दगा किसी का सगा नहीं, अजमाँ के देख लो।
बिना बुलाये आदर नाहीं, कोई जाकर देख लो॥ टेर ॥
बिना बुलाया सति गई अपमान हुआ भारी।
क्रोध अग्नि में भस्म किये, जब कोपे त्रिपुरारी॥
महादेव ने वीर भद्रगण, भेजा बलकारी।
हुआ यज्ञ विध्वंश दक्ष की जान गई मारी॥
मुखी को ना ज्ञान लगे, समझा के देख लो।
मिले रेत में अकड कोई, गरभाँ के देख लो॥ 1 ॥
कौरवों ने दगा किया, भाई पाण्डव के संग में।
भीमसेन को जहर पिलाकर डाला गंगा में॥
झूठ कप से राज ले लिया, भरे उमंगों में।
हुवा नतीजा बुरे मरे, कौरव रण रंग में॥
बेईमानी का वृक्ष बुरा, कोई ला के देख लो।
उसके फल कडूवे होते, कोई खा के देख लो॥ 2 ॥
हरी भक्ति सत्संग बिना, जग में आना फीका।
मात-पिता की सेवा बिन, तीर्थ जाना फीका॥
जहाँ निरादर हो नर का, उस घर जाना फीका।
जानें बिन सूर ताल सभा में, मुँह गाना फीका॥
कण्ठ बिना गाना फिका, कोई गा कर देख लो।
गुरु बिना मिले ना ज्ञान, वेद उठाकर देख लो॥ 3 ॥
गुरु बख्तावर यूँ बोले, कुछ सफल कमाई कर।
जब तक तेरे से होवे, उपकार भलाई कर॥
अगर भलाई ना होवे, मत कभी बुराई कर।
मामचन्द तूँ राम नाम की, नित्य पढ़ाई कर॥
राम नाम अमृत रस है, बरसा कर देख लो।
बद्धि निर्मल हो जाय इसमें, नहा कर देख लो॥
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