मुर्खा फिरे रे गीवार मुर्खा फिरे रे गिवार
कायावनी है हरि रे कारणे
आरठ बैहे रे उताबलो ज्हाँरी उल्टी हीमाल
एक भरे दुजी खालडी ज्यु जावे रे संसार
चार चारे चोरी करे बडीयाबाडी के नाय
फल नहीं तोड़े रामा फुलड़ा बेलड़ी या कुमलाय
सामाली हाटीया में बैठी यो बानीयों निबजे
हिरा मोती लाल
बैल्या देख बीन वे नहीं बानीयो असल गिवार
किनरा छोरा किनारी छोरीया कनिरा
मायन बाप
हसलो जावेला प्राणी ऐकलो साथ पुष्य और पाप
धोरो घोडा ने ताजने धोरों धोलाने आर
धोरों रण्डापो बालक बितनों
किन बिद उतरेलों पार
अम्बर रा पारा करू लेकन कर बनराय
सात समुद्र स्थाई करू हरिगुण
लिखीयो न जाय
सत गुरु संत संगी आपना दूजो सिजेल हार
कांजी मोहमद सारी विनती लेखो साई के दरबार
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