जाँकी हरी से लगन लगी है लगन ना छूटेगी प्यारे।
लगन ना छूटेगी प्यारे, लगन ना छूटेगी प्यारे॥ टेर ॥
लगन लगी प्रह्लाद भक्त को, गिरवर से डारे।
अपने जन के काज हरी ने, नरसिंह रूप धारे॥ 1 ॥
लगन लगी मोरध्वज राजा को जाने जग सारे।
रतन कुँवर नादान शीष पर, धर दिनों आरे॥ 2 ॥
लगन लगी हरिश्चन्द्र राजा को, तज्यो राज सारे।
काशी नगरी बिच राव ने, कुटुम्ब बेच डारे॥ 3 ॥
लगन लगी नरसी मेहता को, जुनागढ वारे।
टूटी सी ज्यानें गाडी लेकर, भरीयो भात सारे॥ 4 ॥
लगन लगी मीरा बाई को, रानाजी हारे।
विष को प्यारो भेज्यो जिन्होंने, अमृत कर डारे॥ 5 ॥
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