पिछले सप्ताह असम की राजधानी गुवाहाटी सहित तीन अन्य जिलों में हुए सिलसिलेवार बम-विस्फोटों की व्यथा-कथा, जिसमें 70 से अधिक लोगों को जान गंवानी पड़ी और चार सौ से ज्यादा लोग घायल हुए, खुद को एक अलग कोण पर विश्र्लेषित करने की मॉंग करती है। उच्च स्तरीय खुफिया सूत्रों ने इस बात का पता लगा लिया था कि इस घटना को अंजाम देने के लिए 15 से 17 अक्तूबर के बीच नेपाल की राजधानी काठमांडू के नजदीक एक रिसॉर्ट में इस योजना का प्रारूप विधिवत तैयार कर लिया गया था। योजना का सूत्रधार भी कोई और नहीं बल्कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई ही है। उसने इसे अंजाम देने के लिए पूर्वोत्तर के उल्फा जैसे अलगाववादी संगठन के अलावा बांग्लादेश की हूजी को भी शामिल किया है। इस खुफिया जानकारी की मानें तो जो योजना तैयार की गई है उसमें असम का यह विस्फोट प्रथम चरण है। योजना में देश के कई महत्वपूर्ण नगर और संस्थान तथा व्यक्ति अभी आतंकवादियों के निशाने पर हैं। इस योजना की ़खूबी यह है कि आईएसआई ने अलग-अलग स्थानों पर बम-ब्लास्ट करने की जिम्मेदारी भी अलग-अलग संगठनों को सौंप दी है। खुफिया सूत्रों का यह भी कहना है कि आईएसआई की इस खतरनाक योजना से असम सरकार को समय रहते आगाह भी करा दिया गया था। इस योजना का सबसे खतरनाक पक्ष यह है कि पूर्वोत्तर भारत को उग्रवादी संगठनों की मदद से भारत से काट देने का एक ब्ल्यू-प्रिन्ट तैयार किया गया है। इसमें पाकिस्तान और बांग्लादेश की खुफिया एजेंसियॉं चीन के इशारे और मदद पर भारत-विरोधी षड्यंत्र की प्रमुख रचनाकार हैं।
पाकिस्तान, चीन और बांग्लादेश एक ओर तो भारत से मैत्री संबंध स्थापित करने के लिए वार्ताओं का दौर चला रहे हैं, दूसरी ओर पूर्वोत्तर भारत को भारत से अलग करने की सा़िजशों को भी अंजाम दे रहे हैं। इसके लिए उनकी ओर से पूर्वोत्तर भारत के विद्रोही संगठनों को न सिर्फ सहायता दी जा रही है, बल्कि उनके नेताओं को सुरक्षित पनाहगाह भी उपलब्ध करायी जा रही है। दुःखद यह है कि हमारी खुफिया एजेंसियॉं इनकी कुटिल चालों से लगातार सरकार को आगाह करती आ रही हैं, लेकिन सरकार इस मुद्दे पर निषिय बनी हुई है। पिछले महीने लोअर असम के बोडो आदिवासियों ने असम के मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में विस्फोट करके 30 लोगों की हत्या कर दी थी। इसके जवाब में असम की राजधानी गुवाहाटी सहित तीन अन्य जिलों में विस्फोट करके बदला लिया गया। पूर्वोत्तर भारत में आज तक इतने धमाके एक साथ कभी नहीं हुए और न इतनी बड़ी संख्या में लोग हताहत हुए। यह गौरतलब है कि जिन स्थानों पर ये विस्फोट हुए, वहॉं बांग्लादेशी मुसलमान घुसपैठियों की संख्या सर्वाधिक है। गौर करने की बात यह भी है कि राजधानी के जिन क्षेत्रों में बम-विस्फोट हुए वे सर्वाधिक सुरक्षित क्षेत्र माने जाते हैं और असम विधानसभा भी उसी क्षेत्र में स्थित है।
