सुनजो हेलो बाबा साम्भोल, आ थारे ताँई करी पुकार।
म्हारे अन्न धन लेगा चांरड़ा, और दियो पति ने मार हो बाबा।
दियो पति ने मार॥ टेर ॥
मैं तो सुनी थारे जोतड़ली में काँगन कड़ा फिरे।
थाने याद कियो वे सेठजी, ज्याँरी डूबी जहाज तीरे॥
पैदल आवे जातरु, ज्यारां दुःखड़ा रे थे ही आधार॥ 1 ॥
ड़ाली बाई पूछे बाबोसा, आसन सिध सजाय।
थानें बगसो खाती याद कियो, ज्यारां बेटा प्राणत जाय॥
बगसो बैठो जम्मों जगावे, घर में रोवेनार॥ 2 ॥
पीरां री कला और पीरां रा कटोरा, हाथ पसाल मँगाया।
मैं बोली जात् गढ़ जोड़ा री, आज देवन ने आया॥
पति के साथ में सत्ति होउगी, नहीं तो लेवो उबार॥ 3 ॥
इतनी तो सुनके बाबो, आवीयो, थे आँसूड़ा क्यूँ ढलकावे।
थारो पति सो रहयो नींद में थे जाकर उन्हें जगावो॥
उठ रे सेठ काँई सुतो नींद में, नगर बड़ो अन्जान॥ 4 ॥
आँख्याँ सुं आन्धा बोल्या चोरड़ा, ओ धन लो सेठ थारो भी।
मैं चोरी नहीं कराँ बाबा रामदेव म्हानें है भक्ताँरी दुहाई॥
शीष नवावे शिव धजाबन्द के, चरणों में बारम्बरा॥ 5 ॥
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