सून में शहर शहर में बस्ती कून सूता कून
जागे है ब्रह्म हमारा हम है ब्रह्म
के तन सूता चैतन जाग है
जल बिच कमल कमल बीच कलीया भवर वासना लेता है
नव दरवाजा फैरी फिरता अलक अलक ही करता है
अदर अणी पर आसन किन्हा
तपस्वी तपस्या करता है
पाँचों चैला सनभूख भेला
निगुण का गुण गाता है
एक अपसरा हाजीर उबी
दुजी सूरमो सारे है
तिजी आसरा सेज बिचावे
परनीयो नीत न्यारी है
सबसे पहले पुत्र जन्मीया माता
के मन भाया है
ता पिछे वालों पिता जन्मीयो
अलक उचुर्म्भ आया है
सून में आना सन में जाना
सनमें शहर बसाया है
मेच्छदर प्रतापे जती गीररेव बोले
सून में जाय समाया है
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