बगसोजी खाती घड़े तन्दूरा, बाज रहया धणी चोतारा।
पाट थरपने कलश पूरियों, भजन करां मालक थारां॥
उबार ले धणी उबार ले, लाजे बिरद सरब थारा हो जै॥ टेर ।।
केवे खातन सुन म्हारा खाती, तुं खाती खाविंद म्हारा।
भरी सभा में बालूडो पोढयो, कठे गया मालक थारा॥ 1 ॥
केवे खाती सुन म्हारी खातन, तुं खातन त्रिया म्हारी।
मिनक मानवी मैं मिनधारी, नहीं सारे ए खातन म्हारी॥
उगट पूरी में कछू नहीं लागे, पूगेला मालक म्हारा॥ 2 ॥
रुणेचाँ सुं चढया रामदेव, आय उतरया घर बगसा रे।
पड़ी लोथ बाला री बोले, सुन बाबल बेटा म्हारा॥
स्वर्ग मण्डल सुं पाछां पावड़िया, पुग गया मालिक म्हारा॥ 3 ॥
केवो बगसो सुन म्हारा बाला, काँई काँई रचना थे देखी।
ताथा थम्बा बाँध बँधाया, लोइयाँ री नदियाँ मैं देखी॥
रूणेचाँ रा कूँवर रामदेव, ज्याँरी आन फिरताँ देखी॥ 4 ॥
दोय कर जोड़ खाती, बगसोजी बोले, गगन मण्डल में घर थारा।
सब सन्ता रे नूंर बापजी, पुग गया मालिक म्हांरा॥ 5 ॥
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