असम के प्रमुख आतंकवादी संगठन उल्फा ने हालॉंकि इस घटना में अपने संगठन की संलिप्तता से इन्कार कर दिया है मगर इस तथ्य से इन्कार नहीं किया जा सकता कि बांग्लादेशी आतंकवादी संगठन हूजी के साथ उसका घनिष्ठ संबंध है। दोनों ही संगठनों का मुख्य कार्यालय बांग्लादेश की राजधानी ढाका के छावनी क्षेत्र में है और दोनों ही संगठनों का संचालन पाकिस्तान की गुप्तचर संस्था आईएसआई करती है। यह तथ्य भी जानने योग्य है कि इनके प्रशिक्षण शिविरों के प्रशिक्षक चीनी सेना के अधिकारी हैं। अतएव मान कर चलना होगा कि बम-विस्फोटों के पीछे न किसी एक आतंकवादी संगठन की भूमिका है और न ही किसी एक अकेले देश की उत्प्रेरणा है। घटना के पीछे पूर्वोत्तर के सभी आतंकवादी संगठनों की भूमिका है और एक सा़िजश के तहत इसे संपन्न कराने में चीन, पाकिस्तान और बांग्लादेश की सरकारों का भी सहयोग किसी न किसी रूप में है। माना तो यह भी जा सकता है कि अपनी भारत-विरोधी नीतियों के चलते पाकिस्तान और बांग्लादेश का सहयोग लेकर चीन मुख्य षड्यंत्रकर्त्ता की भूमिका में है।
अभी कुछ दिनों पहले मणिपुर की राजधानी इम्फाल में मुख्यमंत्री ओकराम ओ.बी. सिंह को एक ग्रेनेड हमले के जरिये मार डालने का प्रयास हुआ था। ग्रेनेड चीन का निर्मित था। ठीक दो दिन बाद मणिपुर राइफल्स के मुख्यालय पर आतंकवादी हमला हुआ। धमाके में 17 लोग मारे गये। ़खुफिया सूत्रों की जानकारी के अनुसार यह हमला कांगलाई पाक की पीपुल्स रिवोल्यूशनरी पार्टी ने किया था, जिस पर चीन का वरदहस्त है। इसी संगठन ने पिछले साल जन्माष्टमी के अवसर पर कृष्ण मंदिर में बम-विस्फोट कर 200 लोगों की हत्या की थी। आश्र्चर्यजनक रूप से तीनों ही हमलों में इस्तेमाल किये गये बम चीन द्वारा निर्मित थे। उत्तरी सिलचर की दो आदिवासी जातियॉं-दिमसा और दीलम ने भारत के खिलाफ अपने को अलग राष्ट घोषित कर, संघर्ष का ऐलान कर रखा है। चीन इनके संघर्ष को न सिर्फ समर्थन दे रहा है बल्कि सहायता भी दे रहा है। इन दिनों म्यांमार के सीमावर्त्ती क्षेत्रों में चिन विद्रोही सेना 50 गुप्त प्रशिक्षण शिविर चला रही है। इन शिविरों में उल्फा, दिमसा, मणिपुर पीपुल्स आर्मी जैसे विद्रोही संगठनों के रंगरूटों को प्रशिक्षित किया जा रहा है। यह प्रशिक्षण और हथियार चीनी सेना के अधिकारी मुहैया करा रहे हैं। गुप्तचर सूत्रों का दावा है कि पूर्वोत्तर में सिाय विद्रोही संगठनों को चीन लिट्टे के माध्यम से भी हथियार उपलब्ध करा रहा है।
पूर्वोत्तर के इन उग्रवादी-अलगाववादी संगठनों को चीन की प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष मदद तो हासिल है ही, पाकिस्तान की आईएसआई ने पूरे पूर्वोत्तर में 36 नये आतंकवादी मुस्लिम संगठन खड़े किये हैं। खूबी यह है कि इनकी पूरी जानकारी हमारी ़खुफिया एजेंसियों को भी है। इनमें सबसे अधिक भागीदारी बांग्लादेश से विस्थापित होकर भारत आये बांग्लादेशी मुसलमानों की है। इसके अलावा कई विद्रोही संगठनों को चर्च का भी परोक्ष समर्थन प्राप्त है। इनमें नगा और मिजो विद्रोही संगठन प्रमुख हैं। कहने का अर्थ यह कि मौजूदा वक्त पूरा पूर्वोत्तर भारत हिंसक आतंकवादी और अलगाववादी ताकतों का अखाड़ा बना हुआ है और भारत-विरोधी विदेशी ताकतें उन्हें सिर्फ मदद ही नहीं दे रही हैं, बल्कि उनका संचालन भी कर रही हैं। लेकिन भारत सरकार के पास इनसे निपटने की न कोई रणनीतिक योजना है और न ही इच्छाशक्ति। कतिपय राजनीतिक कारणों से वह अपने अभियान को धारदार बना पाने में भी अक्षम सिद्घ होती है।
