दोहा :- कारिगर करतार की, महिमाँ लखि न जाय।
पाँच तीन के मेल से, बँगला दिया बनाय॥
दस दरवाजे का बँगला, कारिगर अजब बनाया।
पाँचों रंग भरे बँगले में, एक से एक सवाया सवाया
एक से एक सवाया॥ टेर ॥
नेम की नींव धरी ऊँडी, कारिगर करी चुनाई।
पून के पत्थर लग रहे इसमें अद्भुत शोभा छाई॥
चित्त का चूना ले कारिगर, सुन्दर करी ली पाई।
सत् की सिली छत पे गेरी, समता की सिमेंट बिछाईं॥
गमता का गाडर लग रहया इसमें धर्म का खम्ब लगाया॥ 1 ॥
कर्म काँगरे लगे बँगले के, चौतरफा कटवी जाली।
बत्ती दो बी दत्त की लग रही, जिनकी खील रही उजियाली॥
शील स्नेह और गुलिस्तान की, अजब खीली है हरियाली।
शील स्नेह और गुलिस्तान की अजब खीली है हरियाली।
सन्तों समुन्द में करे सिंचाई, मन हुशियार रहे माली॥
पीर का पोत् कोकिला मैना, कोयल शब्द सुनाया॥ 2 ॥
सूरता की सिढी ला रखी, बँगले की सैर करन ने।
जगह जगह अलमारी धर दी, वस्तु सर्व धरन ने॥
प्रेम का पँखा ला रखा, गर्मी की तप्त हरन हरन ने।
शील का समुन्द भरीया, जिसमें नहाओ नीर भरन ने॥
दया की दरी और रहम रजाई, पृथ्वी का पलँग बिछाया॥ 3 ॥
आशा तृष्णा ममता माया, मिल के नाच दिखाती।
काम क्रोध मद लोभ मोह साजिन्दे संग में लाती।
चेतन पुरुष बसे बँगले में, नाच दिखा भरमाती है।
गुरु शिवलाल मिले पूरे, सत सायब से भय खा॥
चिरजी लाल को होश नहीं, कवियों का दास कहाया॥
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