लिखने पखानों विजय सिंह भेज्यो, हरजी भाटी बेगो आव॥
के थारा पीराँ री कला बताव, मोटा मालक थारी करूँ सेवा।
आरोधे आवोनी महाराज, जूना धणी थारी करूँला सेवना॥ जै जै॥
झोली झन्डा हरजी लिया है हाथ में, घोड़ो लियो गोदीयाँ रे।
एक दोय बास मारग माँहि बसीया, ती जोड़ो जो धाणे रे पास॥
हरजी भाटी ने कोठारया में जड़ीया, तालो जड़यो बीजल सार।
नौ मन दज्ञोब लीला रे आगे डाली, सवा मन दानों दियोड॥
आपने छोड़ औरां ने किनने ध्यावाँ, किनरी पोल्याँ करूँ पुक।
राजा विजय सिंह परचो माँगे, नहीं पकचो पिंड़ताँ रे पास॥
लीलो हींझ करे पायगा में हरजी मन माँहि धीरज धार।
नौ मन द्रोब लीलो चर लिनो, सवा मन दानोंदियो उगाल॥
हरजी भाटी शंख पूरीयो, भाटे भाटे लागी लाय।
लोग शहर रा पाँवां पड़ीया, हरजी थारा धणी ने मनाव॥
राजा विजय सिंह रा वेग चाल्या, कुँवर मरीयो डोडया रे माँय।
बन्दी रे पायगा घुड़ल्या मरीया, हाथी मरीया दो यर चार॥
राजा विजय सिंह री रानीयाँ बोली, हरजी थारा धणी ने मनाया।
सवा लाख रो छत्र चढ़ाऊ, अस्सी हजार झारी रे माँय॥
राजा विजय सिंह रा वेग मेटया, कुँवर रमें डोडयाँ माँय।
बन्दी पायगा घुड़ल्या हँसीया, हाथी गूँजे दो यार चार॥
मैं नहीं लाटूं म्हारो गोत्र न लाटे, जे लाटे अट्ठो हत्तर गाल।
हरीरा शरणां में भाटी हरजी बोले। बन्दीया छुयाया चौपना री साल॥
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