हाथी में हाथी बन बैठो, किडी में हर दरशे तुं।
मन मस्तान आवे मस्ती में, महावत् बनकर आयो।
ऐसो खेल रचायो म्हारा दाता, आवत करनी कर गयो।
ऐसी भुल जगत मांहि डाली, जहाँ देखूँ वहाँ तुं ही तुं।
राजा में राजा बन बैठो, भिखारी में मँगतो तूं।
चोरी में तो बन्यो चोरटो, खोज करन ने आयो।
देवल में देवो बन बैठो, पुजारी बन आयो तुं।
बालक होय रो वने बैठो, माता बन बुचकारियों तुं।
ले झगड़ो झगड़ाने लागो, फजदार बन आयो तुं।
नर-नारी में एक बन बैठो, दोय जगत में दिसे तुं।
आप ही करता आप ही भरता रचना राम रचायो तुं।
कहत कमाली कबीर सारी लड़की, उल्ट खोज कर पायो।
You must be logged in to post a comment Login