी में
क्या पतझड़ सहूंगा मैं?
गर लानी पड़ी कोई
जैसे-तैसे सब सहूंगा मैं
मान तुम्हारी प्रतिमूर्ति
बस उसको पूजूंगा मैं
पर कसम तुम्हारी
इन नन्हीं आँखों को
ना रोने दूंगा मैं।
– दीपा जोशी
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