होली

हो – होली रंगभर झोली ।
ली – लीला प्रभु की होली ।

होली के दिन फूल खिल-खिल जाते हैं
रंगों में रंग मिल जाते हैं
स्नेह का अबीर प्रेम का गुलाल
सतरंगी रंगों की छा जाती है बाहार।
तभी होती है होली, जी हाँ होली तभी होती है ।

होली सस्नेह मिलन का प्रतीक है होली के दिन सभी आपसी वैर भाव भुलाकर एक ही रंग में रंग जाते हैं एक-दूसरे से प्रेम से मिलते हैं फाल्गुन सुदी पूर्णिमा को भगवान ने नरसिंह अवतार लेकर हिरण्यकश्यप का वध किया भक्त प्रहलाद की रक्षा की, होलिज्ञकशा जिसे यह वरदान था कि वो अग्रि में जलती नहीं है, उसे जलाकर भक्त प्रहलाद को उबारा उसी खुशी में हम होली मनाते हैं होली जलाने का सही अर्थ है अपने अन्दर की बुराइयों को जलाकर अच्छाइयाँ अपनाना! फाल्गुन सुदी और चैत्र महिना की शुरुआत की पूर्णिमा को होली मनाई जाती है।

होली के दिन हम लोग दोपहर के बाद रसोई बनाते हैं, आज के दिन 1 या 2 मिठाई बनाते हैं। साग, पूडी नमकीन बनाते हैं तवा नहीं चढाते हैं अगर ज्यादा ही जरूरत हो गई तो बन्दिस भी नहीं हैं पापड-खिचिया फालरी या चिप्स तलते हैं, एक समय खाना खाते है वो भी होली को जला देखकर! पहले दिन रात में मेंहदी लगाते हैं।

हम लोग ठण्डी होली की पूजा करते है। होली से चार दिन पहले बडकुले बनातेहै, यानि ग्यारस के दिन गोबर लेकर उसको व्यवस्थित करके उससे चांद सूरज साखिया होली की जीभ बाकी गोल गोल बडकुले बनाते हैं बडकुलों पर आटा-हलदी व कुंकु लगाते हैं चार दिन में वो सूख जाते हैं, होली के दिन सुबह मूंज की रस्सी लेकर उसमें बडकुले पिरोते हैं सात बडकुले (सूरज, चांद वगैरे) एक रस्सी में पिरोते है बाकी सारे एक रस्सी में पिरोते हैं शाम के समय पहले घर पर बडकुलो की पूजा करते हैं पूजा करने के बाद जो सात बडकुलो की माला है उसे घर पर टांग देते हैं अगले वर्ष की जो माला होती हैं उसे लेकर व पूजा की सारी सामग्री लेकर होली की पूजा करने जाते हैं बडकुलो की माला वही चढा देते है।

दूसरे दिन धुलेटी का त्यौहार होता है सभी आपस में मिलकर रंग खेलते हैं। बेटा होने केबाद होली से पहले ग्यारस को हम बच्चे की ढूंढ में धानी पतासालेकर पाटे पर पांच ढिगलियां करते हैं बच्चे की माँ अच्छी साडी पहन कर बच्चे को गोदी में लेकर बैठती है। बच्चे को सफेद कपडे पहनाते हैं, उस दिन से बच्चे के लम्बा टीका निकालते है। उससे पहले आडा टीका निकालते है, पाँच जापे के गीत गाते हैं।