आज जो पूर्वोत्तर भारत में विस्फोटक स्थिति बनी है उसके लिए सरकार और राजनीतिक पार्टियॉं समान रूप से दोषी हैं। अजीब बात ये है कि जिस वर्ग ने भी हथियार उठाकर अलगाववाद का नारा लगाया उसके सामने अब तक केन्द्र सरकार ने घुटने टेकने की नीति का ही अनुसरण किया है। इसी अलगाववाद के नारे के साथ असम का विभाजन पर विभाजन होता गया लेकिन समस्या आज तक अनसुलझी बनी हुई है। इस बात से इन्कार करना बहुत मुश्किल है कि पूर्वोत्तर की लगभग सभी राज्य सरकारें भ्रष्टाचार के अथाह जल में डुबकी लगा रही हैं। केन्द्र, जनहित में इन सरकारों को विकास के मद में भारी-भरकम राशि आवंटित करता है, लेकिन वह नाममात्र को जन-सामान्य के हिस्से पहुँच पाता है। इस सच्चाई से केन्द्र सरकार भी अवगत है। उसकी मजबूरी यह है कि इस क्षेत्र में जो भी राजनीतिक नेतृत्व विकसित होता है उसकी भी पैदाइश इसी भ्रष्टाचार के गर्भ से होती है। फलतः केन्द्र सरकार से मिलने वाला धन भ्रष्ट राजनेताओं, अधिकारियों और ठेकेदारों की जेब में चला जाता है। इस क्षेत्र में प्राकृतिक संसाधनों की बहुलता है लेकिन उनके दोहन के लिए कोई योजनागत प्रयास नहीं किया गया। कृषि योग्य भूमि का अभाव तो है ही, क्षेत्र के औद्योगीकरण का भी कभी प्रयास नहीं हुआ। पर्यटन भी विकसित नहीं किया जा सका क्योंकि शुरू से ही क्षेत्र की शांति-व्यवस्था समस्या बनी हुई है। फलतः बेरोजगारी का अभिशाप भोगने के लिए इस क्षेत्र का आम आदमी तो विवश है ही, पढ़ा-लिखा नौजवान भी बेहाल है।
संभवतः इसी आाोश का फायदा उठाकर भारत-विरोधी ताकतें भारत से पूर्वोत्तर को अलग करने का कुचा रच रही हैं। पाकिस्तान ने खालिस्तान का मुद्दा उछालकर पहले पंजाब को भारत से तोड़ने की सा़िजश को अंजाम दिया और फिर नाकामयाब होने के बाद कश्मीर में अलगाववाद की हवा पैदा की, जो आज भी कायम है। लेकिन उसे इस बात का ब़खूबी अहसास हो चुका है कि “कश्मीर की आजादी’ की तथाकथित आवा़ज को भारत की सैनिक ताकत कुचलने में समर्थ है और उसका यह सपना ह़जारों साल तक पूरा होने वाला नहीं है। इस हकीकत के साथ उसने अपनी स्टेटजी बदल कर अपनी सा़िजशों का जाल पूर्वोत्तर में बुनना शुरू कर दिया है। उसे भारत का यह हिस्सा बहुत मुलायम समझ में आ रहा है जिसे वह आसानी से तोड़ सकता है। उसकी ताकत में इसलिए भी इ़जाफा हुआ है कि पूर्वोत्तर में चीन और बांग्लादेश के भी अपने राजनीतिक स्वार्थ निहित हैं। लिहाजा उनका भी सहयोग और समर्थन हासिल करना उसके लिए फायदेमंद है। भारत की सबसे कमजोर नस भी ये दुश्मन पहचानते हैं। वह यह कि भारत की राष्टीय अवधारणा को राजनीति की आसुरी शक्तियों ने आपदाग्रस्त कर दिया है। इस दृष्टि से एक निष्पक्ष विश्र्लेषण यही संकेत देता है कि अगर अविलम्ब पूर्वोत्तर की सुरक्षा के लिए कोई कारगर योजना नहीं तैयार की गई तो दुश्मन उसे तोड़ने में कामयाब भी हो सकते हैं।
– रामजी सिंह उदयन
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