म्हारा लोभी जिवडा, काँई सुतो रे सुख भर नींद में।
सुता सुता क्या करे रे, सुता आवे नींद।
काल सिरहा ने यूँ खडो रे, ज्यूँ तोरण आयो बिन
नौबत हरी का नाम की रे, दिन दस लेवोनी बजाय।
काँई भरोसो श्वास कोरे, फिर आवे की नाय॥ 2 ॥
हल्दी जल्दी ना तजे रे, खटरस तजे ना आम।
शीलवन्त अवगुण तजे रे, गुण को तजे गुलाम॥ 3 ॥
पात् झडन्ता यूँ कहे रे, सुन तरुवर वरनराज।
अब के बिछडया ना मिला रे, दूर पडेगाँ जाय.। 4 ॥
रघूवर दास की विनती रे, सुनजो श्रीजन हार।
ध्रुव प्रह्लाद विभीषण तारिया, वैसे मुझको तार॥ 5 ॥
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